महात्मा ज्योतिबा फुले और उनके प्रमुख सामाजिक सुधार | 28 Nov 2025

स्रोत: News on AIR

चर्चा में क्यों?

महात्मा ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि 28 नवंबर को मनाई गई, जिसमें उन्हें एक अग्रणी समाज सुधारक के रूप में स्मरण किया गया जिन्होंने शिक्षा को स्थायी सामाजिक परिवर्तन का मूल प्रेरक माना।

महात्मा ज्योतिबा फुले ने भारत के सामाजिक सुधार आंदोलन में किस प्रकार योगदान दिया?

  • परिचय: वे उन्नीसवीं सदी के एक सामाजिक कार्यकर्त्ता, चिंतक और लेखक थे जिन्होंने अपना जीवन जाति-व्यवस्था को चुनौती देने और वंचितों को सशक्त बनाने के लिये समर्पित किया, जिनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, शूद्र तथा महिलाएँ शामिल थीं।
    • थॉमस पेन की “राइट्स ऑफ मैन” पढ़ने के बाद फुले का दृष्टिकोण बदला, जिसने उन्हें सामाजिक न्याय और समानता के प्रति आजीवन प्रतिबद्धता के लिये प्रेरित किया।
  • प्रमुख योगदान:
    • जाति विरोधी आंदोलन: फुले ने वर्ष 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जाति-आधारित भेदभाव का मुकाबला करना और ब्राह्मणवादी वर्चस्व को चुनौती देना था।
      • इस संगठन ने दीनबंधु समाचार पत्र और लोक नाटकों जैसे माध्यमों से अपना संदेश प्रसारित किया।
    • शैक्षिक क्रांति: वर्ष 1848 में, फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं की शिक्षा में अग्रणी भूमिका निभाई और पुणे में तात्यासाहेब भिड़े के आवास में भारत का पहला लड़कियों का विद्यालय स्थापित किया।
      • सावित्रीबाई भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं। उन्होंने वर्ष 1855 में मज़दूरों, किसानों और महिलाओं के लिये रात्रि विद्यालय भी शुरू किये।
    • साहित्यिक योगदान: फुले ने अपने क्रांतिकारी विचारों को प्रभावशाली कृतियों के माध्यम से व्यक्त किया:
      • तृतीय रत्न: यह एक कुनबी (निम्न जाति) महिला, एक ब्राह्मण और एक टीकाकार के बीच संवाद है, जो ब्राह्मणों की चतुराई को उजागर करता है।
      • गुलामगिरी: जाति उत्पीड़न की तुलना दासप्रथा से करता है।
      • शेतकऱ्याचा असूड: किसानों के शोषण को उजागर करता है।
      • सार्वजनिक सत्य धर्म: तर्कसंगत धार्मिक विचार को बढ़ावा देता है।
      • छत्रपति शिवाजी राजे भोसले यांचे पोवाड़ा: शिवाजी की पुनर्व्याख्या एक गैर-ब्राह्मण नेता के रूप में करता है।
    • प्रगतिशील विचारधाराएँ: उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया, विशेषकर विधवा-पुनर्विवाह का और विधवाओं व अनाथों के लिये आश्रय-गृह स्थापित किये। उन्होंने 1857 के विद्रोह की आलोचना एक उच्च-जाति सत्ता संघर्ष के रूप में की।
      • उन्होंने नाईयों की हड़ताल आयोजित करके उन्हें विधवा महिलाओं के सिर मुँडवाने से इनकार करने के लिये राजी किया (यह एक अपमानजनक उच्च जाति परंपरा थी)।
      • उन्होंने पारंपरिक पदानुक्रमों को विघटित करने की संभावना के कारण ब्रिटिश शासन का भी समर्थन किया और सामाजिक सुधार के साथ-साथ आर्थिक सशक्तीकरण की वकालत की।
      • ज्योतिराव फुले ने अपनी रचना 'सत्सार' में पंडिता रमाबाई के ईसाई धर्म अपनाने का समर्थन किया।
  • विरासत: उन्हें वर्ष 1888 में सामाजिक कार्यकर्त्ता विट्ठलराव कृष्णाजी वांडेकर द्वारा उनके असाधारण योगदानों के लिये महात्मा की उपाधि दी गई, जिसने डॉ. बी. आर. अम्बेडकर जैसे भविष्य के नेताओं को प्रेरित किया और भारत में जाति विरोधी आंदोलनों की नींव रखी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. महात्मा ज्योतिबा फुले कौन थे?
 19वीं शताब्दी के एक सामाजिक कार्यकर्त्ता, चिंतक और लेखक, जिन्होंने जाति-भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया और शिक्षा, समानता तथा महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया।

2. फुले ने महिलाओं की शिक्षा में कैसे योगदान दिया?
सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर उन्होंने वर्ष 1848 में पुणे में भारत का पहला कन्या विद्यालय स्थापित किया और बाद में वंचित समुदायों के लिये रात्रि विद्यालय शुरू किये।

3. सत्यशोधक समाज का प्राथमिक उद्देश्य क्या था?
वर्ष 1873 में स्थापित सत्यशोधक समाज का उद्देश्य जाति-आधारित भेदभाव और ब्राह्मणवादी प्रभुत्व का विरोध करना तथा शोषित जातियों में सामाजिक समानता और तर्कसंगत विचार को बढ़ावा देना था।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. सत्य शोधक समाज ने संगठित किया (2016)

(a) बिहार में आदिवासियों के उन्नयन का एक आंदोलन

(b) गुजरात में मंदिर-प्रवेश का एक आंदोलन

(c) महाराष्ट्र में एक जाति-विरोधी आंदोलन

(d) पंजाब में एक किसान आंदोलन 

उत्तर: (c)