Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 जून, 2023 | 02 Jun 2023

डेक्कन क्वीन ट्रेन 

डेक्कन क्वीन ट्रेन ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे के इतिहास में एक विशेष स्थान रखती है। यह ट्रेन सेवा 1 जून, 1930 को शुरू की गई तथा बाद में मध्य रेलवे के रूप में जाना गया। अपने 92 वर्ष के इतिहास के दौरान ट्रेन परिवहन के साधन से एक ऐसी संस्था में बदल गई है जो यात्रियों की पीढ़ियों को जोड़ती है। इन वर्षों में इस क्षेत्र में अनेक प्रकार की प्रगति देखी गई जैसे कि एक डाइनिंग कार की शुरुआत, रोलर बियरिंग कोच और ऑक्सफोर्ड ब्लू कलर स्कीम को अपनाना। इसने भारत की पहली सुपरफास्ट, लंबी दूरी की इलेक्ट्रिक-चालित, वेस्टिबुल ट्रेन के रूप में रिकॉर्ड स्थापित किया। इस ट्रेन में एक समर्पित महिला कार भी थी। वर्तमान में डेक्कन क्वीन पुणे और मुंबई के बीच यात्रा करने वाले यात्रियों के लिये समयबद्धता और लोकप्रियता के चलते प्रसिद्ध है।

कच्चे तेल के अपशिष्ट जल की बहाली के लिये हरित उपाय 

इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नॉलोजी (IASST), गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने कच्चे तेल के अन्वेषण और प्रसंस्करण के दौरान निर्मुक्त होने वाले उपोत्पाद जल के निपटान से उत्पन्न होने वाली पर्यावरणीय चुनौतियों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। उपोत्पाद के रूप में निकले हुए जल में हानिकारक घटक और रसायन होते हैं जो नदियों एवं नालों में बहाए जाने पर जल की गुणवत्ता को खराब कर सकते हैं और जलीय जीवन को क्षति पहुँचा सकते हैं। अनेक प्रयोगों तथा अध्ययनों के माध्यम से IASST के शोधकर्त्ताओं ने पौध आधारित बायोमैटेरियल, बायोसर्फैक्टेंट (रोगाणुओं के द्वितीयक मेटाबोलाइट्स) और NPK उर्वरक का मिश्रण तैयार किया है। इस नवोन्मेषी मिश्रण में कम समय-सीमा के भीतर उपोत्पाद के रूप में निकले हुए जल को पहले जैसा किया जा सकता है। टीम ने इस विकास कार्य पर एक भारतीय पेटेंट दायर किया है। यह "अद्भुत मिश्रण" न केवल जल के बहाव से पर्यावरण प्रदूषण को रोकता है बल्कि उपचारित जल को विभिन्न प्रयोजनों के लिये पुन: उपयोगी बनाता है। इस दृष्टिकोण का उपयोग करके जल के हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सकता है जिससे एक सतत् भविष्य का निर्माण किया जा सकता है। इसके अलावा उपचारित जल फसल उत्पादन को बढ़ाकर तथा बढ़ती वैश्विक खाद्य मांग को पूरा करके हरित क्रांति में योगदान दे सकता है।

ई-सिगरेट-वापिंग की जटिलताएँ: भारत का दृष्टिकोण और चिंताएँ

भारत में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2004 के तहत संशोधित नियमों पर ज़ोर देते हुए विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर तंबाकू विरोधी स्वास्थ्य संदेशों और चेतावनियों को बढ़ावा देने के लिये OTT प्लेटफाॅर्मों को निर्देशित किया है। हालाँकि नियमों में ई-सिगरेट या निकोटीन युक्त वेप्स शामिल नहीं हैं, जिन्हें स्वास्थ्य और सुरक्षा चिंताओं के कारण वर्ष 2019 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। प्रतिबंध के बावजूद ये उपकरण कालाबाज़ारी के माध्यम से देश में प्रवेश कर रहे हैं, विशेष रूप से चीन से। ई-सिगरेट, जिसे इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के रूप में भी जाना जाता है और वेप्स इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं जो एक तरल घोल (ई-तरल) को वाष्पीकृत करते हैं जिसमें निकोटीन, सुगंध तथा अन्य रसायन होते हैं। उन्हें तंबाकू को जलाए बिना पारंपरिक सिगरेट पीने के अनुभव का अनुकरण करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। ई-सिगरेट और वेप धुएँ के बजाय वाष्प का उत्पादन करते हैं, जिसका उपयोगकर्ता द्वारा उपयोग किया जाता है।

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भारत के पश्चिमी घाट में निर्जलीकरण सहिष्णु संवहनी पादप: कृषि अनुप्रयोगों हेतु संभावित   

भारत का जैवविविधता हॉटस्पॉट, पश्चिमी घाट, निर्जलीकरण सहिष्णु संवहनी पादपों (डेसीकेशन टोलेरेंट वैस्कुलर प्लांट्स) की 62 प्रजातियों का घर है। निर्जलीकरण सहिष्णु संवहनी पादप (डेसीकेशन टोलेरेंट वैस्कुलर प्लांट्स- डीटी) अत्यधिक निर्जलीकरण का सामना करने में सक्षम हैं क्योंकि उनमें विद्यमान जल की मात्रा का 95% तक अपव्यय हो जाने के बाद भी वे जल के पुनरुपयोग से स्वयं को पुनर्जीवित कर लेते हैं। यह अनूठी क्षमता उन्हें ऐसे प्रतिकूल एवं शुष्क वातावरण में जीवित रहने में सक्षम बनाती है जिसमें अधिकांशतः अन्य पौधे जीवित ही नहीं रह सकते। हाल ही में हुए अध्ययन ने पश्चिमी घाटों में सहिष्णु संवहनी प्रजातियों की प्रचुरता पर प्रकाश डाला है, जो पहले से ज्ञात नौ प्रजातियों से भी अधिक है। अनुसंधान इन प्रजातियों की एक सूची प्रदान करता है, जिसमें 16 प्रजातियाँ भारतीय स्थानिक (इंडियन एंडेमिक) हैं और 12 पश्चिमी घाट के बाहरी हिस्सों के लिये विशिष्ट हैं। यह अध्ययन विशेष रूप से इन लचीले पौधों के लिये महत्त्वपूर्ण निवास स्थान के रूप में रॉक आउटक्रॉप्स (चट्टानी भू-भागों) में आंशिक रूप से घने वनों की पहचान करता है। डीटी पौधों की नौ प्रजातियों को नए रूप में अधिसूचित किया गया है, वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ट्राइपोगोन कैपिलेटस एक एपिफाइटिक डीटी एंजियोस्पर्म के प्रथम रिकॉर्ड का प्रतिनिधित्व करता है। सहिष्णु संवहनी पादपों का अध्ययन करके शोधकर्त्ता पश्चिमी घाट की जैवविविधता और पारिस्थितिकी में इन प्रजातियों के संरक्षण में योगदान करते हैं। इसके अतिरिक्त निर्जलीकरण को सहन करने की उनकी क्षमता के पीछे के तंत्र को समझने से कम जल की आवश्यकता वाले शुष्क प्रतिरोधी फसलों को विकसित करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। यह अध्ययन कृषि अनुप्रयोगों के लिये विशेष रूप से जल की कमी वाले क्षेत्रों में नई संभावनाओं को विकसित करता है।

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