प्रीलिम्स फैक्ट्स: 01 जुलाई, 2020 | 01 Jul 2020

ग्लोब्बा एंडरसोनी

Globba Andersonii

लगभग 136 वर्षों के अंतराल के बाद पुणे एवं केरल के शोधकर्त्ताओं की टीम ने तीस्ता नदी घाटी क्षेत्र के पास सिक्किम हिमालय में ग्लोब्बा एंडरसोनी (Globba Andersonii) नामक एक दुर्लभ व गंभीर रूप से लुप्तप्राय पौधे की प्रजाति को पुनः खोजा है।

Globba-Andersonii

प्रमुख बिंदु:

  • इस पौधे को आमतौर पर 'डांसिंग लेडीज़’ (Dancing Ladies)' या 'स्वान फ्लावर्स' (Swan Flowers) के रूप में जाना जाता है।
  • इस पौधे को इससे पहले वर्ष 1875 में देखा गया था। इसके बाद इसे विलुप्त मान लिया गया था।
  • इस प्रजाति के संग्रह के शुरुआती रिकॉर्ड वर्ष 1862-70 की अवधि के बीच के थे जब इसे स्कॉटिश वनस्पतिशास्त्री थॉमस एंडरसन (Thomas Anderson) ने सिक्किम एवं दार्जिलिंग से एकत्र किया था। इसके बाद वर्ष 1875 में ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री सर जॉर्ज किंग (Sir George King) ने सिक्किम हिमालय से इसे एकत्र किया था। 
  • ग्लोब्बा एंडरसोनी (Globba Andersonii) की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:
    • सफेद फूल
    • गैर-अनुबंध परागकोष (एक पुंकेसर का भाग जिसमें पराग होता है)
    • पीला अधर   
  • इस प्रजाति को ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ (Critically Endangered) और ‘संकीर्ण रूप से स्थानिक’ (Narrowly Endemic) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • यह प्रजाति मुख्य रूप से तीस्ता नदी घाटी (Teesta River Valley) क्षेत्र तक ही सीमित है जिसमें सिक्किम हिमालय एवं दार्जिलिंग पर्वत श्रृंखला शामिल हैं।
  • यह पौधा आमतौर पर सदाबहार वनों के उपांत में चट्टानी ढलानों पर लिथोफाइट (चट्टान या पत्थर पर उगने वाला पौधा) के रूप में घने क्षेत्रों में उगता है। 

जी4 वायरस

G4 Virus

चीन में वैज्ञानिकों द्वारा एक नए वायरस जी4 (G4) की खोज की गई है जो वर्ष 2009 के स्वाइन फ्लू से काफी मिलता-जुलता है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस जी4 वायरस का पूरा नाम जी4 ईए एच1 एन1 (G4 EA H1N1) है। इसमें मनुष्यों में महामारी फैलाने की क्षमता है। 
  • चीन में सुअरों के लिये निगरानी कार्यक्रम के दौरान वहाँ के नेशनल इन्फ्लुएंज़ा सेंटर (National Influenza Centre) सहित कई संस्थानों में वैज्ञानिकों द्वारा G4 वायरस का पता लगाया गया था।
  • यह निगरानी कार्यक्रम वर्ष 2011-18 के बीच चीन के 10 प्रांतों में सूअरों के 30,000 से अधिक स्वाब (Swab) नमूनों को एकत्र करके शुरू किया गया था।
  • इन नमूनों में से शोधकर्त्ताओं ने 179 स्वाइन फ्लू वायरस को अलग किया था जिनमें से अधिकांश नए पहचाने गए जी4 वायरस के थे।
    • परीक्षणों में पाया गया कि यह वायरस ज़ूनोटिक संक्रमण (पशु से मानव में) उत्पन्न कर सकता है किंतु अभी तक वायरस के व्यक्ति-से-व्यक्ति में संचरण के कोई सबूत नहीं हैं।
  • वैज्ञानिकों का मानना हैं कि नया G4 वायरस, H1N1 वायरस का ही एक परंपरागत रूप है जो वर्ष 2009 की स्वाइन फ्लू महामारी के लिये ज़िम्मेदार था।

असम कीलबैक

Assam keelback

एक सदी से भी अधिक समय के बाद भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) की एक टीम ने वर्ष 2018 में असम-अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर पोबा आरक्षित वन (Poba Reserve Forest) के पास सांप की एक प्रजाति असम कीलबैक (Assam keelback) को पुनः खोजा था।

Assam-keelback

प्रमुख बिंदु:

  • इसका वैज्ञानिक नाम ‘ऐम्फिएस्मा पीली’ (Amphiesma Pealii) है।
  • इससे पहले इस सांप की खोज 129 वर्ष पहले ऊपरी असम में चाय की रोपाई करने वाले ब्रिटिश नागरिक सैमुअल एडवर्ड पील (Samuel Edward Peal) ने की थी।
  • सैमुअल एडवर्ड पील ने असम के सदाबहार वनों से भूरे रंग के दो छोटे गैर विषैले सांप एकत्र किये थे और उन्हें संग्रहालय में जमा किया था। यह स्थान अब असम का शिवसागर ज़िला कहलाता है।
  • वर्ष 1891 में एक ब्रिटिश प्राणी विज्ञानी विलियम ल्यूटलेय स्केलाटेर (William Lutley Sclater) ने इस सांप को अपने एक विवरण में एक नई प्रजाति के रूप में दर्ज किया और इसका नाम वहाँ के तब के कलेक्टर एडवर्ड पील और उस जगह के नाम पर रखा गया जहाँ इसे खोजा गया था।

