शरावती जलविद्युत परियोजना को NBWL की स्वीकृति | 06 Aug 2025
स्रोत: द हिंदू
कर्नाटक में शरावती पंप स्टोरेज जलविद्युत परियोजना को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) से सैद्धांतिक स्वीकृति मिल गई है, हालाँकि पश्चिमी घाट स्थित शरावती घाटी लायन-टेल्ड मकाक अभयारण्य पर इसके पारिस्थितिकीय प्रभाव को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।
- अब यह परियोजना अंतिम NBWL अनुमोदन के लिये वापस लौटने से पहले वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत अनुमोदन प्राप्त करेगी।
शरावती घाटी वन्यजीव अभयारण्य
- यह कर्नाटक के शिवमोग्गा ज़िले में शरावती नदी घाटी में स्थित है और पश्चिमी घाट में 431.23 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
- यह क्षेत्र वनस्पति और जीव-जंतुओं की प्रचुरता के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ धूपा, गुलमावु और नंदी जैसी प्रमुख वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।
- वन्यजीवों में बाइसन, चित्तीदार हिरण, बाघ, तेंदुआ और लायन-टेल्ड मेकाक शामिल हैं।
- प्रमुख आकर्षणों में जोग जलप्रपात, लिंगनमक्की जलाशय और विविध प्रकार के पशु-पक्षी शामिल हैं।
शरावती पंप्ड स्टोरेज जलविद्युत परियोजना
- यह शरावती घाटी लायन-टेल्ड मेकाक अभयारण्य में प्रस्तावित 2,000 मेगावाट की परियोजना है, जो ग्रिड स्थिरता और नवीकरणीय ऊर्जा के लिये पंप स्टोरेज प्रणाली का उपयोग करती है। इसमें गेरुसोप्पा (निचला) और तालाकाले बाँध (ऊपरी) के बीच भूमिगत टरबाइनों के माध्यम से जल प्रवाह किया जाएगा।
राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) क्या है?
- परिचय: राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) एक वैधानिक निकाय है, जिसे वर्ष 2003 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 5A के तहत गठित किया गया था। यह भारतीय वन्यजीव बोर्ड (1952) का स्थान लेकर वन्यजीव संरक्षण और वन विकास पर सर्वोच्च परामर्शदाता संस्था के रूप में कार्य करता है।
- संरचना: NBWL एक 47-सदस्यीय वैधानिक बोर्ड है, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं, जबकि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री उपाध्यक्ष होते हैं।
- सदस्यों में थल सेना प्रमुख, रक्षा सचिव, व्यय सचिव जैसे अधिकारी शामिल होते हैं, साथ ही केंद्र सरकार द्वारा नामित 10 प्रतिष्ठित संरक्षण विशेषज्ञ भी सदस्य होते हैं। वन महानिदेशक (वन्यजीव) के अतिरिक्त महानिदेशक इस बोर्ड के सदस्य-सचिव होते हैं।
- प्रमुख कार्य: यह केंद्र सरकार के लिये एक सलाहकार निकाय है, जो वन्यजीव संरक्षण नीतियों का मार्गदर्शन करने, वन्यजीव संरक्षण से संबंधित मामलों की समीक्षा करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- यह संरक्षित क्षेत्रों (PA) और पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों (10 किमी के भीतर) में और उसके आसपास की परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान करता है।
- स्थायी समिति: स्थायी समिति NBWL के अंतर्गत एक छोटी संस्था है जिसमें अधिकतम 10 सदस्य होते हैं, जिसकी अध्यक्षता पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री करते हैं।
- यह एक परियोजना मंजूरी निकाय के रूप में कार्य करता है, जो संरक्षित क्षेत्रों और पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों में प्रस्तावों का मूल्यांकन और अनुमोदन करने के लिये ज़िम्मेदार है, जबकि पूर्ण NBWL व्यापक नीतिगत निर्णयों पर ध्यान केंद्रित करता है।
लायन-टेल्ड मेकाक से संबंधित मुख्य बिंदु क्या हैं?
- लायन-टेल्ड मेकाक (मेकाक सिलेनस) विश्व की एक पुरानी बंदर प्रजाति है जो भारत के पश्चिमी घाटों में पाई जाती है।
- इसे "वांडरू" या "बियर्ड अपे" भी कहा जाता है, यह अपने काले चेहरे और ठोड़ी के चारों ओर विशिष्ट हल्के रंग के अयाल (बालों का घेरा) के लिये जाना जाता है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- आकार: यह मेकाक बंदरों में सबसे छोटे प्राणियों में से है; इसका वजन 2 से 10 किलोग्राम के बीच होता है, शरीर की लंबाई 42 से 61 सेमी है, और पूंछ लगभग 25 सेमी लंबी होती है
- स्वरूप: सिर और ठोड़ी के चारों ओर हल्के भूरे/चांदी रंग के बालों के साथ काला फर।
- सामाजिक व्यवहार: पदानुक्रमित समूहों (10-20) में रहता है ; शर्मीला और क्षेत्रीय। प्रमुख नर घुसपैठियों को चेतावनी देने के लिए ऊँची आवाज़ में 'हूप' की आवाज़ निकालते हैं।
- सक्रियता क्षेत्र: पेड़ों पर रहना पसंद करता है, खासकर ट्रॉपिकल आर्द्र सदाबहार जंगलों की ऊपरी छतरी (कैनोपी) में अधिक समय बिताता है।
- आवास एवं वितरण:
- पश्चिमी घाटों में स्थानिक, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु में पाया जाता है; अप्रभावित, निरंतर सदाबहार वन को पसंद करता है, विखंडन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील।
- अनामलाई हिल्स, नेलियामपैथी, नीलांबुर घाट, शोलायार, गवी, सबरीमाला, वल्लीमलाई हिल्स, अगुम्बे और वालपराई पठार (अनामलाई टाइगर रिज़र्व) जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है।
- पश्चिमी घाटों में स्थानिक, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु में पाया जाता है; अप्रभावित, निरंतर सदाबहार वन को पसंद करता है, विखंडन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील।
- आहार और पारिस्थितिक भूमिका: यह मुख्य रूप से फलभक्षी है, फल, बीज, पत्ते, कलियाँ, कीड़े और छोटे कशेरुकी जीव खाता है। यह बीज प्रसार और वन पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- खतरे: वनों की कटाई, कृषि, शहरीकरण के कारण 99% से अधिक आवास नष्ट हो गए, जिसके कारण विखंडन, प्रतिबंधित आवागमन और आनुवंशिक प्रवाह हुआ।
- आवास क्षरण और भोजन की कमी के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है, जिससे व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है।
- केरल वन अनुसंधान संस्थान (KFRI) और मैसूर विश्वविद्यालय (2024) की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 4,200 ही बचे हैं, जो मूल आबादी का केवल 25% है।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN लाल सूची: संकटग्रस्त
- CITES: परिशिष्ट I
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची I
नोट: मानवीय दबाव के बीच रणनीतिक आवास उपयोग
- केरल के साइलेंट वैली नेशनल पार्क में वन्यजीव अध्ययन केंद्र (CWS) द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि लायन-टेल्ड मेकाक मानव उपस्थिति के आधार पर अपने व्यवहार को अनुकूलित करते हैं।
- बफर ज़ोन (अधिक अशांत क्षेत्र) में रहने वाले एक दल ने छोटे क्षेत्र में सीमित रहकर ज़्यादातर समय मध्य छायादार हिस्से (कैनोपी) में रहते है (94.2%) तथा ज़मीन से रहने से बचते।
- इसके विपरीत कोर ज़ोन (कम परेशान) में एक दल ने एक बड़े क्षेत्र का उपयोग किया और वन तल का भी उपयोग किया, जिससे प्रजातियों की पारिस्थितिक लचीलापन प्रदर्शित हुआ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से जानवरों का कौन-सा समूह लुप्तप्राय प्रजातियों की श्रेणी में आता है? ( 2012) (A) ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, कस्तूरी मृग, लाल पांडा और एशियाई जंगली गधा उत्तर: (a) प्रश्न. यदि किसी पौधे की विशिष्ट जाति को वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम, 1972 की अनुसूची VI में रखा गया है, तो इसका क्या तात्पर्य है? (2020) (a) उस पौधे की खेती करने के लिये लाइसेंस की आवश्यकता है। उत्तर: (a) |