राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियाँ | 23 Dec 2025

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड राज्यपाल ने समान नागरिक संहिता (UCC) और धार्मिक स्वतंत्रता एवं अवैध धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2018 में संशोधन संबंधी विधेयकों को तकनीकी और कानूनी कमियों का हवाला देते हुए वापस भेज दिया है, जिससे राज्यपाल की शक्तियों के दायरे पर ध्यान फिर से केंद्रित हो गया है।

सारांश

  • उत्तराखंड राज्यपाल द्वारा समान नागरिक संहिता (UCC) में संशोधन विधेयकों को वापस भेजने के कदम ने राज्यपालों की संवैधानिक शक्तियों, विशेषकर अनुच्छेद 200 के तहत राज्य विधेयकों को वापसी या अनुमोदन रोकने के अधिकार पर फिर से ध्यान केंद्रित कर दिया है।
  • हालाँकि राज्यपाल मुख्यतः मंत्रीमंडल की सलाह पर संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करता है, उसकी विधायी और विवेकाधीन शक्तियाँ संवैधानिक सुरक्षा के रूप में हैं, लेकिन इनके प्रयोग से अक्सर संघवाद, लोकतांत्रिक जवाबदेही और केंद्र–राज्य संबंधों पर बहस हो जाती है।

राज्यपाल से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • राज्यपाल का संवैधानिक पद: अनुच्छेद 153 के तहत राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है और अनुच्छेद 154 के तहत राज्य की कार्यकारी शक्ति उसमें निहित होती है। वह केंद्र और राज्य के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करता है।
  • नियुक्ति, स्थिति और योग्यता: किसी राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा उनके हस्ताक्षर और मुहर के तहत की जाती है (अनुच्छेद 155)।
    • राज्यपाल के रूप में नियुक्ति के लिये व्यक्ति भारत का नागरिक होना चाहिये और उसकी आयु 35 वर्ष पूरी होनी चाहिये (अनुच्छेद 157)
    • राज्यपाल विधानमंडल या संसद का सदस्य नहीं हो सकता; किसी लाभकारी पद पर नहीं रह सकता तथा उसे पारिश्रमिक और भत्ते प्राप्त होंगे (अनुच्छेद 158)।
    • प्रत्येक राज्यपाल और राज्यपाल के कर्त्तव्यों का निर्वहन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति शपथ या पुष्टि ग्रहण करेगा (अनुच्छेद 159)।
  • विधायी शक्तियाँ: राज्यपाल को अनुच्छेद 174 से 176 के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण विधायी कार्य प्राप्त हैं, जिनमें विधानसभा को आहूत करना, सत्रावसान करना और भंग करना, सदन को संबोधित करना तथा उसे संदेश भेजना शामिल है।
    • अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल विधेयकों को स्वीकृति दे सकता है, स्वीकृति रोक सकता है, पुनर्विचार के लिये (धन विधेयकों को छोड़कर) वापस भेज सकता है या राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित कर सकता है।
    • राज्यपाल स्वीकृति रोककर पूर्ण वीटो तथा किसी गैर-धन विधेयक को पुनर्विचार हेतु लौटाकर निलंबनकारी वीटो का प्रयोग करता है। हालाँकि, राज्यपाल के पास पॉकेट वीटो की शक्ति नहीं होती।
  • कार्यकारी शक्तियाँ: अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह पर कार्य करता है, सिवाय विवेकाधीन मामलों के।
    • अनुच्छेद 164 के अंतर्गत वह मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है, अनुच्छेद 165 के तहत राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है और अनुच्छेद 166 के अनुसार राज्य की सभी कार्यकारी कार्रवाइयाँ राज्यपाल के नाम पर की जाती हैं।
  • वित्तीय शक्तियाँ:
    • अनुच्छेद 202: राज्यपाल वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य बजट) को विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करवाता है।
    • अनुच्छेद 203(3): राज्यपाल की अनुशंसा के बिना अनुदानों की कोई भी मांग प्रस्तुत नहीं की जा सकती।
    • अनुच्छेद 205: राज्यपाल अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदानों को सदन के समक्ष प्रस्तुत करवाता है।
  • अध्यादेश जारी करने की शक्ति: अनुच्छेद 213 के तहत, जब विधानमंडल सत्र में न हो और तत्काल कार्रवाई आवश्यक हो, तब राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है।
  • न्यायिक संबंधी शक्तियाँ: अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राज्यपाल क्षमादान संबंधी शक्तियों का प्रयोग करता है, जिसमें क्षमा, दंड-परिवर्तन आदि शामिल हैं।
    • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में उससे परामर्श किया जाता है तथा अनुच्छेद 217 के तहत न्यायाधीश राज्यपाल के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान लेते हैं।

नोट: सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने अनुच्छेद 143 के तहत 16वें राष्ट्रपति संदर्भ पर दी गई अपनी परामर्शात्मक राय में यह निर्णय दिया कि राज्य विधेयकों को स्वीकृति देने के लिये राष्ट्रपति या राज्यपाल पर समय-सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती, क्योंकि ऐसा करना संघवाद और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।

Governor

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है और उसका संवैधानिक पद क्या है?
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 155 के तहत की जाती है और वह अनुच्छेद 153–154 के अंतर्गत राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है।

2. किसी विधेयक को स्वीकृति के लिये प्रस्तुत किये जाने पर राज्यपाल के पास कौन-कौन से विकल्प होते हैं?
अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल विधेयक को स्वीकृति दे सकता है, स्वीकृति रोक सकता है, (धन विधेयकों को छोड़कर) पुनर्विचार के लिये वापस भेज सकता है या उसे राष्ट्रपति के लिये आरक्षित कर सकता है।

3. क्या राज्यपाल को राज्य विधेयकों पर पॉकेट वीटो का अधिकार प्राप्त है?
नहीं, राज्यपाल के पास पूर्ण और निलंबनकारी वीटो की शक्तियाँ होती हैं, लेकिन उसे पॉकेट वीटो का अधिकार प्राप्त नहीं है।

4. राज्य के वित्तीय मामलों में राज्यपाल की क्या भूमिका होती है?
राज्यपाल राज्य बजट को विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करवाता है और यह सुनिश्चित करता है कि उसकी अनुशंसा के बिना अनुदानों की कोई मांग न की जाए।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. भारतीय राज्य-व्यवस्था के संदर्भ में, निम्नलिखित कथन पर विचार कीजिये: (2025) 

I. किसी राज्य का राज्यपाल अपने पद की शक्तियों और दायित्वों के प्रयोग और निष्पादन के लिये किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है। 

II. राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान कोई दांडिक कार्यवाही संस्थित नहीं की जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी। 

III. किसी राज्य विधान-मंडल के सदस्य सदन के अंदर कही गई किसी भी बात के लिये किसी भी न्यायालय में कार्यवाही के लिये दायी नहीं हैं। 

उपर्युक्त कथनों में कौन-कौन से सही हैं? 

(a) केवल I और II 

(b) केवल II और III 

(c) केवल I और III 

(d) I, II और III

उत्तर: (d)   


प्रश्न. निम्नलिखित कथन पर विचार कीजिये:  ( 2025)

I. भारत के संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि कतिपय बातों में किसी राज्य का राज्यपाल अपने विवेकानुसार कार्य करता है। 

II. भारत का राष्ट्रपति, अपने आप, किसी राज्य विधान-मंडल द्वारा पारित विधेयक को भले ही वह संबंधित राज्य के राज्यपाल द्वारा न भेजा गया हो,अपने विचार के लिये आरक्षित कर सकता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा /कौन-से सही है /हैं? 

(a) केवल I 

(b) केवल II

(c) I और II दोनों 

(d) न तो I और न ही II

उत्तर: (a)