ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और फॉस्फेट रॉक माइन | 10 Sep 2025
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) ने राजस्थान के जैसलमेर में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के संभावित आवास क्षेत्र में विकसित की जाने वाली बिरमानिया रॉक फॉस्फेट माइन के लिये पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को मंज़ूरी दे दी है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) दुनिया के सबसे भारी उड़ने वाले पक्षियों में से एक पक्षी है और गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इसकी छोटी आबादी के साथ मुख्य रूप से राजस्थान के थार रेगिस्तान में पाया जाता है।
- GIB भारत में पाई जाने वाली चार बस्टर्ड प्रजातियों में से एक है, जिसमें लेसर फ्लोरिकन, बंगाल फ्लोरिकन और मैक्वीन बस्टर्ड भी शामिल हैं।
- GIB सर्वाहारी होता है और सामने की दृष्टि की कमी के कारण विद्युत लाइनों से टकराने के लिये संवेदनशील है।
- पारिस्थितिक महत्त्व: GIB को एक कीस्टोन प्रजाति माना जाता है, जो चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के संकेतक के रूप में कार्य करती है और चरागाह जैव विविधता की समग्र स्थिति को दर्शाती है।
- संरक्षण स्थिति:
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची I
- IUCN: गंभीर रूप से लुप्तप्राय
- CITES: परिशिष्ट I
- मुख्य खतरे:
- खनन, उद्योग, पवन टरबाइन और संबंधित अवसंरचना के विस्तार जैसी विकास गतिविधियों के कारण आवास का क्षरण।
- सामने की दृष्टि संकीर्ण और आकार बड़ा होने के कारण GIB विद्युत लाइनों से टकराने के प्रति संवेदनशील होते हैं। वर्ष 2020 में भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, प्रतिवर्ष 18 GIB विद्युत लाइनों से टकराने के कारण मर जाते हैं।
- प्रदूषण: कीटनाशक-दूषित भोजन के संपर्क में आने से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को खतरा पैदा होता है और उनकी जीवित रहने की संभावना प्रभावित होती है।
- शिकार और अवैध शिकार: कानूनी संरक्षण के बावजूद, GIB का शिकार उनके मांस, पंख और अन्य शरीर के अंगों के लिये किया जाता है, जिससे उनकी संख्या में गिरावट आ रही है।
- धीमी प्रजनन दर: चराई, मनोरंजन और पर्यटन से GIB के घोंसले और चारागाह आवास बाधित होते हैं, जिससे उनकी आबादी प्रभावित होती है।
- खनन, उद्योग, पवन टरबाइन और संबंधित अवसंरचना के विस्तार जैसी विकास गतिविधियों के कारण आवास का क्षरण।
- संरक्षण प्रयास:
- राष्ट्रीय बस्टर्ड रिकवरी योजना: बस्टर्ड रिकवरी कार्यक्रम भारत में बंगाल फ्लोरिकन (Bengal Florican) और मैक्वीन बस्टर्ड (Macqueen's Bustard) सहित अन्य बस्टर्ड प्रजातियों के साथ GIB, लेसर फ्लोरिकन (Lesser Florican) के संरक्षण पर केंद्रित है।
- रिकवरी/पुनर्प्राप्ति प्रयास वर्ष 2013 में शुरू हुए थे और वर्ष 2016 में बस्टर्ड रिकवरी प्रोजेक्ट का रूप ले लिया। यह परियोजना प्रारंभ में पाँच वर्षों (2016–2021) के लिये नियोजित थी, लेकिन अब इसे वर्ष 2033 तक बढ़ा दिया गया है।
- 2024 तक, वन्य क्षेत्र में लगभग 140 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और 1,000 से भी लेसर फ्लोरिकन (Lesser Florican) शेष बचे हैं।
- इस परियोजना का नेतृत्व भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा किया जा रहा है तथा इसका वित्तपोषण राष्ट्रीय प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA) तथा साझेदार एजेंसियों द्वारा किया जा रहा है।
- इस कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य हैं:
- संरक्षण प्रजनन, ताकि GIB और अन्य प्रजातियों की एक्स-सीटू (ex-situ) आबादी को सुरक्षित किया जा सके,
- व्यावहारिक अनुसंधान, जिससे महत्त्वपूर्ण संरक्षण क्षेत्रों और उनके जीवित रहने के खतरों की पहचान की जा सके,
- और क्षमता निर्माण (Capacity Building), ताकि संरक्षण कानूनों को मज़बूत किया जा सके तथा जन-जागरूकता बढ़ाई जा सके।
- राष्ट्रीय बस्टर्ड रिकवरी योजना: बस्टर्ड रिकवरी कार्यक्रम भारत में बंगाल फ्लोरिकन (Bengal Florican) और मैक्वीन बस्टर्ड (Macqueen's Bustard) सहित अन्य बस्टर्ड प्रजातियों के साथ GIB, लेसर फ्लोरिकन (Lesser Florican) के संरक्षण पर केंद्रित है।
फॉस्फेट रॉक क्या है?
