प्राइमेट इन पेरिल | 02 Jun 2025

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

प्राइमेट्स इन पेरिल नामक एक हालिया रिपोर्ट में पूरे विश्व की 25 प्राइमेट प्रजातियों के समक्ष बढ़ते खतरों पर प्रकाश डाला गया है।

  • इन 25 प्रजातियों में से 6 अफ्रीका से, 4 मेडागास्कर से, 9 एशिया से और 6 दक्षिण अमेरिका (नियोट्रॉपिक्स) से संबंधित हैं। 

रिपोर्ट में चिह्नित प्रमुख प्राइमेट प्रजातियाँ कौन-सी हैं?

  • सर्वाधिक संकटग्रस्त प्रजातियाँ: रिपोर्ट में क्रॉस रिवर गोरिल्ला और तापनुली ओरंगुटान को गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों के रूप में दर्शाया गया है।
    • क्रॉस रिवर गोरिल्ला की संख्या कैमरून और नाइजीरिया में कम-से-कम 11 समूहों में बँटी हुई है,  जबकि सर्वाधिक संकटग्रस्त ग्रेट एप, तपानुली ओरांगुटान की संख्या 800 से भी कम है
    • दोनों को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा गंभीर रूप से संकटग्रस्त की सूची में रखा गया है।
  • भारत की प्राइमेट प्रजातियाँ: फेयर लंगूर और वेस्टर्न हूलॉक गिबन, जो पूर्वोत्तर भारत तथा बांग्लादेश में पाए जाते हैं, को इस रिपोर्ट में उनके सामने आने वाले खतरों के आधार पर मूल्यांकित किया गया था, लेकिन अंततः इन्हें अंतिम सूची में शामिल नहीं किया गया।
    • फेयर लंगूर: यह प्राइमेट अपनी विशिष्ट ‘चश्मेदार’ (Spectacled) रूप-रंग के लिये जाना जाता है। यह मुख्य रूप से पूर्वी बांग्लादेश और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों विशेषकर असम, मिज़ोरम एवं त्रिपुरा में पाया जाता है।
      • व्यवहार: वे वृक्षवासी (मुख्यतः वृक्षों पर रहते हैं), दिनचर  (दिन में सक्रिय) तथा पर्णाहारी (मुख्यतः पत्तियों को भोजन के रूप में ग्रहण करने वाले) होते हैं व नई आई पत्तियों को विशेष प्राथमिकता देते हैं।
      • संरक्षण स्थिति: इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है और IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया है।
        • यह त्रिपुरा में तीन संरक्षित क्षेत्रों अर्थात् सिपाहीजाला, तृष्णा और गुमटी वन्यजीव अभयारण्यों में पाया जाता है।
      • आवास स्थान: यह सदाबहार या अर्द्ध-सदाबहार वनों, मिश्रित नम पर्णपाती वनों, साथ ही बाँस-समृद्ध क्षेत्रों, हल्के वुडलैंड्स और चाय बागानों के पास के क्षेत्रों को पसंद करता है।

Phayre’s_Langur

  • पश्चिमी हूलॉक गिब्बन ( हूलॉक हूलॉक ): यह भारत, बांग्लादेश और म्याँमार के उष्णकटिबंधीय वनों में पाया जाने वाला एक पूँछ रहित वानर है, जिसमें काले नर की आँखों के ऊपर एक सफेद पट्टी होती है जबकि मादा की आँखे हल्के रंग (बेज, भूरा, ग्रे) की होती है।
    • ये प्रजाति अपनी ऊँची, सुरीली युगल आवाज़ (द्वैत स्वर) के लिये विख्यात है, जिसका प्रयोग नर-मादा जोड़े द्वारा अपने क्षेत्र को चिह्नित करने हेतु किया जाता है। दोनों लिंगों में स्वर प्रतिरूप (vocal patterns) समान होते हैं।

