प्रिलिम्स फैक्ट: 18 फरवरी, 2021 | 18 Feb 2021

संदेश:गवर्नमेंट इंस्टेंट मैसेजिंग सिस्टम

(Sandes: Government Instant Messaging System)

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) ने ‘व्हाट्सएप’ की तर्ज पर ‘संदेश’ (Sandes) नामक एक इंस्टेंट मैसेजिंग प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है। 

  • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC), इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्त्वावधान में यह केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन को नेटवर्क और ई-गवर्नेंस में सहायता प्रदान करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है।

प्रमुख बिंदु

‘संदेश’ एप

  • परिचय
    • यह एक ‘गवर्नमेंट इंस्टेंट मैसेजिंग सिस्टम’ (GIMS) है, जिसे किसी भी सरकारी कर्मचारी या सार्वजनिक उपयोगकर्त्ता द्वारा वैध मोबाइल नंबर/ई-मेल आईडी के माध्यम से आधिकारिक या आकस्मिक स्थिति में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • विशेषता
    • इस एप में ग्रुप बनाने, संदेश भेजने, मैसेज फॉरवर्ड करने और इमोजीज़ जैसी तमाम सुविधाएँ मौजूद हैं।
    • हालाँकि दो प्लेटफॉर्म्स के बीच चैट हिस्ट्री को स्थानांतरित करने का कोई विकल्प नहीं है, किंतु ‘संदेश’ एप पर किये गए चैट का बैकअप उपयोगकर्त्ताओं के ईमेल पर लिया जा सकता है।
    • यदि उपयोगकर्त्ता एप पर अपने पंजीकृत ईमेल आईडी या फोन नंबर को बदलना चाहते हैं तो उन्हें नए उपयोगकर्त्ता के तौर पर पुनः पंजीकरण करना होगा।
    • इस एप के तहत उपयोगकर्त्ता को किसी भी संदेश को ‘गोपनीय’ संदेश के रूप में चिह्नित करने की अनुमति दी गई है, जिससे प्राप्तकर्त्ता उस संदेश को किसी दूसरे व्यक्ति के साथ साझा करने में सक्षम नहीं होगा। 

महत्त्व

  • सुरक्षित संचार
    • बीते वर्ष अप्रैल माह में कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (Cert-In) और गृह मंत्रालय ने सुरक्षा और गोपनीयता चिंताओं को देखते हुए सभी सरकारी कर्मचारियों हेतु आधिकारिक संचार के लिये ज़ूम (Zoom) जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग करने से बचने के लिये एक सलाह जारी की थी।
  • स्वदेशी उत्पाद
    • यह एप भारत निर्मित सॉफ्टवेयर के उपयोग को बढ़ावा देने की सरकार की रणनीति का हिस्सा है, ताकि स्वदेशी रूप से विकसित उत्पादों का एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जा सके।

महाराजा सुहेलदेव

(Maharaja Suheldev)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने महाराजा सुहेलदेव स्मारक और उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में चित्तौरा झील के विकास कार्य का शिलान्यास किया है।

प्रमुख बिंदु

महाराजा सुहेलदेव के बारे में

  • वे बहराइच ज़िले (उत्तर प्रदेश) के श्रावस्ती के पूर्व शासक थे, जिन्होंने 11वीं शताब्दी में शासन किया था।
  • उन्हें इतिहास में महमूद गज़नवी की विशाल सेना के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध की शुरुआत करने के लिये जाना जाता है।
  • महाराजा सुहेलदेव, सोमनाथ मंदिर में महमूद गज़नवी द्वारा की गई लूट और हिंसा से काफी व्यथित थे, जिसके बाद उन्होंने गज़नवी के आक्रमण को रोकने के लिये थारू और बंजारा जैसे विभिन्न समुदायों के प्रमुखों और अन्य छोटे-छोटे राजाओं को एकत्रित करने का प्रयास किया।
    • उनकी संयुक्त सेना ने बहराइच में महमूद गज़नवी के भतीजे सैयद सालार मसूद गाजी को मार गिराया था।
  • महाराजा सुहेलदेव का उल्लेख ‘मिरात-ए-मसूदी’ में भी है, जो कि 17वीं शताब्दी का फारसी-भाषा का एक ऐतिहासिक वृत्तांत है।
    • ‘मिरात-ए-मसूदी’ सालार मसूद गाजी की जीवनी है, जिसे मुगल सम्राट जहाँगीर के शासनकाल के दौरान ‘अब्द-उर-रहमान चिश्ती’ ने लिखा था।

चित्तौरा झील

  • चित्तौरा झील, उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में चित्तौड़ गाँव के पास स्थित है।
  • झील से निकलने वाली ‘तेरी नदी’ (Teri Nadi) नामक छोटी से नदी कई प्रवासी पक्षियों का निवास स्थान मानी जाती है।
  • हिंदू तीर्थ स्थल होने के नाते, कार्तिक पूर्णिमा और वसंत पंचमी के दिन इस झील के पास कई मेले लगते हैं।
  • यहाँ एक आश्रम भी है, जहाँ मुनि अष्टावक्र निवास करते थे और यह स्थल वर्ष 1033 में सालार मसूद गाजी और राजा सुहेलदेव के बीच हुए युद्ध का भी साक्षी है।
  • यहाँ राजा सुहेलदेव की प्रतिमा वाला एक मंदिर है और देवी दुर्गा को समर्पित मंदिर भी है।

सीउलैकैंथ

(Coelacanth)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं के एक समूह ने ‘कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ’ (Coelacanth) नामक विशाल मछली के जीवाश्मों की खोज की है, जिसे ‘जीवित जीवाश्म’ का एक प्रमुख उदाहरण माना जाता है।

  • माना जाता है कि कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ तकरीबन 66 मिलियन वर्ष पुरानी है और क्रेटेशियस युग से संबंधित है।

Coelacanth

प्रमुख बिंदु

परिचय

  • ‘कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ’ समुद्र की सतह से 2,300 फीट नीचे गहराई में निवास करने वाला एक जीव है।
  • माना जाता है कि 65 मिलियन वर्ष पहले ये डायनासोर के साथ विलुप्त हो गए थे। वर्ष 1938 में इसकी खोज के साथ इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई थी कि ये लोब-फिन मछलियाँ किस प्रकार स्थलीय जानवरों के विकास के क्रम में उपयुक्त पाई जाती हैं।

दो प्रजातियाँ: 

  • ‘कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ’ की अब तक केवल दो ज्ञात प्रजातियाँ मौजूद हैं: पहली प्रजाति अफ्रीका के पूर्वी तट के कोमोरोस द्वीप समूह के पास और दूसरी इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप में पाई जाती है।

जीवित जीवाश्म:

  • जीवित जीवाश्म ऐसे जीव होते हैं, जो प्रारंभिक भूगर्भीय काल से अपरिवर्तित रहे हैं और जिनके करीबी संबंधी जीव प्रायः विलुप्त हो चुके हैं। कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ के अलावा हॉर्सशू क्रैब और जिन्कगो वृक्ष भी जीवित जीवाश्म के उदाहरण हैं।
  • हालाँकि एक नए अध्ययन में शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ ने 10 मिलियन वर्ष पूर्व अन्य प्रजातियों के साथ मिलकर 62 नए जीन प्राप्त किये थे। 
    • इससे पता चलता है कि वे वास्तव में विकास कर रहे हैं, हालाँकि विकास की प्रक्रिया तुलनात्मक रूप से धीमी है।

संरक्षण स्थिति

  • IUCN स्थिति: गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered)।
    • सुलावेसी कोलैकैंथ/सीउलैकैंथ को ‘सुभेद्य’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • CITES स्थिति: परिशिष्ट I

न्यूयॉर्क कन्वेंशन

(New York Convention)

हाल ही में केयर्न एनर्जी ने अमेरिका की एक ज़िला अदालत में न्यूयॉर्क कन्वेंशन के तहत भारत के विरुद्ध 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के एक मध्यस्थता निर्णय को लागू करने के लिये मामला दायर किया है।

प्रमुख बिंदु

न्यूयॉर्क कन्वेंशन

  • ‘कन्वेंशन ऑन रिकाॅगनिशन एंड एन्फोर्समेंट ऑफ फॉरेन आर्बिट्रल अवार्ड्स’ जिसे ‘न्यूयॉर्क आर्बिट्रेशन कन्वेंशन’ अथवा ‘न्यूयॉर्क कन्वेंशन’ के नाम से भी जाना जाता है, अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के प्रमुख उपकरणों में से एक है।
    • मध्यस्थता का आशय एक ऐसी प्रकिया से है, जिसके तहत समझौते के माध्यम से कोई विवाद एक या एक से अधिक मध्यस्थों (एक स्वतंत्र व्यक्ति/निकाय) के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, जिस पर मध्यस्थ बाध्यकारी निर्णय लेते हैं।
  • इस कन्वेंशन को संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा मई और जून 1958 में न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित एक राजनयिक सम्मेलन के बाद अपनाया गया था और यह 7 जून, 1959 को लागू हुआ था।

कन्वेंशन के सदस्य

  • वर्तमान में इस कन्वेंशन में कुल 166 देश शामिल हैं।
  • भारत भी इस कन्वेंशन का हिस्सा है।

उद्देश्य

  • कन्वेंशन का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विदेशी और गैर-घरेलू मध्यस्थता संबंधी निर्णयों को लागू करने में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिये।
  • कन्वेंशन सदस्य देशों को यह सुनिश्चित करने के लिये बाध्य करता है कि वे मध्यस्थता संबंधी सभी विदेशी निर्णयों को मान्यता दें और अपने अधिकार क्षेत्र में घरेलू निर्णयों की तरह ही विदेशी निर्णयों को भी लागू करें।
  • यह सदस्य देशों को वैध मध्यस्थता समझौतों को बनाए रखने और जिन मामलों को  अनुबंध के तहत मध्यस्थता से हल करने को लेकर पक्षों ने सहमति व्यक्ति की है, उन पर अदालती कार्यवाही न शुरू करने को अनिवार्य बनाता है।
    • कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देश इस बात पर सहमत होते हैं कि वहाँ की अदालतें सभी पक्षों द्वारा मध्यस्थता के लिये किये गए समझौतों का सम्मान करेंगी और उन्हें लागू करेंगी, साथ ही वे देश अपने अधिकार क्षेत्र में मध्यस्थता से संबंधित किसी भी निर्णय को मान्यता देंगे और उसे लागू करेंगे।