प्रीलिम्स फैक्ट्स: 30 जुलाई, 2020 | 30 Jul 2020

 बल्क ड्रग और मेडिकल डिवाइस पार्क योजना

Scheme for promotion of Bulk Drug Parks

हाल ही में केंद्र सरकार ने बल्क ड्रग और मेडिकल डिवाइस पार्क (Scheme for promotion of Bulk Drug Parks) के विकास के लिये दिशा-निर्देशों की घोषणा की है।

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योजना के बारे में:

  • इस योजना के अंतर्गत राज्यों की भागीदारी के साथ अगले पाँच वर्षों में 3 बल्क ड्रग और मेडिकल डिवाइस पार्क स्थापित किये जाएंगे।
  • केंद्र सरकार राज्यों को अनुदान के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
    • अनुदान राशि उत्तर-पूर्व और पहाड़ी राज्यों के लिये परियोजना की लागत का 90 प्रतिशत तथा अन्य राज्यों के मामले में 70 प्रतिशत होगी।
  • इन पार्कों में आम सुविधाएँ जैसे-सॉल्वेंट रिकवरी प्लांट, डिस्टिलेशन प्लांट, पावर एंड स्टीम यूनिट्स, कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट आदि होंगी।

योजना का प्रभाव:

  • इस योजना से देश में थोक दवाओं की विनिर्माण लागत में कमी और थोक दवाओं के लिये अन्य देशों पर निर्भरता में कमी होने की उम्मीद है।
  • इसके अलावा दवा विनिर्माण से संबंधित सामान्य बुनियादी सुविधाएँ भी मज़बूत होंगी।

कार्यान्वयन:

  • इस योजना का कार्यान्वयन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा स्थापित राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों (State Implementing Agencies- SIA) द्वारा किया जाएगा।

पृष्ठभूमि:

  • भारतीय दवा उद्योग विश्व का तीसरा दवा उद्योग है, इसके बावजूद भी भारत दवाओं के निर्माण हेतु आवश्यक कच्चे माल के लिये काफी हद तक आयात पर निर्भर है। 
    • यहाँ तक कि कुछ बल्क ड्रग्स के निर्माण के लिये आयात निर्भरता 80 से 100% है।


नटेश मूर्ति

Natesa of Rajasthan temple returns to India

वर्ष 1998 में भारत से चोरी की गई ‘नटेश मूर्ति’ को लगभग 22 वर्षों बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया गया है

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मूर्ति के बारे में:

  • यह मूल रूप से राजस्थान के बाड़ौली में स्थित घटेश्वर महादेव मंदिर की 10 वीं शताब्दी की शिव की मूर्ति है
  • यह लगभग 4 फीट की ऊँचाई के साथ प्रतिहार शैली में एक दुर्लभ बलुआ पत्थर से निर्मित मूर्ति है
  • इसके दाहिने पैर के पीछे नंदी का एक सुंदर चित्रण दर्शाया गया है।

घटेश्वर मंदिर:

  • घटेश्वर मंदिर बाड़ौली के मंदिर समूहों में से एक है।
  • इस मंदिर में शिव के नटराज स्वरुप को उत्कीर्ण किया गया है।
  • यह मंदिर उड़ीसा मंदिर शैली से मिलता जुलता है। 
  • अलंकृत मंदिर, तोरण द्वार, शिव का बलिष्ठ रूप आदि इसकी विशेषताएँ है।

प्रतिहार शैली:

  • गुर्जर-प्रतिहार एक विशाल साम्राज्य था जिसके अंतर्गत गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश का क्षेत्र आता था। 
  • राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ उसमें उसे गुर्जर-प्रतिहार अथवा महामारु कहा गया।
  • इस शैली के अंतर्गत प्रारंभिक निर्माण मंडौर के प्रतिहारों, सांभर के चौहानों तथा चित्तौड़ के मौर्यों ने किया।
  • इस प्रकार के मंदिरों में केकींद का नीलकंठेश्वर मंदिर, किराड़ू का सोमेश्वर मंदिर प्रमुख हैं।
  • इस क्रम को आगे बढ़ाने वालों में जालौर के गुर्जर-प्रतिहार रहे और बाद में चौहानों, परमारों और गुहिलों ने मंदिर शिल्प को समृद्ध बनाया।


पम्पा नदी 

Pampa river sand removal nearing end

पम्पा/पम्बा नदी के तट से लगभग एक माह पहले शुरू हुई रेत हटाने का प्रक्रिया पूरी होने वाली है।

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पम्पा नदी के बारे में:

  • पम्पा नदी केरल की पेरियार और भरतपुझा के बाद तीसरी सबसे बड़ी नदी है।
  • इसकी लंबाई 176 किलोमीटर है।  
  • केरल का प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है। 
  • इस नदी को 'दक्षिणा भागीरथी' और 'नदी बारिस' के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह केरल में पश्चिमी घाट में पेरुमेदु पठार की पुलचिमलाई पहाड़ी से निकलती है। 


माउस लेमूर

Mouse Lemur

हाल ही में पूर्वोत्तर मेडागास्कर के उष्णकटिबंधीय जंगलों में माउस लेमूर (Mouse Lemur) की एक नई प्रजाति पाई गई है।

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प्रमुख बिंदु:

  • ये प्राणी मेडागास्कर के लगभग सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
    • मेडागास्कर दुनिया की प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक है।
  • हाल ही में पाई गई प्रजाति दुनिया में सबसे छोटे प्राइमेट्स में से एक है।
  • इसकी लंबाई नाक से पूंछ तक लगभग 26 सेमी (10.2 इंच) है और इसका द्रव्यमान केवल 60 ग्राम है।
  • इसे माइक्रोसेबस जोनाही (Microcebus Jonahi) का नाम दिया गया है।
  • मेडागास्कर में सभी माउस लेमूर प्रजातियों का लगभग एक तिहाई (31%) अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered) श्रेणी में है।

वर्ग: 

  • यह छोटे शरीरवाला, सर्वभक्षी, निशाचर प्राइमेट, माइक्रोसेबस (Microcebus) वर्ग से संबंधित है।

संकट:

  • प्राकृतिक आवास को नुकसान और इनसे संबंधित क्षेत्र में भूमि के उपयोग में लगातार परिवर्तन इनकी विलुप्ति का कारण बनते जा रहे हैं।