Western_Hoolock_Gibbo

  • व्यवहार: गिब्बन वृक्षीय प्राणी हैं और छलाँग लगाकर तथा झूलकर छतरी के ऊपर विचरण करते हैं तथा इनका सर्वाहारी आहार पौधे, अकशेरुकी तथा पक्षियों के अंडे होते हैं।
    • वे एकल परिवार समूह में रहते हैं, एक ही संतान को जन्म देते हैं जो लगभग दो वर्षों तक माँ के साथ रहती है।
  • आवास स्थान: वे नम पर्णपाती, सदाबहार, उपोष्णकटिबंधीय और निचले जंगलों में पनपते हैं, जिनका विस्तार पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश और पश्चिमी/उत्तरी म्याँमार तक फैला हुआ है
  • संरक्षण स्थिति: इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है और IUCN रेड सूची में इसे लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

भारत में पाई जाने वाली अन्य प्रमुख प्राइमेट प्रजातियाँ कौन-सी हैं? 

  • लोरिस:
    • ग्रे स्लेंडर लोरिस (लोरिस लिडेकेरियानस): पतली, रात्रिचर प्राइमेट प्रजाति जिसमें एक सूक्ष्म मेरुदंडीय धारी होती है।
      • दो उप-प्रजातियाँ: मैसूर (बड़ी, धूसर) और मालाबार (लाल-भूरी, गोल आँखों के धब्बे)।
      • पश्चिमी और पूर्वी घाटों में पाई जाती है।
    • बंगाल स्लो लोरिस (नाइक्टिसेबस बेंगालेंसिस): इसमें पूँछ नहीं होती है और इसकी आँखें बड़ी होती हैं।
      • इसके बालों का रंग राख-धूसर से लेकर पीले-भूरे तक हो सकता है।
      • यह भारत के पूर्वोत्तर भाग में, विशेष रूप से ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण में पाया जाता है।
  • लंगूर:
    • जी का गोल्डन लंगूर (ट्रेचीपिथेकस जीई): मौसमी फर का रंग क्रीम/ऑफ-व्हाइट से बदलकर सुनहरा-नारंगी हो जाता है।
      • काले चेहरे, हथेलियों और तलवों के साथ इसकी पहचान सुनहरे रंग की मूँछों से होती है।
      • असम में मानस और संकोश नदियों के बीच पाया जाता है।
    • नीलगिरी लंगूर (सेमनोपिथेकस जॉनी): इसके शरीर पर चमकदार काले रंग का कोट होता है, जिसमें पीले रंग के बालों की धारियाँ होती हैं।
      • कोडागु से कन्याकुमारी पहाड़ियों तक पश्चिमी घाट में रहते हैं।
    • कैप्ड लंगूर (ट्रेचीपिथेकस पाइलेटस): इसके सिर पर विशेष रंगीन "कैप" और लंबी पूँछ होती है।
      • यह असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में पाए जाते हैं।
  • मकाक:
    • सिंहपूँछ मकाक (मकाका सिलेनस): गहन, चमकदार रंग का शरीर; मुख के चारों ओर लंबा धूसर अयाल (गुच्छेदार रेखा) तथा पूँछ के सिरे पर गुच्छेदार बाल।
      • यह कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के पश्चिमी घाट के वनों का स्वदेशी प्राणी है।
    • बॉनेट मकाक (मकाका रेडिएटा): सर पर बालों की विशिष्ट घुमावदार “कैप” जैसा निशान होता है, जिससे इसे पहचाना जाता है।
      • लंबी पूँछ, शरीर से भी लंबी, जो दक्षिण भारत में पाई जाती है।
    • स्टंप-टेल्ड मैकाक (मकाका आर्कटोइड्स): भारत का सबसे बड़ा मैकाक, छोटी पूँछ, दाढ़ी जैसी बनावट वाला लाल-गुलाबी चेहरा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन, किसी वृक्ष या लकड़ी के लट्ठे में बने छिद्र में से कीटों को खुरचने के लिये लकड़ी का औजार बनाता है? (2023)

(a) मत्स्यन मार्जार (फिशिंग कैट)
(b) औरंगउटैन
(c) ऊदबिलाव
(d) स्लॉथ बियर

उत्तर: (b)