भारत डॉल्फिन-फिशर सहोपकारिता पर वैश्विक अनुसंधान में हुआ शामिल | 18 Nov 2025

स्रोत: द हिंदू

केरल विश्वविद्यालय ने अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्त्ताओं के सहयोग से एक बहुवर्षीय शोध परियोजना (2024–2028) शुरू की है, जिसका उद्देश्य केरल की अष्टमुड़ी झील में इंडो-पैसिफिक हंपबैक डॉल्फिन और पारंपरिक/आर्टिसनियल मछुआरों के बीच पाए जाने वाले दुर्लभ सहकारी मत्स्य संग्रहण के सहोपकारिता (म्यूचुअलिज़्म) का अध्ययन करना है।

  • क्रियाविधि: इंडो-पैसिफिक हंपबैक डॉल्फिन (सूसा प्लंबिया) अपनी पूँछ हिलाकर या घुमाकर सघन मछलियों के झुंडों का संकेत देती हैं, जिससे मछुआरों को अधिक से अधिक मत्स्य संग्रहण के लिये सही समय पर जाल डालने में मदद मिलती है, जबकि इसी दौरान बिखरी हुई मछलियाँ डॉल्फिन के लिये भी आसानी से शिकार बन जाती हैं।
  • सहोपकारिता: यह दो प्रजातियों के बीच एक दीर्घकालिक संबंध है जहाँ दोनों को लाभ होता है—जैसे भोजन, सुरक्षा, परागण, बीज प्रसार या आश्रय के माध्यम से।
  • इंडो-पैसिफिक हंपबैक डॉल्फिन: ये अपने विशिष्ट हंप और लॉन्ग डॉर्सल फिन के लिये जानी जाती हैं, ये ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और एशिया के उथले तटीय जल में पाई जाती हैं।

अष्टमुडी झील

  • विषय: यह कोल्लम ज़िले में स्थित एक रामसर स्थल है, जो केरल की सबसे बड़ी झीलों में से एक है, जो बैकवाटर्स का प्रवेश द्वार माना जाता है।
  • 'अष्टमुडी' का मलयालम में अर्थ है 'आठ लटें (Eight Braids)', जो इसकी अनोखी आठ बाँहों/आठ शाखाओं जैसा/वाली आकृति को दर्शाता है।
  • विस्तार: यह झील कई नदियों, जिनमें कल्लड़ा नदी भी शामिल है, से पोषित होती है, अरब सागर में जाकर गिरती है तथा इसके चारों ओर मैंग्रोव, नारियल के पेड़ तथा घनी हरियाली पाई जाती है।
  • जैवविविधता: किंगफिशर, बगुले, एग्रेट और कॉर्मोरेंट जैसी पक्षी प्रजातियाँ इन आर्द्रभूमियों में पाई जाती हैं। कल्लड़ा नदी करीमीन (पर्ल स्पॉट फिश) के प्रजनन स्थल के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है

 

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