प्रीलिम्स फैक्ट्स: 16 दिसंबर, 2019 | 16 Dec 2019

सरकारी इंस्टेंट मैसेजिंग सिस्टम

Government Instant Messaging System- GIMS

भारत सरकार सुरक्षित आंतरिक उपयोग के लिये व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे लोकप्रिय मैसेजिंग प्लेटफार्मों के समरूप एक सरकारी इंस्टेंट मैसेजिंग सिस्टम (Government Instant Messaging System- GIMS) का परीक्षण कर रही है।

GIMs

  • वर्तमान में GIMS का ओडिशा सहित कुछ राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में परीक्षण किया जा रहा है।

निर्माण:

  • इसका डिज़ाइन और विकास राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatic Centre- NIC) की केरल यूनिट द्वारा किया गया है।
  • इसका निर्माण केंद्र और राज्य सरकार के विभागों तथा संगठनों में कार्यरत कर्मचारियों हेतु अंतः और अंतर्संगठन संचार के लिये किया गया है।
  • GIMS में एकल और समूह संदेश के अलावा सरकारी तंत्र में पदानुक्रमों को ध्यान में रखते हुए दस्तावेज़ और मीडिया साझाकरण के भी प्रावधान हैं।

उद्देश्य:

  • GIMS विदेशी संस्थाओं के स्वामित्व वाले एप्लीकेशंस से संबंधित सुरक्षा चिंताओं से मुक्त होने में लाभदायक होगी।
  • WhatsApp की तरह GIMS में भी एकल संदेश के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन (End-To-End Encryption) की सेवा उपलब्ध है।

सतत् ​​तटीय प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय केंद्र

National Centre for Sustainable Coastal Management-(NCSCM)

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के द्वारा चेन्नई में तटीय संसाधनों और पर्यावरण सहित तटीय प्रबंधन के क्षेत्र में अध्ययन और अनुसंधान के लिये सतत् ​​तटीय प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय केंद्र (National Centre for Sustainable Coastal Management- NCSCM) की स्थापना की गई है।

NCSCM

उद्देश्य

  • इसका उद्देश्य पारंपरिक तटीय और द्वीपीय समुदायों के लाभ और कल्याण के लिये भारत में तटीय और समुद्री क्षेत्रों के एकीकृत एवं स्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
  • इसका उद्देश्य जनभागीदारी, संरक्षण प्रथाओं, वैज्ञानिक अनुसंधान और ज्ञान प्राप्ति के माध्यम से स्थायी तटों को बढ़ावा देना और वर्तमान तथा भावी पीढ़ी का कल्याण करना है।

भूमिका

  • इसमें भू-स्थानिक विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली, तटीय पर्यावरण प्रभाव आकलन, तटीय एवं समुद्री संसाधनों का संरक्षण आदि विभिन्न अनुसंधान विभाग शामिल हैं।
  • सर्वे ऑफ इंडिया (Survey Of India) और NCSCM ने बाढ़, कटाव तथा समुद्र-स्तर में वृद्धि की भेद्यता के मानचित्रण (Mapping) को शामिल करते हुए भारतीय तटीय सीमाओं के लिये खतरे की सीमा की मैपिंग की है।
  • यह केंद्र, राज्य सरकारों और नीति निर्माण से संबद्ध अन्य हितधारकों को एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (Integrated Coastal Zone Management- ICZM) से संबंधित वैज्ञानिक मामलों में भी सलाह देता है।

जंगुबाई गुफा मंदिर और कपलाई गुफाएँ

Jangubai Cave Temple and the Kaplai Caves

महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा पर अवस्थित जंगुबाई गुफा मंदिर और कपलाई गुफाओं (Jangubai Cave Temple and the Kaplai Caves) को गोंड, परधान तथा कोलम आदि आदिवासी जनजातियों द्वारा तीर्थस्थल के रूप में माना जाता है।

Kaplai Caves

कोलम जनजाति

  • कोलम जनजाति (कोलावर) महाराष्ट्र की एक अनुसूचित जनजाति है। ये लोग आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी रहते हैं।
  • इस जनजाति की भाषा कोमली है जो गोंड भाषा की तरह द्रविड़ भाषाओं का मध्यवर्ती समूह है।
  • ये हिंदू धर्म के तहत एक पत्नी/पति विवाह (Monogamy) का पालन करते हैं।
  • वर्ष 2018 में सरकार द्वारा महाराष्ट्र राज्य में कटकारिया (कठोडिया), कोलम और मारिया गोंड को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों के रूप में चिह्नित किया गया है।

गोंड जनजाति

  • गोंड जनजाति छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल में फैली हुई है।
  • मुख्यतः यह जनजाति विंध्य और सतपुड़ा के बीच के जंगलों और पहाड़ी इलाकों में निवास करती है।

परधान जनजाति

  • परधान जनजाति गोंड जनजाति का एक उपसमूह है जो मध्य भारत में रहते हैं।
  • इस जनजाति का अधिकांश हिस्सा महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में रहता है।
  • इस जनजाति के लोगों की प्राथमिक भाषा उनकी अपनी ‘परधान’ भाषा है लेकिन कुछ परधान जनजाति के लोग हिंदी, मराठी और गोंडी भाषा भी बोलते हैं।
  • परधान जनजाति का पारंपरिक व्यवसाय त्योहारों और जीवन के महत्त्वपूर्ण समारोहों में गायन एवं संगीत है।

सतत् विकास सेल

Sustainable Development Cell- SDC

कोयला मंत्रालय (Ministry Of Coal) ने देश में कोयला खनन को पर्यावरण के दृष्टिकोण से सतत् बनाने के उद्देश्य से सतत् विकास सेल (Sustainable Development Cell- SDC) स्थापित करने का निर्णय लिया है।

SDC

उद्देश्य:

  • इसका उद्देश्य खनन कार्य बंद होने के बाद पर्यावरण को होने वाले नुकसान से निपटना है।

भूमिका:

  • SDC पर्यावरण नुकसान को कम करने के उपायों पर एक नीतिगत फ्रेमवर्क तैयार करके कोयला कंपनियों को सलाह देगा।
  • उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग और खनन के कारण पर्यावरण की हानि को न्यूनतम करने पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।
  • इसके अलावा यह कोयला मंत्रालय के नोडल निकाय के रूप में कार्य करेगा।

कार्य:

  • SDC का कार्य योजनाबद्ध तरीकों से आँकड़ों का संग्रह और विश्लेषण, सूचनाओं की प्रस्तुति, सूचना आधारित योजना तैयार करना, सर्वोत्तम अभ्यासों को अपनाना, परामर्श, नवोन्मेषी विचार, स्थल विशेष दृष्टिकोण ज्ञान को साझा करना तथा लोगों और समुदायों के जीवन को आसान बनाना है।
  • इसके अलावा SDC भूमि के पुनर्वितरण और वनीकरण, वायु गुणवत्ता, उत्सर्जन एवं ध्वनि प्रवर्द्धन, खान जल प्रबंधन, खानों का सतत प्रबंधन, सतत् खान पर्यटन, योजना और निगरानी पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही नीति, शोध, शिक्षा और विस्तार का कार्य करेगा।