अंबाजी मार्बल को GI टैग मिला | 17 Nov 2025
गुजरात के अंबाजी मार्बल को भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया गया है, जिससे इसके अद्वितीय सफेद पत्थर को मान्यता मिलेगी तथा इसकी सांस्कृतिक, औद्योगिक और वैश्विक पहचान मज़बूत होगी।
- उत्पत्ति: अंबाजी मार्बल गुजरात के बनासकाँठा ज़िले के अंबाजी शहर में उत्खनित, एक प्रमुख तीर्थ स्थल और शक्तिपीठ।
- अद्वितीय गुण: यह अपने शुद्ध सफेद रंग, असाधारण चमक, उच्च कैल्शियम सामग्री और उल्लेखनीय स्थायित्व के लिये जाना जाता है।
- इसकी स्थायित्व की तुलना अक्सर अन्य ऐतिहासिक पत्थरों से की जाती है, जिनमें ताजमहल में प्रयुक्त पत्थर भी शामिल हैं तथा इसका व्यापक रूप से मंदिरों और पवित्र वास्तुकला में उपयोग किया जाता है, यह अपनी सौंदर्य अपील और मज़बूती दोनों के लिये मूल्यवान है।
- महत्त्व: अंबाजी संगमरमर को मंदिर वास्तुकला के लिये मियामी, लॉस एंजिल्स, बोस्टन जैसे शहरों और न्यूज़ीलैंड और इंग्लैंड जैसे देशों में निर्यात किया जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि अंबाजी की संगमरमर की खदानें 1,200-1,500 वर्ष पुरानी हैं और इनका उपयोग माउंट आबू में दिलवाड़ा जैन मंदिर के निर्माण में किया गया था।
- GI टैग के निहितार्थ: GI टैग एक प्रकार का बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) है जो किसी विशिष्ट क्षेत्र से जुड़े गुणों वाले उत्पादों की पहचान करता है और उन्हें नकल से बचाता है।
- यह 10 वर्षों के लिये वैध है, नवीकरणीय है और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग द्वारा विनियमित है।
- GI टैग एक विशिष्ट ब्रांड पहचान बनाने, बाज़ार मांग बढ़ाने और स्थानीय उद्योगों व कारीगरों को सहयोग देने में मदद करेगा।
- GI मान्यता प्रामाणिकता की रक्षा करती है, नकली उत्पादों को रोकती है और निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करती है।
मार्बल
- मार्बल एक रूपांतरित चट्टान है जो तब बनती है जब चूना पत्थर उच्च ताप और दबाव से गुजरता है, जिससे इसका कैल्साइट आपस में जुड़े हुए क्रिस्टलों के घने द्रव्यमान में क्रिस्टलीकृत हो जाता है।
- यह अधिकतर कैल्साइट (CaCO₃) से बना होता है और इसमें मिट्टी, अभ्रक, क्वार्ट्ज, पाइराइट, लौह ऑक्साइड या ग्रेफाइट शामिल हो सकते हैं। संगमरमर का रंग कायांतरण के दौरान उपस्थित छोटी अशुद्धियों से आता है।
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