पोबा आरक्षित वन (Poba Reserve Forest):

  • पोबा आरक्षित वन असम एवं अरुणाचल प्रदेश दोनों राज्यों में फैला एक जंगल है।
  • वर्ष 2018 में कीलबैक सांप को अरुणाचल प्रदेश वाले पोबा आरक्षित वन में खोजा गया था।
  • 26 जून, 2020 को असम कीलबैक की पुनः खोज से संबंधित विवरण को अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका वर्टेब्रेट ज़ूलॉजी (Vertebrate Zoology) में प्रकाशित किया गया था।
  • यह प्रजाति लगभग 60 सेमी लंबी होती है तथा इसका रंग भूरा एवं पेट एक पैटर्न की तरह होता है।
  • जब अंग्रेजों ने इस सांप की खोज की थी तो उन्होंने इसे बड़े आकार वाली कीलबैक प्रजातियों (Larger Keelback Species) के रूप वर्गीकृत किया था किंतु डीएनए अध्ययन में पाया गया कि यह  भारत के विशेष रूप से सामान्यीकृत कीलबैक सांप से संबंधित नहीं है बल्कि चार प्रजातियों के एक छोटे समूह के एक वर्ग हेरपेटोरिअस (Herpetoreas) से संबंधित है जो पूर्वी एवं पश्चिमी हिमालय, दक्षिण चीन तथा पूर्वोत्तर भारत में पाई जाती हैं।

राजाजी नेशनल पार्क

Rajaji National Park

उत्तराखंड में राजाजी नेशनल पार्क (Rajaji National Park) के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में वन गुज्जर समुदाय (Van Gujjar community) के लोगों ने आरोप लगाया है कि राज्य के वन विभाग के कम-से-कम छह अधिकारियों ने उनके डेरों (अस्थायी झोपड़ियों) को ध्वस्त करने की कोशिश की और उनका शारीरिक शोषण किया।

राजाजी नेशनल पार्क (Rajaji National Park):

  • राजाजी नेशनल पार्क उत्तराखंड राज्य में स्थित है। वर्ष 1983 में उत्तरांचल के राजाजी वन्यजीव अभयारण्य को मोतीचूर एवं चिल्ला वन्यजीव अभयारण्यों को संयुक्त करके राजाजी राष्ट्रीय उद्यान (Rajaji National Park) बनाया गया।
  • इस पार्क का नाम सी. राजगोपालाचारी (जिन्हें ‘राजाजी’ भी कहा जाता है) के नाम पर रखा गया है जो भारत के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं पहले गवर्नर जनरल थे।
  • राजाजी राष्ट्रीय उद्यान 820.42 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • राजाजी नेशनल पार्क हिमालय की तलहटी में शिवालिक पर्वतमाला की निचली पहाड़ियों एवं तलहटी में अवस्थित है और यह शिवालिक पर्यावरण-प्रणाली (Shiwalik Eco-system) का प्रतिनिधित्व करता है।
  • तीन अभयारण्यों (चिल्ला, मोतीचूर एवं राजाजी) को मिलाकर बनाया गया राजाजी नेशनल पार्क उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल, देहरादून एवं सहारनपुर ज़िलों में फैला हुआ है।

वन गुज्जर समुदाय (Van Gujjar community): 

  • वन गुज्जर मूल रूप से एक खानाबदोश या यायावर जनजाति है। यह एक मुस्लिम समुदाय है। 
  • यह जनजाति मूल रूप से जम्मू एवं कश्मीर में निवास करती थी किंतु अपने मवेशियों के भोजन के लिये समृद्ध जंगलों एवं घास के मैदानों की तलाश में ये उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में भी पाई जाती है।
  • वन गुज्जरों का जीवन अपने जानवरों की देखभाल करने पर केंद्रित है। 
  • ये हिमालय के तराई क्षेत्रों अर्थात् शिवालिक श्रेणी के वनों में सर्दियाँ बिताते हैं जहाँ रसीले पत्ते भैंसों के लिये भरपूर चारा उपलब्ध कराते हैं।
  • प्रत्येक वन गुज्जर परिवार अपने स्वयं के अस्थायी बेस कैंप में रहता है जिसे टहनियों एवं कीचड़ से बनाया जाता है इसे ‘डेरा’ भी कहा जाता है।
  • ये अपनी भैंसों को पानी पिलाने के लिये डेरों के पास ही छोटे गड्ढों का निर्माण भी  करते हैं।
  • प्रवास के दौरान एक वन गुज्जर परिवार में प्रत्येक सदस्य की जानवरों के साथ एक उचित परिभाषित भूमिका (उम्र के आधार पर) होती है अर्थात् वयस्क बड़े भैंस एवं घोड़ों के साथ चलते हैं जबकि बच्चे बछड़ों के साथ धीमी गति से चलते हैं।
  • इनकी अपनी एक बोली है जिसे ‘गुज्जरी’ (Gujjari) कहा जाता है जो डोगरी एवं पंजाबी भाषाई का युग्मन है।