दिरांग में उत्तर-पूर्व भारत का पहला भू-तापीय कुआँ | 17 May 2025
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग ज़िले के दीरांग में क्षेत्र में पूर्वोत्तर भारत का पहला भू-तापीय उत्पादन कुआँ (Geothermal Production Well) सफलतापूर्वक ड्रिल किया गया है, जो हिमालयी क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा के दोहन में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है।
दिरांग भू-तापीय परियोजना:
- यह पूर्वोत्तर भारत की पहली भू-तापीय ऊर्जा परियोजना है, जिसका लक्ष्य दिरांग को पहला पूर्ण भू-तापीय ऊर्जा संचालित शहर बनाना है।
- यह स्थल, हिमालय जैसे प्रमुख भ्रंश क्षेत्र के निकट क्वार्टजाइट और शिस्ट चट्टानों के बीच स्थित है जिसके जलाशय तापमान लगभग 115°C है, जो इसे प्रत्यक्ष-उपयोग वाली भू-तापीय प्रौद्योगिकियों के लिये उपयुक्त बनाता है।
- इसका उद्देश्य डीजल और जलाऊ लकड़ी पर निर्भरता कम करना, ऊँचाई वाले क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता और जीवन स्तर में सुधार करना है।
- यह स्थिर, बेस-लोड नवीकरणीय ऊर्जा प्रदान करके भारत की 10,600 मेगावाट की भू-तापीय क्षमता में योगदान करने की संभावना रखता है।
- प्रयुक्त प्रौद्योगिकी: यह एक क्लोज्ड-लूप बाइनरी ऑर्गेनिक रैंकिन साइकिल (ORC) सिस्टम का उपयोग करता है, जो भू-तापीय ऊर्जा का उपयोग करके एक सेकेंडरी लूप में एक ऑर्गेनिक तरल (जैसे पेंटेन या आइसोब्यूटेन) को वाष्पीकृत करता है। इस वाष्प से टरबाइन चलती है, जिससे विद्युत् उत्पन्न होती है।
भू-तापीय ऊर्जा:
- भू-तापीय ऊर्जा पृथ्वी के आंतरिक भाग से निकलने वाली ऊष्मा है, जो रेडियोधर्मी क्षय द्वारा उत्पन्न होती है। यह एक नवीकरणीय ऊर्जा है, जो बेसलोड (बुनियादी) विद्युत प्रदान करती है तथा 24/7 उपलब्ध रहती है क्योंकि पृथ्वी लगातार ऊष्मा उत्पन्न करती रहती है।
- भारत में भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) द्वारा 381 तापीय असामान्य स्थलों की पहचान की गई है, जिनमें 10,600 मेगावाट विद्युत् उत्पादन की क्षमता है, जो 10 मिलियन घरों को विद्युत् प्रदान करने के लिये पर्याप्त है।
- प्रमुख परियोजनाओं में मनुगुरु, तेलंगाना में 20 किलोवाट का पायलट प्लांट तथा पुगा घाटी, लद्दाख में ONGC की 1 मेगावाट की परियोजना शामिल है।
- भारत ने भू-तापीय ऊर्जा सहयोग के लिये आइसलैंड (2007), सऊदी अरब (2019) और अमेरिका (2023) के साथ नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी कार्रवाई मंच (RETAPP) जैसे देशों के साथ समझौते किये हैं।
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