पूर्वोत्तर में पारंपरिक बीज संरक्षण पद्धतियाँ | 14 Nov 2023

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

नगालैंड में आओ और सुमी नगा समुदाय पीढ़ियों से चली आ रही प्रथाओं का पालन करते हुए पारंपरिक बीज संरक्षण प्रथाओं, उगाई गई फसल से प्राप्त बीजों को क्रमिक चक्रों के लिये संरक्षित करते हैं।

  • परंपरागत रूप से कृषि प्रधान, आओ और सुमी नगा समुदाय झूम या स्थानान्तरी कृषि (Jhum or Shifting Cultivation) करते हैं।

नोट: बीज संरक्षण से तात्पर्य भविष्य में उपयोग के लिये जान-बूझकर पौधों से बीज का भंडारण करना है। इसमें विशिष्ट परिस्थितियों में बीजों को इकट्ठा करना, भंडारण करना तथा उनका रखरखाव करना शामिल है ताकि रोपण के समय उनकी व्यवहार्यता एवं अंकुरित होने की क्षमता सुनिश्चित की जा सके।

  • बीज संरक्षण का लक्ष्य आनुवंशिक विविधता की रक्षा करना, पौधों की प्रजातियों का संरक्षण करना और कृषि उत्पादकता को बनाए रखना है।

नगालैंड के आओ और सुमी नगा समुदाय कौन हैं?

  • आओ नगा समुदाय:
    • आओ नगा जनजाति मुख्य रूप से नगालैंड के मोकोकचुंग ज़िले में रहती है, जो त्सुला (दिखु) घाटी से लेकर त्सुरंग (दिसाई) घाटी तक फैली हुई है।
    • माना जाता है कि आओ नगा इंडोनेशिया, मलेशिया और म्याँमार जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से आए हैं, जो मंगोलियाई वंश की नगा जनजातियों का हिस्सा हैं।
    • आओ जनजाति के अंदर दो नस्लीय समूह, मोंगसेन और चोंगली, अलग-अलग उप समुदाय हैं।
    • आओ समुदाय ईसाई धर्म एवं पश्चिमी शिक्षा अपनाने वाले पहला नगा समुदाय बना।
  • सुमी नगा समुदाय:
    • सुमी नगा लोग नगालैंड का एक और स्वदेशी समुदाय है जो अपनी अनूठी सांस्कृतिक प्रथाओं एवं समृद्ध कृषि विरासत के लिये जाना जाता है।
    • वे तुलुनी, अहुना और सुखेनेये जैसे विभिन्न त्योहार मनाते हैं, जो अमूमन पारंपरिक नृत्यों, गीतों तथा भोज के साथ कृषि चक्रों पर केंद्रित होते हैं।
    • कई अन्य नगा जनजातियों के समान, सुमी नगा पारंपरिक रूप से झूम अथवा स्थानांतरित खेती करते थे, जिसमें वे चावल, बाजरा, सेम, दाल, काली मिर्च तथा तंबाकू जैसी फसलें उगाते थे।

स्थानान्तरी कृषि क्या है? 

  • स्थानान्तरी कृषि, जिसे स्थानीय भाषा में 'झूम' कहा जाता है, पूर्वोत्तर भारत के स्वदेशी समुदायों के बीच कृषि की एक व्यापक रूप से प्रचलित प्रणाली है।
  • इस प्रथा को स्लैश-एंड-बर्न कृषि के रूप में भी जाना जाता है, इसमें किसान कृषि उद्देश्यों के लिये भूमि निर्माण हेतु वनस्पति को काटकर और जंगलों एवं वुडलैंड्स को जलाकर भूमि को साफ करते हैं।
  • यह कृषि के लिये भूमि तैयार करने का एक बहुत आसान और बहुत तीव्र तरीका प्रदान करता है।
  • झाड़ी और खरपतवार को आसानी से हटाया जा सकता है। अपशिष्ट पदार्थों को जलाने से कृषि के लिये आवश्यक पोषक तत्त्व मिलते हैं।
  • यह एक परिवार को भोजन, चारा, ईंधन, आजीविका देता है तथा उनकी पहचान से निकटता से जुड़ा हुआ है।
  • जंगलों और वृक्षों की कटाई के कारण इस प्रथा से मृदा का क्षरण होता है और नदियों के प्रवाह पर भी असर पड़ सकता है।