अध्याय-5 (Vol-1) | 04 May 2020

नेटवर्क उत्पादों के क्षेत्र में निर्यात विशेषज्ञता द्वारा रोज़गार सृजन और विकास

Creating Jobs and Growth by Specializing to Exports in Network Products

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु वर्तमान परिवेश भारत को चीन जैसे देशों के श्रम प्रधान निर्यात पथ का अनुसरण करने का एक अभूतपूर्व अवसर प्रदान करता है और देश में असीमित रोज़गार सृजित करने का अनन्य अवसर प्रदान करता है।     

भूमिका:

  • निर्यात में वृद्धि भारत में रोज़गार सृजन के लिये एक उन्नत मार्ग प्रदान करता है। उदाहरण के लिये वर्ष 2001-06 तक सिर्फ 5 वर्षों की अवधि में श्रम गहन निर्यात से चीन प्राथमिक शिक्षा प्राप्त श्रमिकों के लिये 70 मिलियन नौकरियों का सृजन करने में समर्थ हुआ है।
  • अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध वैश्विक मूल्य शृंखला (Global Value Chains- GVCs) में मुख्य समायोजन का कारण बन रहा है और फर्में अब अपने संचालन के लिये वैकल्पिक स्थानों की तलाश कर रही है। हालाँकि व्यापार युद्ध शुरू होने से पहले ही औद्योगिक उत्पादों की अंतिम असेंबलिंग के लिये निम्न लागत वाले स्थान के रूप में चीन की छवि श्रम की कमी और मजदूरी में वृद्धि के कारण तेजी से बदल रही थी।
  • ये घटनाक्रम भारत के समक्ष ऐसी समान निर्यात प्रक्षेपवक्र को सुदृढ़ करने और युवाओं के लिये अप्रत्याशित रोज़गार के अवसर पैदा करने के अभूतपूर्व अवसर प्रदान करते हैं। 
  • इस प्रकार ‘मेक इन इंडिया’ के तहत ‘असेंबल इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ को एकीकृत करके भारत वर्ष 2025 तक 4 करोड़ और वर्ष 2030 तक 8 करोड़ उत्तम वैतनिक रोज़गार सृजित कर सकता है।

चीन की तुलना में भारत का निम्न-निष्पादन

(INDIA’S EXPORT UNDERPERFORMANCE VIS-A-VIS CHINA):

  • वर्ष 2018 में भारत की वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी 1.7%, जबकि चीन की 12.8% थी। भारत की इस वर्तमान स्थिति के निम्नलिखित कारण हैं।
    • वैश्विक मूल्य  शृंखला में भारत की निम्न हिस्सेदारी।
    • उत्पादों की विशेषज्ञता के बजाय उनके विविधीकरण पर अधिक ज़ोर।
    • उत्पादन क्षमता का निम्न स्तर।
    • उच्च आय वाले देशों में असमान रूप से भारतीय उत्पादों की निम्न बाज़ार पहुँच।  
    • निर्यात वृद्धि का पूंजी एवं कौशल गहन उत्पादों पर निर्भर होना।    

वैश्विक मूल्य श्रंखला में भागीदारी से लाभ प्राप्त करना

(REAPING GAINS FROM PARTICIPATION IN GLOBAL VALUE CHAINS):

Assembly-in-india

  • सर्वेक्षण बताता है कि सकल निर्यात के विदेशी मूल्य वर्धित हिस्सेदारी में 10% की वृद्धि से कुल सकल निर्यात में 17.9% की वृद्धि होती है परिणामस्वरूप निर्यात से घरेलू वर्द्धित मूल्य में 7.7% की वृद्धि होती है। अंततः घरेलू वर्द्धित मूल्य में 7.7% की वृद्धि से रोज़गार में 13.2% की वृद्धि हुई।
  • उपरोक्त आकलन के अनुसार भारत जैसे देश में अगले पाँच वर्षों में 10 मिलियन और उसके अगले 5 वर्षों में 20 मिलियन निर्यात संबंधित रोज़गार सृजित किये जा सकते हैं।

रोज़गार सृजन हेतु कौन से उद्योगों में भारत को विशिष्टता प्राप्त करनी चाहिए?   

  • सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में पारंपरिक अकुशल श्रमसाध्य उद्योगों, जैसे कि कपड़ा, वस्त्र, फुटवियर और खिलौनों में अपार निर्यात संभावनाएँ मौजूद हैं। इन उद्योगों में वैश्विक मूल्य  शृंखला का संचालन ‘क्रेता संचालित’ नेटवर्क द्वारा होता है जिसमें विकसित देशों में स्थित अग्रणी कंपनियाँ अधिक मूल्यवर्द्धन वाले कार्यों जैसे- डिज़ाइन, ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर ज्यादा ध्यान देती हैं।
    • विकासशील देशों में कंपनियों द्वारा उप-संविदा व्यवस्थाओं के माध्यम से वास्तविक उत्पादन किया जाता है। ऐसे उदाहरणों में वालमार्ट, नाइक, ऐडिडास आदि उत्पादन  शृंखलाएँ शामिल हैं।
  • अनेक उत्पादों जिन्हें ‘नेटवर्क उत्पाद’ के रूप में जाना जाता है, के अंतिम असेम्बल के लिये भारत के एक बड़े हब के रूप में उभरने की भारी संभावनाएँ है। इन उद्योगों में वैश्विक मूल्य  शृंखला पर नियंत्रण ‘उत्पादक संचालित’ नेटवर्कों के अंतर्गत अग्रणी वैश्विक उद्यम जैसे कि एप्पल, सैमसंग, सोनी आदि का होता है।           
    • सामान्यतः नेटवर्क उत्पादों का उत्पादन किसी निर्दिष्ट देश के भीतर शुरू से अंत तक नहीं किया जाता है बल्कि देश किसी विशेष कार्य या सामान के उत्पादन  शृंखला के चरणों के विशेषज्ञ होते हैं, यह विशेषज्ञता उस देश के तुलनात्मक लाभ पर आधारित होती है। चीन जैसे श्रमिक बहुलता वाले देश उत्पादन के कम कुशल श्रमसाध्य प्रक्रियाओं जैसे- असेम्बल करने में विशेषज्ञ होते हैं, जबकि धनी देश पूंजी एवं कौशल साध्य प्रक्रियाओं जैसे कि अनुसंधान एवं डिज़ाइन के क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं।
  • वर्ष 2018 में विश्व निर्यात में नेटवर्क उत्पादों की लगभग 30% हिस्सेदारी थी जिसमें इलेक्ट्रिकल मशीनरी की हिस्सेदारी सबसे अधिक 10.4% थी। वहीं भारत के निर्यात में नेटवर्क उत्पादों की कुल, हिस्सेदारी वर्ष 2018 में 10% थी, जबकि चीन, जापान एवं दक्षिण कोरिया के उत्पादों की कुल हिस्सेदारी लगभग आधी थी।
  • भारत से निर्यात किये गए नेटवर्क उत्पादों की मुख्य श्रेणी में सड़क वाहन आते हैं जिसमें वर्ष 2018 में कुल निर्यात में 4.9% की वृद्धि दर्ज हुई।

नोट:

  • भारत वर्ष 2018 में वियतनाम को पछाड़ कर चीन के बाद मोबाइल फोन का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता बन कर उभरा है, मोबाइल फोन निर्माण में विश्व स्तर पर भारत की हिस्सेदारी 11% है।    
  • ICEA-McKinsey रिपोर्ट, 2018 के अनुसार, भारत वर्ष 2025 तक विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 1.25 बिलियन मोबाइल फोन का निर्माण करके अपने इस उद्योग को लगभग 230 बिलियन डॉलर तक पहुँचा सकता है।

नेटवर्क उत्पादों के संदर्भ ने प्रवेश का पैटर्न

(PATTERN OF ENTRY IN CASE OF NPs):    

