प्रीलिम्स फैक्ट्स: 19 जून, 2020 | 19 Jun 2020

मोबाइल आई-लैब

Mobile I-LAB

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने COVID-19 के परीक्षण की सुविधा प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने के लिये भारत का पहला मोबाइल आई-लैब (Mobile I-LAB) लॉन्च किया।

प्रमुख बिंदु:  

  • यह एक संक्रामक रोग नैदानिक प्रयोगशाला है जिसे देश के सुदूर, आंतरिक एवं दुर्गम क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा। 
  • इस लैब की क्षमता सीजीएचएस (Central Government Health Scheme) दरों पर प्रतिदिन 25 COVID-19 आरटी-पीसीआर परीक्षण,  300 एलिसा परीक्षण के अतिरिक्त टी.बी. एवं HIV परीक्षण की है।    
  • संक्रामक रोग नैदानिक प्रयोगशाला (I-LAB), COVID कमांड रणनीति के तहत केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Union Ministry of Science & Technology) के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology) द्वारा समर्थित है।
  • इस प्रकार सरकारी प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़कर 699 एवं निजी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ कर 254 हो गई है।

सलामी-स्लाइसिंग रणनीति

Salami-Slicing Tactics

भारत और चीन के मध्य हालिया तनाव के मद्देनज़र एक बार पुनः चीन की सलामी-स्लाइसिंग रणनीति (Salami-Slicing Tactics) चर्चा के केंद्र बिंदु में है। 

प्रमुख बिंदु:

  • सैन्य बोलचाल की भाषा में ‘सलामी-स्लाइसिंग’ शब्द ऐसी रणनीति के रूप में वर्णित किया जाता है जिसमें अपने खिलाफ हो रहे विरोध को समाप्त करने एवं नए क्षेत्रों को हासिल करने के लिये खतरों एवं गठबंधनों की प्रक्रिया को विभाजित करना तथा उन पर जीत हासिल करना शामिल है अर्थात् एक संचित प्रक्रिया के माध्यम से एक बहुत बड़ी कार्यवाही को अंजाम देना है। 

चीन के संदर्भ में सलामी स्लाइसिंग रणनीति:

  • चीन के संदर्भ में सलामी स्लाइसिंग दक्षिण चीन सागर एवं हिमालयी क्षेत्रों में क्षेत्रीय विस्तार की रणनीति को दर्शाता है। कई रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि डोकलाम गतिरोध हिमालयी क्षेत्र में चीन की सलामी स्लाइसिंग रणनीति का ही परिणाम था और हाल ही में गलवान घाटी में गतिरोध भी चीन की इसी रणनीति का परिणाम है।
  • विश्लेषकों का मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चीन दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है जो अपने पड़ोसी देशों के क्षेत्राधिकार वाले देशों में अपनी विस्तारवादी नीति को बढ़ावा दे रहा है। यह विस्तार क्षेत्रीय एवं समुद्री दोनों क्षेत्रों में हुआ है।   
  • तिब्बत का अधिग्रहण, अक्साई चिन पर कब्ज़ा और पार्सेल द्वीपों का अधिग्रहण चीनी विस्तारवादी नीति के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।

भारत का वह स्थान जहाँ चीन सलामी स्लाइसिंग रणनीति का प्रयोग कर रहा है: 

  • पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किमी. क्षेत्र पर चीन इस रणनीति का प्रयोग करता है भारत के इस भाग को वह ‘दक्षिण तिब्बत’ कहता है।
  • इसी प्रकार चीन उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर के छोटे क्षेत्रों पर भी अपना दावा करता है।
  • उल्लेखनीय है कि चीन डोकलाम पठार पर नज़र गड़ाए हुए है क्योंकि यहाँ से वह भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर नज़र रख सकता है। गौरतलब है कि सिलिगुड़ी कॉरिडोर पूर्वोत्तर भारत को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है।

हॉग बैजर

Hog Badger

हाल ही में पहली बार पूर्वोत्तर भारत के त्रिपुरा राज्य से प्राप्त हुए हॉग बैजर (Hog Badger) के तीन शावकों को पोषण के लिये सेपाहीजला वन्यजीव अभयारण्य (Sepahijala Wildlife Sanctuary) में स्थानांतरित कर दिया गया है।  

