अफज़ल खान का मकबरा | 14 Nov 2022

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अफज़ल खान के मकबरे के आसपास चलाए गए विध्वंस/तोड़फोड़ अभियान पर महाराष्ट्र सरकार से रिपोर्ट मांगी है।

  • न्यायालय ने कहा कि इन रिपोर्टों में ढाँचों की प्रकृति या प्रकार और क्या कथित अनधिकृत संरचनाओं को हटाने के लिये उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था, का उल्लेख होना चाहिये
  • महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि विध्वंस अभियान समाप्त हो गया है और सरकारी एवं वन भूमि पर बने अवैध ढाँचों को ध्वस्त कर दिया गया है।

अफज़ल खान के मकबरे पर विवाद:

  • हिंदू समूहों का आरोप है कि हज़रत मोहम्मद अफज़ल खान मेमोरियल सोसाइटी ने अनधिकृत निर्माण कर मकबरे का विस्तार किया।
  • मामले में वर्ष 2004 में एक व्यक्ति द्वारा विध्वंस की मांग करते हुए जनहित याचिका (PIL) आवेदन दायर किया गया था।
  • हिंदू समूहों ने यह भी दावा किया कि सोसाइटी मारे गए कमांडर के सम्मान में विभिन्न गतिविधियों की मेज़बानी करके 'शिवाजी की भूमि' में 'स्वराज के दुश्मन' का महिमामंडन कर रही है।

अफज़ल  खान:

  • वह 17वीं शताब्दी में बीजापुर के आदिल शाही सल्तनत में सेनापति था।
  • छत्रपति शिवाजी के उदय और इस क्षेत्र पर बढ़ते नियंत्रण के साथ अफजल खान को दक्कन क्षेत्र में इनके क्षेत्राधिकार को सीमित करने वाले व्यक्ति के रूप में देखा गया था।
  • अफज़ल खान ने अपने 10,000 घुड़सवारों के साथ बीजापुर से वाई (Vai) तक मार्च किया और रास्ते में शिवाजी के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में लूटपाट की
  • शिवाजी ने प्रतापगढ़ के किले में एक युद्ध परिषद बुलाई, जहाँ उनके अधिकांश सलाहकारों ने उनसे शांति स्थापित करने का आग्रह किया। हालाँकि शिवाजी पीछे हटना नहीं चाहते थे और उन्होंने अफज़ल खान के साथ एक बैठक की।
  • इस मुलाकात के दौरान अफज़ल खान द्वारा षडयंत्र पूर्वक शिवाजी पर किये गए हमले की जवाबी कार्रवाई में शिवाजी विजयी हुए। इसके बाद मराठों के हाथों आदिलशाही सेना का पराभव हुआ।
  • मराठा सूत्रों के अनुसार, खान के अवशेषों को किले में दफनाया गया था और शिवाजी के आदेश पर एक मकबरे का निर्माण किया गया था।
  • अनुग्रह कार्य में शिवाजी ने अफज़ल खान के अवशेषों पर एक मकबरा बनवाया और उसके सम्मान में एक टॉवर का निर्माण कराया, जिसे आज भी प्रतापगढ़ में 'अफजुल बुरुज़ ' के नाम से जाना जाता है।
  • अफज़ल खान की तलवार को शिवाजी और उनके वंशजों के शस्त्रागार में एक मूल्यवान ट्रॉफी के रूप में संरक्षित किया गया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस