Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 16 जून, 2021 | 16 Jun 2021

राजा परबा

14 जून, 2021 से ओडिशा में 3 दिवसीय ‘राजा परबा’ की शुरुआत हो गई है। इस दिवस का लक्ष्य नारीत्व के महत्त्व और उनके योगदान को रेखांकित करना है। इस अवधि के दौरान यह माना जाता है कि मानसून के आगमन के साथ धरती माता को मासिक धर्म होता है और वह भविष्य की कृषि गतिविधियों के लिये स्वयं को तैयार करती हैं। ज्ञात हो कि मासिक धर्म को प्रजनन क्षमता का संकेत माना जाता है। उत्सव की शुरुआत ‘मिथुन संक्रांति’ से एक दिन पूर्व होती है और उसके दो दिन बाद यह समाप्त होता है। त्योहार के पहले दिन को ‘पहिली राजा’ कहा जाता है, जबकि दूसरे दिन को ‘मिथुन संक्रांति’ और तीसरे दिन को ‘भु दहा’ या ‘बसी राजा’ कहा जाता है। परबा के दौरान ओडिशा के लोग कोई भी निर्माण कार्य, जुताई अथवा कोई ऐसा कार्य नहीं करते हैं, जिसके लिये मिट्टी को खोदने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की गतिविधियों को न करने का प्राथमिक उद्देश्य धरती माँ (भूमि देवी) को उनके नियमित कार्य से अवकाश प्रदान करना होता है। यह त्योहार गर्मी के मौसम की समाप्ति और मानसून के आगमन के साथ भी जुड़ा हुआ है और इसीलिये यह कृषि से संबंधित समुदायों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

‘जीवन वायु’ उपकरण

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- रोपड़ (IIT-R) के शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है, जिसे ‘कंटीन्यूअस पॉज़िटिव एयरवे प्रेशर’ (CPAP) मशीन के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। ‘जीवन वायु’ नामक यह उपकरण 60 लीटर प्रति मिनट (LPM) तक उच्च प्रवाह ऑक्सीजन प्रदान करने में सक्षम है। पारंपरिक तौर पर CPAP मशीन का प्रयोग वायुमार्ग को खुला रखने के लिये हल्के वायुदाब के रूप में किया जाता है और यह साँस लेने में समस्या और ‘स्लीप एपनिया’ से पीड़ित रोगियों के लिये काफी उपयोगी होता है। ‘कंटीन्यूअस पॉज़िटिव एयरवे प्रेशर’ (CPAP) थेरेपी यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि नींद के दौरान साँस लेने से वायुमार्ग में कोई समस्या उत्पन्न न हो। इस थेरेपी का उपयोग उन शिशुओं के इलाज के लिये भी किया जाता है, जिनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं। नया उपकरण भारत में डिज़ाइन किया गया अपनी तरह का पहला उपकरण है, जो बिजली के बिना भी काम करता है और दोनों प्रकार की ऑक्सीजन उत्पादन इकाइयों जैसे- ऑक्सीजन सिलेंडर और ऑक्सीजन पाइपलाइनों के लिये अनुकूलित है। इस उपकरण को गैस मिश्रण में ऑक्सीजन की सांद्रता को 40 प्रतिशत से ऊपर बनाए रखने के लिये डिज़ाइन किया गया है, साथ ही इसमें एक वायरल फिल्टर भी मौजूद है, जिसमें 99.99 प्रतिशत की प्रभावकारिता का दावा किया गया है। 

लकड़ी से निर्मित पहला अंतरिक्ष उपग्रह

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने इस वर्ष के अंत तक दुनिया के पहले लकड़ी से निर्मित उपग्रह, ‘WISA वुडसैट’ को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने की योजना बनाई है। इस उपग्रह का मिशन अंतरिक्षयान संरचनाओं में प्लाईवुड जैसी लकड़ी की सामग्री की प्रयोज्यता का परीक्षण करना है और इस पर चरम अंतरिक्ष स्थितियों जैसे- गर्मी, ठंड, वैक्यूम और विकिरण आदि के प्रभाव का परीक्षण करना है। इसे न्यूज़ीलैंड के माहिया प्रायद्वीप प्रक्षेपण परिसर से ‘रॉकेट लैब इलेक्ट्रॉन’ नामक रॉकेट के साथ वर्ष 2021 के अंत तक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा। फिनलैंड में डिज़ाइन और निर्मित यह उपग्रह लगभग 500-600 किलोमीटर की ऊँचाई पर परिक्रमा करेगा। ‘WISA वुडसैट’ एक 10x10x10 सेंटीमीटर नैनो उपग्रह है, जिसे प्लाईवुड से बने मानकीकृत बॉक्स और सतह पैनलों से बनाया गया है। इसके तहत निर्माताओं ने लकड़ी से आने वाली वाष्प को कम करने और परमाणु ऑक्सीजन के क्षरणकारी प्रभावों से बचाने के लिये एक बहुत पतली एल्युमीनियम ऑक्साइड परत का भी उपयोग किया है। इस उपग्रह में एक कैमरा भी लगाया गया है, जो इस बात की निगरानी करने में मदद करेगा कि लकड़ी से निर्मित यह उपग्रह अंतरिक्ष की परिस्थतियों के साथ किस प्रकार व्यवहार कर रहा है। 

‘सिल्वरलाइन’ परियोजना

हाल ही में केरल मंत्रिमंडल ने ‘सिल्वरलाइन’ परियोजना के लिये भूमि अधिग्रहण को मंज़ूरी दे दी है। इस परियोजना में राज्य के दक्षिणी हिस्से और राज्य की राजधानी ‘तिरुवनंतपुरम’ को कासरगोड के उत्तरी हिस्से से जोड़ने के लिये राज्य में एक सेमी हाई-स्पीड रेलवे कॉरिडोर का निर्माण किया जाना शामिल है। यह लाइन तकरीबन 529.45 किलोमीटर लंबी होगी, जिसमें 11 स्टेशनों के माध्यम से राज्य के 11 ज़िलों को जोड़ा जाएगा। इस परियोजना के पूरा होने से कासरगोड से तिरुवनंतपुरम तक की यात्रा चार घंटे से भी कम समय में पूरी की जा सकेगी। केरल रेल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (KRDCL) द्वारा इस परियोजना को वर्ष 2025 तक पूरा किया जाएगा। ‘केरल रेल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड’ केरल सरकार और केंद्रीय रेल मंत्रालय के बीच एक संयुक्त उद्यम है। ‘सिल्वरलाइन’ परियोजना के माध्यम से राज्य की मौजूदा रेलवे अवसंरचना के भार को कम किया जा सकेगा, साथ ही इसके माध्यम से राज्य के निवासियों को तीव्र सार्वजानिक परिवहन सुविधा उपलब्ध की जा सकेगी। इससे सड़कों पर भीड़भाड़ कम होगी और हादसों एवं मौतों की संख्या को भी कम किया जा सकेगा।