Hog-Badger

प्रमुख बिंदु:

  • इस प्रजाति में सुअर एवं भालू दोनों की विशेषताएँ पाई जाती हैं। यह छोटे फलों एवं जानवरों को खाता है। 
  • वर्ष 2019 में इन्हें पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य में देखा गया था।
  • हॉग बैजर का वैज्ञानिक नाम आर्कटॉनिक्स कॉलरिस (Arctonyx Collaris) है। 
  • इसे IUCN की रेड लिस्ट में असुरक्षित प्रजाति (Vulnerable Species) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। 

सेपाहीजला वन्यजीव अभयारण्य (Sepahijala Wildlife Sanctuary)

  • अगरतला शहर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सेपाहीजला वन्यजीव अभयारण्य, त्रिपुरा राज्य के चार अभयारण्यों में सबसे बड़ा है।
  • यह अभयारण्य कृत्रिम झील तथा प्राकृतिक वनस्पति एवं प्राणि उद्यान से घिरा हुआ है।
  • यह अभयारण्य तेंदुए के बाड़ों के लिये प्रसिद्ध है।

ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट

Great Oxidation Event

हाल ही में नेचर कम्युनिकेशंस (Nature Communications) नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि पृथ्वी के आतंरिक भाग में मेंटल का विकास न केवल वायुमंडल के विकास को नियंत्रित कर सकता था बल्कि जीवन के विकास को भी नियंत्रित कर सकता था।

  • अध्ययन के अनुसार, ‘ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट’ (Great Oxidation Event) से पहले वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा मौजूद थी किंतु यह वायुमंडल में संकेंद्रित नहीं हो सकी।

प्रमुख बिंदु: 

  • वायुमंडल में ऑक्सीजन के संकेंद्रित न होने का मुख्य कारण ज्वालामुखी द्वारा उत्सर्जित गैसों की बड़ी मात्रा के साथ ऑक्सीजन की प्रतिक्रिया थी।
    • जब ज्वालामुखी सक्रिय होते हैं तो उनसे बड़ी मात्रा में गैसों का वायुमंडल में उद्गार होता हैं। इन गैसों की प्रकृति पृथ्वी के मेंटल में सामग्रियों की प्रकृति पर निर्भर करती है।
    • ज्वालामुखी उद्गार के लगातार जारी रहने के कारण इससे बाहर आने वाली सामग्री का उत्पादन कम होता गया जिसने आसानी से ऑक्सीजन के साथ संयोजन किया। और पृथ्वी का मेंटल अधिक से अधिक ऑक्सीकृत होता गया।
  • समय के साथ विभिन्न जीवन-रूपों द्वारा उत्पन्न ऑक्सीजन वातावरण में जमा होती गई। इससे ‘ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट’ की शुरुआत हुई जिससे जटिल जीवन का मार्ग प्रशस्त हुआ।

ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट (Great Oxidation Event): 

  • माना जाता है कि पृथ्वी के वायुमंडल में मुक्त ऑक्सीजन की उपस्थिति के कारण ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट की घटना हुई।
  • यह घटना ऑक्सीजन उत्पन्न करने वाले साइनोबैक्टीरिया के कारण संभव हो सकी जो 2.3 अरब वर्ष पहले बहुकोशिकीय रूपों में थे।
    • साइनोबैक्टीरिया पृथ्वी पर सबसे पुराने जीव माने जाते हैं। ये जीव आज भी महासागरों एवं गर्म क्षेत्रों में मौजूद हैं। इन जीवों ने ऑक्सीजन का उत्पादन करके और बहुकोशिकीय रूपों में विकसित होकर साँस लेने वाले जीवों के उद्भव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • वैज्ञानिकों के अनुसार, समुद्र एवं वातावरण में मुक्त ऑक्सीजन के स्तर में वृद्धि से कुछ ही समय पहले बहुकोशिकीयता (Multicellularity) विकसित हुई थी।