शांति का अधिकार | 18 Jul 2025

स्रोत: द हिंदू

मद्रास उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि धार्मिक सभाएँ, जिनमें सार्वजनिक रूप से ऊँची आवाज़ में की जाने वाली प्रार्थनाएँ शामिल हैं, ज़िला कलेक्टर की पूर्व अनुमति के बिना आवासीय परिसरों में आयोजित नहीं की जा सकतीं।

  • प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि उन्हें अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) के तहत अपने धार्मिक प्रथाओं को जारी रखने के लिये पड़ोसियों की सहमति प्राप्त है। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी कहा कि उनके द्वारा किये जा रही प्रार्थनाएँ शांतिपूर्ण हैं और इसका उद्देश्य शांति का प्रचार करना है।
    • हालाँकि न्यायालय ने फैसला सुनाया कि धार्मिक स्वतंत्रता दूसरों के शांति के अधिकार पर हावी नहीं हो सकती तथा इस बात पर जोर दिया कि प्रार्थना व्यक्तिगत होनी चाहिये और इससे सार्वजनिक अशांति नहीं होनी चाहिये।
  • यह निर्णय भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व निर्णय की याद दिलाता है जिसमें शांति के अधिकार और ध्वनि प्रदूषण से सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई थी।
    • वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि ध्वनि प्रदूषण अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, जो जीवन और शांतिपूर्ण जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धार्मिक उद्देश्यों के लिये भी लाउडस्पीकर का उपयोग करना मौलिक अधिकार नहीं है।
      • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह मामला धर्म का नहीं, बल्कि दूसरों को जबरन शोर सुनने के लिये मज़बूर किये जाने से बचाने का है।
    • अनुच्छेद 21 शांति के अधिकार को सुनिश्चित करता है, और किसी को भी ऐसा शोर करने का अधिकार नहीं है जिससे दूसरों को परेशानी हो, यहाँ तक कि अपने घर में भी नहीं।
  • वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत, "वायु प्रदूषक" में शोर भी शामिल है, यदि वह हानिकारक सांद्रता में मौजूद हो और मनुष्यों, पशुओं, पौधों, संपत्ति या पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकता हो।

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