डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती | 07 Jul 2025
स्रोत: पीआईबी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती (6 जुलाई) पर श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने राष्ट्रीय एकता, औद्योगिक नीति और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को रेखांकित करते हुए भारत के आधुनिक विकास में उनकी प्रासंगिकता को भी उजागर किया।
- जन्म और प्रारंभिक जीवन: डॉ. मुखर्जी का जन्म कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुआ था। वे प्रसिद्ध शिक्षाविद् और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति सर अशुतोष मुखर्जी के पुत्र थे।
- शैक्षणिक उत्कृष्टता: डॉ. मुखर्जी ने इंग्लैंड में ब्रिटिश साम्राज्य के विश्वविद्यालयों के सम्मेलन में कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया।
- डॉ. मुखर्जी वर्ष 1934 में 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे युवा कुलपति बने।
- उन्होंने वर्ष 1922 में बंगाली पत्रिका "बंग वाणी" तथा 1940 के दशक में द नेशनलिस्ट की शुरुआत की।
- राजनीतिक जीवन: 1920 के दशक में डॉ. मुखर्जी भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में शामिल हुए, लेकिन नेतृत्व से वैचारिक मतभेदों के कारण बाद में त्याग-पत्र दे दिया। इसके बाद वे हिंदू महासभा में शामिल हुए और वर्ष 1937 में बंगाल में एक प्रगतिशील गठबंधन सरकार के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया।
- वर्ष 1940 में हिंदू महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष बने और भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की वकालत की।
- उन्होंने वर्ष 1951 में अखिल भारतीय भारतीय जन संघ की स्थापना की, जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी में परिवर्तित हो गई।
- स्वतंत्रता के पश्चात भूमिका: डॉ. मुखर्जी ने स्वतंत्रता के बाद अंतरिम सरकार में उद्योग और आपूर्ति मंत्री के रूप में कार्य किया।
- चित्तरंजन लोकोमोटिव फैक्ट्री, सिंदरी फर्टिलाइज़र कॉरपोरेशन तथा हिंदुस्तान फर्टिलाइज़र कॉरपोरेशन जैसी प्रमुख संस्थाओं की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- वैचारिक दृष्टिकोण: उन्होंने राष्ट्रवाद, हिंदू सांस्कृतिक पहचान तथा एक अखंड भारत का समर्थन किया। वे अनुच्छेद 370 के विरोधी थे, यह कहते हुए कि एक राष्ट्र में दो संविधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं हो सकते।
- भारत के भाषाई आधार पर विभाजन का विरोध किया तथा प्रशासनिक दक्षता, सुरक्षा एवं आर्थिक समृद्धि के आधार पर एकता की वकालत की।
- वे जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति के विरोध में एक प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार किये गए और वर्ष 1953 में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
- विरासत: राष्ट्रीय मुद्दों पर उनकी तीखी बहस के लिये उन्हें "संसद का शेर" कहा जाता है।
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