नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य: भारत का तीसरा चीता स्थल | 07 Nov 2025

स्रोत: IE

मध्य प्रदेश में नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य (NWS) को भारत के तीसरा चीता स्थल के रूप में तैयार किया जा रहा है।

  • कुनो और गांधी सागर के विपरीत, जहाँ चीतों को शिकारी-रहित क्षेत्रों में बसाया गया था, नौरादेही में पहले से ही भेड़िये, जंगली कुत्ते, तेंदुए, मगरमच्छ और लगभग 25 बाघ मौजूद हैं। इस प्रकार यह पहला ऐसा स्थल बन गया है जहाँ चीतों को अन्य शीर्ष शिकारी प्रजातियों के साथ अपना आवास साझा करना होगा।

नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य

  • स्थान: यह मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा वन्यजीव अभयारण्य है, जिसे वर्ष 1975 में घोषित किया गया था। यह अभयारण्य दक्कन प्रायद्वीप जैव-भौगोलिक क्षेत्र के भीतर उच्च विंध्य पठार पर स्थित है ।
  • कनेक्टिविटी: नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य पन्ना टाइगर रिज़र्व और सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के लिये एक गलियारे के रूप में कार्य करता है, जबकि रानी दुर्गावती वन्यजीव अभयारण्य के माध्यम से बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व को अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ता है।
  • आवास एवं वन: इस क्षेत्र में मध्य भारतीय मानसून क्षेत्र के उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वनों का प्रभुत्व है।
  • वनस्पति: साजा, धौरा, भिर्रा, महुआ, तेंदू, बेर, बेल, गुंजा और आंवला के साथ सागौन मुख्य प्रजाति है। 
  • जीव-जंतु: इसमें बाघ, तेंदुआ, जंगली कुत्ता, भालू और भारतीय भेड़िया (कैनिस लूपस पैलिप्स) के साथ-साथ नीलगाय, चिंकारा, चित्तीदार हिरण, सांभर और काला हिरण भी पाए जाते हैं। 
    • भारतीय भेड़िये को अभयारण्य की प्रमुख प्रजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो इसकी मज़बूत कैनिड उपस्थिति को दर्शाता है।
    • बामनेर नदी में 170 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं तथा मगरमच्छ भी पाए जाते हैं।
  • नदियाँ एवं जल निकासी: नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य का लगभग तीन-चौथाई क्षेत्र यमुना (गंगा) बेसिन में स्थित है, जबकि शेष एक-चौथाई क्षेत्र नर्मदा बेसिन में आता है।
    • कोपरा नदी, बामनेर नदी, बेयरमा नदी, जो केन नदी की सहायक नदियाँ हैं, इस संरक्षित क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ हैं।
  • भूविज्ञान एवं मृदा: नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में विंध्य बलुआ पत्थर, लामेटा और डेक्कन ट्रैप जैसी भूगर्भिक संरचनाएँ प्रमुख रूप से पाई जाती हैं।
    • यह क्षेत्र लाल और काली मृदा से लेकर जलोढ़ मृदा तक फैला है, जो विविध प्रकार के शुष्क वनों और घास के मैदानों की वनस्पति को आकार देती है।"

और पढ़ें...: प्रोजेक्ट चीता और गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य