  • नेटवर्क उत्पादों के लिये निर्यात बाज़ार में देशों का प्रवेश, उभार, उत्तरजीविता और सापेक्ष गिरावट का पैटर्न 1960 के दशक के दौरान जापानी अर्थशास्त्री कानामे अकामात्सु (Kaname Akamatsu) द्वारा तैयार किये गए ‘वाइल्ड-गीज फ्लाइंग मॉडल’ (Wildgeese Flying Model) अर्थात् उल्टा वी पैटर्न (Inverted V Pattern) के अनुरूप है।  

flying-pattern

  • जब जापान उल्टा वी पैटर्न में गिरते हुए चरण में है वहीं चीन जैसे अधिकांश देश उल्टा वी पैटर्न के परिवर्तनकारी बिंदु तक पहुँच गए हैं, जबकि भारत ने अभी इस पैटर्न में हाल ही में कुछ प्रगति की है।       

रोजगार एवं जीडीपी संभावित लाभ

(POTENTIAL GAINS IN EMPLOYMENT AND GDP):

NP-Niryat

  • नेटवर्क उत्पादों का विश्व निर्यात वर्ष 2018 में यूएस $ 5.6 ट्रिलियन के वर्तमान वास्तविक मूल्य से वर्ष 2025 में यूएस $ 6.9 ट्रिलियन के अनुमानित मूल्य और वर्ष 2030 में यूएस $ 8.1 ट्रिलियन तक बढ़ जाएगा। 
  • इस अवधि के दौरान नेटवर्क उत्पादों के संदर्भ में भारत का निर्यात वर्ष 2018 के वर्तमान वास्तविक मूल्य 32.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (विश्व निर्यात का 0.6%) से बढ़कर वर्ष 2025 में यूएस $ 248.2 बिलियन (विश्व निर्यात का 3.6%) और वर्ष 2030 तक यूएस $ 490.7 बिलियन (विश्व निर्यात का 6.1%) तक करने का लक्ष्य है।

मुक्त व्यापार समझौता (FREE TRADE AGREEMENTS):

Export-Import

  • वर्ष 1993-2018 के बीच भारत ने विभिन्न देशों के साथ 14 मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किये। इससे भारत के निर्यात पर इन समझौतों का समग्र प्रभाव विनिर्मित उत्पादों के लिये 13.4% और कुल व्यापार के संदर्भ में 10.9% है। वहीं आयात पर इन समझौतों का समग्र प्रभाव विनिर्मित उत्पादों के लिये 12.7% और कुल व्यापार के संदर्भ में 8.6 % के निम्नतर स्तर पर पाया जाता है।
  • इसलिये व्यापार संतुलन के दृष्टिकोण से भारत को विनिर्मित उत्पादों के संबंध में प्रति वर्ष व्यापार अधिशेष में 0.7% की वृद्धि और कुल व्यापार के संबंध में प्रतिवर्ष व्यापार अधिशेष में 2.3 % का लाभ स्पष्ट तौर पर प्राप्त हुआ है।

आगे की राह

  • तीव्र एवं निरंतर निर्यात वृद्धि हासिल करने वाले देशों का अनुभव बताता है कि भारत नेटवर्क उत्पादों के लिये निर्यात बाज़ार में अपनी भागीदारी को मजबूत करने के लिये लक्षित नीतियों को अपनाकर अधिक लाभांश प्राप्त कर सकता है।
  • अपेक्षाकृत निम्न कौशल वाली व्यापक जनशक्ति के साथ भारत की वर्तमान ताकत मुख्य रूप से नेटवर्क उत्पादों को असेम्बल करने में है। 
  • वहीं लघु एवं मध्यम अवधि उद्देश्य के तहत असेंबलिंग गतिविधियों का बड़े पैमाने पर विस्तार किया जाना चाहिए जिससे पार्ट्स एवं संघटकों [वैश्विक मूल्य शृंखला (GVCs) के अंतर्गत उन्नयन करके] के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर आयातित पार्ट्स एवं संघटकों का प्रयोग करके दीर्घकालिक उद्देश्य भी पूरे किये जाने चाहिये।