मोरे ईल की नई प्रजाति | 27 Mar 2023

शोधकर्त्ताओं ने हाल ही में कुड्डालोर तट (तमिलनाडु) से दूर मोरे ईल की एक नई प्रजाति की खोज की है और राज्य के नाम पर इसका नाम जिमनोथोरैक्स तमिलनाडुएंसिस रखा गया है।

अन्वेषण की मुख्य विशेषताएँ:

  • यह जीनस, जिम्नोथोरैक्स का पहला रिकॉर्ड है, जिसे कुड्डालोर के तटीय जल के साथ किये गए एक अन्वेषण सर्वेक्षण के माध्यम से एकत्र किया गया है।
  • इसके 4 नमूने (कुल लंबाई 272-487 मिमी.) एकत्र किये गए थे और यह प्रजाति जीनस जिम्नोथोरैक्स की अन्य प्रजातियों से विशेष रूप से अलग है।
    • इसकी पहचान इसके सिर पर मौजूद छोटे काले धब्बों की रेखाओं की एक शृंखला से होती है एवं शरीर की मध्य रेखा पर काले धब्बों की एक एकल रेखा विद्यमान होती है।
  • इन प्रजातियों का नाम ज़ूबैंक में पंजीकृत किया गया है, जो इंटरनेशनल कमीशन ऑन ज़ूलॉजिकल नाॅमेनक्लेचर (ICZN) के लिये ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली है।

मोरे ईल:

  • मोरे ईल सभी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय समुद्रों में पाए जाते हैं, वे चट्टानों एवं भित्तियों के बीच उथले पानी में रहते हैं।
  • वे विशेषकर दो प्रकार के जबड़ों के लिये जाने जाते हैं: एक बड़े दाँतों वाला नियमित जबड़ा होता है और दूसरे जबड़े को ग्रसनी जबड़ा कहा जाता है (जिसकी सहायता से ईल शिकार को पेट के अंदर खींच लेता है)।
  • IUCN की रेड लिस्ट में इसकी स्थिति कम चिंतनीय (Least Concern- LC) है।
  • जिमनोथोरैक्स की वर्तमान में 29 प्रजातियाँ भारतीय जल निकायों में मौजूद हैं, जिनमें हाल ही में पाई गई प्रजातियाँ भी शामिल हैं।

इंटरनेशनल कमीशन ऑन ज़ूलॉजिकल नाॅमेनक्लेचर:

  • वर्ष 1895 में स्थापित ICZN को नियमित आधार पर प्राणि विज्ञान नामकरण के अंतर्राष्ट्रीय कोड को विकसित, प्रकाशित और संशोधित करने का काम सौंपा गया है।
  • यह प्राणि विज्ञान नामकरण की एक समान प्रणाली प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक जानवर का एक अद्वितीय एवं सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत वैज्ञानिक नाम हो।
  • ICZN जीवों के वैज्ञानिक नामों के सही उपयोग पर जानकारी उत्पन्न और प्रसारित करके प्राणी समुदाय के लिये सलाहकार एवं मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है।

स्रोत: द हिंदू