प्राचीन शियान किले की दीवार में म्यूऑन्स का प्रवेश | 07 Feb 2023

एक नए अध्ययन के अनुसार, शोधकर्त्ता चीन के एक प्राचीन शहर शियान में किले की दीवार की जाँच कर रहे हैं, जिसमें बाह्य अंतरिक्ष कण म्यूऑन का उपयोग किया जा रहा है जो सैकड़ों मीटर भीतर पत्थर की सतहों में प्रवेश कर सकते हैं। 

  • वैज्ञानिकों ने शियान शहर की दीवार की जाँच करने के लिये CORMIS (कॉस्मिक रे म्यूऑन इमेजिंग सिस्टम) नामक एक म्यूऑन डिटेक्टर का उपयोग किया। 

म्यूऑन्स क्या हैं? 

  • परिचय:  
    • म्यूऑन्स अंतरिक्ष से बरसने वाले उप-परमाणु (Subatomic) कण हैं। इनका निर्माण तब होता है जब पृथ्वी के वायुमंडल में ये कण कॉस्मिक किरणों से टकराते हैं।
      • कॉस्मिक किरणें उच्च-ऊर्जा कणों के समूह हैं जो लगभग प्रकाश की गति से अंतरिक्ष में घूमते हैं। 
    • साइंटिफिक अमेरिकन पत्रिका के अनुसार, "लगभग 10,000 म्यूऑन्स एक मिनट में पृथ्वी की सतह के प्रत्येक वर्ग मीटर तक पहुँचते हैं"।
  • विशेषताएँ:  
    • ये कण इलेक्ट्रॉन के समान हैं लेकिन 207 गुना अधिक भारी हैं। नतीजतन उन्हें कई बार "फैट इलेक्ट्रॉन" के रूप में भी जाना जाता है। 
    • म्यूऑन्स इतने भारी होते हैं कि अवशोषित या क्षय होने से पहले वे चट्टान या अन्य पदार्थ के माध्यम से सैकड़ों मीटर की यात्रा कर सकते हैं।
      • इसकी तुलना में इलेक्ट्रॉन केवल कुछ सेंटीमीटर तक ही प्रवेश कर सकते हैं।  
    • इसके अलावा म्यूऑन्स अत्यधिक अस्थिर होते हैं और केवल 2.2 माइक्रोसेकंड तक मौजूद होते हैं। 

म्यूओग्राफी (Muography): 

  • परिचय: 
    • म्यूऑन की भेदन शक्ति के कारण बड़ी संरचनाओं को स्कैन करने की विधि को म्यूओग्राफी कहा जाता है।
  • म्यूओग्राफी के अनुप्रयोग:
    • पुरातत्त्व:  
      • अद्वितीय लाभों के साथ म्यूओग्राफी ने बड़े पैमाने पर पुरातात्त्विक स्थलों की जाँच के लिये एक नवीन एवं अभिनव उपकरण के रूप में पुरातत्त्वविदों का ध्यान आकर्षित किया है।
        • उदाहरण: म्यूओग्राफी का पहला उपयोग वर्ष 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में हुआ था जब लुइस अल्वारेज़ नामक एक नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी ने गीज़ा में खाफ्रे के पिरामिड में छिपे हुए कमरों की तलाश के लिये मिस्र के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम किया था।
    • अन्य अनुप्रयोग:
      • म्यूओग्राफी का सीमा शुल्क सुरक्षा, ज्वालामुखियों की आंतरिक इमेजिंग तथा अन्य में भी उपयोग किया गया है।
        • वर्ष 2011 में जापान में भूकंप और सुनामी के बाद वैज्ञानिकों ने वर्ष 2015 में फुकुशिमा नाभिकीय रिएक्टरों के बारे में जानने के लिये इस तकनीक का इस्तेमाल किया।
        • इसका उपयोग शोधकर्त्ताओं द्वारा इटली में ज्वालामुखी माउंट वेसुवियस का विश्लेषण करने के लिये भी किया जा रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस