वैश्विक खाद्य उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव | 28 Jun 2025
स्रोत: द हिंदू
एक अध्ययन के अनुसार वैश्विक तापमान में प्रत्येक 1°C की वृद्धि से 2100 तक प्रति व्यक्ति कैलोरी उपलब्धता में 4% की कमी आएगी, जिससे गेहूँ, चावल, मक्का और सोयाबीन जैसी प्रमुख फसलों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
- यह अध्ययन पिछले शोध से भिन्न है, क्योंकि इसमें किसानों की अनुकूलन क्षमता को शामिल किया गया है, जिसमें ऊष्मा प्रतिरोधी फसल किस्मों का उपयोग और बुवाई तथा पानी देने के कार्यक्रम में समायोजन शामिल है।
मुख्य निष्कर्ष:
- किसानों द्वारा गर्मी-सहनीय फसलों, बोवाई/सिंचाई के समय में बदलाव जैसी रणनीतियों को अपनाने से वर्ष 2050 तक फसल नुकसान में 23% और 2100 तक 34% की कमी हो सकती है। हालाँकि, चावल को छोड़कर अन्य फसलों में नुकसान अब भी गंभीर बना रहेगा।
- वर्ष 2050-2100 के बीच चीन, रूस, अमेरिका और कनाडा में गेहूँ का उत्पादन 30-40% तक कम हो सकता है, जिसमे उत्तरी भारत सबसे अधिक प्रभावित होगा।
- भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में चावल पर मिश्रित प्रभाव देखने को मिल सकता है, लेकिन उप-सहारा अफ्रीका और यूरोप में 50% से अधिक की हानि होगी, जबकि मक्का और सोयाबीन को वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण गिरावट का सामना करना पड़ेगा।
- नुकसान न केवल गरीब देशों को प्रभावित करता है, बल्कि अमेरिका, यूरोप और चीन जैसे आधुनिक अन्न उत्पादक देशों को भी प्रभावित करता है, जिससे नवाचार, कृषि भूमि विस्तार और जलवायु-अनुकूल पद्धतियों को तेजी से अपनाना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
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