पारसनाथ पहाड़ी पर विवाद | 19 May 2025
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को पारसनाथ पर्वत पर मांस, शराब और नशीले पदार्थों की बिक्री एवं सेवन पर पहले से लागू प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया। पारसनाथ पहाड़ी जैन और संथाल आदिवासी समुदाय दोनों के लिये पवित्र स्थल है।
- पारसनाथ पहाड़ी का महत्त्व: जैन समुदाय इसे पारसनाथ और संथाल समुदाय इसे मारंग बुरु (शाब्दिक अर्थ "महान पर्वत") के नाम से जानते हैं।
- जैनियों के लिये: यह वह स्थान है जहाँ पार्श्वनाथ सहित 24 तीर्थंकरों में से 20 ने निर्वाण प्राप्त किया था, कई जैन मंदिर और धाम पहाड़ी पर स्थित हैं।
- संथालों के लिये: मारंग बुरु सर्वोच्च जीववादी देवता और न्याय का स्थान है। पहाड़ी पर स्थित जुग जाहेर थान (पवित्र उपवन) संथालों का सबसे पवित्र धोरोम गढ़ (धार्मिक स्थल) है।
- लो-बीर बैसी, पारंपरिक संथाल जनजातीय परिषद, अंतर-गाँव विवादों को सुलझाने के लिये पहाड़ी के तल पर आयोजित होती है।
- वर्ष 1855 का संथाल हूल, जिसका नेतृत्व सिद्धू और कान्हू मुर्मू ने किया था, मारंग बुरू से शुरू किया गया एक प्रमुख आदिवासी विद्रोह था।
- पारसनाथ पहाड़ी विवाद: एक प्रमुख विवाद सेंदरा उत्सव है, जो पहाड़ी पर संथालों द्वारा आयोजित एक पारंपरिक अनुष्ठानिक शिकार है।
- यह प्रथा, जो संथाल पुरुषों के लिये एक संस्कार है, जैनों के अहिंसा और शाकाहार के मूल्यों के बिल्कुल विपरीत है, जिसके कारण संथाल एवं जैन समूहों के बीच कानूनी लड़ाई हुई।
- संथाल: संथाल जनजाति भारत के सबसे बड़े स्वदेशी समुदायों में से एक है, जो मुख्य रूप से झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा और असम में रहती है।
- वे संथाली बोलते हैं, जो एक संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषा (आठवीं अनुसूची) है और इसकी अपनी लिपि ओलचिकी है, जिसे पंडित रघुनाथ मुर्मू ने निर्मित किया था।
- नृत्य (एनेज) और संगीत (सेरेंग) त्योहारों और सामाजिक समारोहों के दौरान उनकी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मूल बने रहते हैं।
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