- परिचय: यह किसी भी ऐसी चट्टान को दर्शाता है जिसमें फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है और जिसका उपयोग मुख्य रूप से कृषि उर्वरकों के रूप में किया जाता है।
- यह एक अति आवश्यक तत्त्व है जो पौधों को महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व प्रदान करता है और उनके विकास तथा वृद्धि में सहायक होता है।
- निर्माण: फॉस्फेट चट्टान एक अवसादी (Sedimentary) चट्टान है, जो करोड़ों वर्ष पहले समुद्र तल पर जैविक पदार्थों के संचय से बनी थी।
- अधिकांश फॉस्फेट शिला की खुदाई सतही खनन विधियों (Surface Mining Methods) से की जाती है, जिनमें खुले गड्ढे (ओपन-पिट), ड्रैगलाइन (Dragline) और उत्खनन (Excavator) शामिल हैं।
- वितरण: फॉस्फेट चट्टान के प्रमुख भंडार अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, कज़ाखस्तान और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- सबसे बड़े भंडार मोरक्को में स्थित हैं, जो फॉस्फेट का एक प्रमुख वैश्विक उत्पादक भी है।
- भारत में, फॉस्फेट चट्टान मुख्य रूप से राजस्थान और मध्य प्रदेश में उत्पादित होती है।
- फॉस्फेट चट्टान के उपयोग:
- फॉस्फेट चट्टान का सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोग कृषि के लिये फॉस्फेट उर्वरक बनाने में होता है।
- कुछ फॉस्फेट चट्टान का उपयोग पशुओं के लिये कैल्शियम फॉस्फेट पोषण अनुपूरक बनाने में किया जाता है।
- फॉस्फेट चट्टान से प्राप्त शुद्ध फॉस्फोरस का उपयोग औद्योगिक रसायनों के निर्माण में किया जाता है।
- भारत इस कच्चे माल पर काफी निर्भर है, लगभग 90% फॉस्फेट चट्टान की आवश्यकता आयात के माध्यम से पूरी होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा समूह प्राणी समूह संकटापन्न जातियों के संवर्ग के अंतर्गत आता है? (2012)
(a) महान भारतीय सारंग, कस्तूरी मृग, लाल पांडा और एशियाई वन्य गधा।
(b) कश्मीर महामृग, चीतल, नील गाय और महान भारतीय सारंग।
(c) हिम तेंदुआ, अनूप मृग, रीसस बंदर और सारस (क्रेन)
(d) सिंहपुच्छी मेकाक, नील गाय, हनुमान लंगूर और चीतल
उत्तर: A
प्रश्न. मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/ से सही है/हैं? (2020)
- यह दो ज़िलों में विस्तृत है।
- उद्यान के अंदर कोई मानव बस्ती नहीं है।
- यह ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के प्राकृतिक आवासों में से एक है।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: C