भारतीय रेलवे का निजीकरण: आवश्यकता व चुनौतियाँ | 08 Jul 2020

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारतीय रेलवे के निजीकरण व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ  

भारत की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस के संचालन के बाद अब भारतीय रेलवे ने 151 नई ट्रेनों के माध्यम से निजी कंपनियों को अपने नेटवर्क पर यात्री ट्रेनों के संचालन की अनुमति देने की प्रक्रिया शुरू की है। यह सभी यात्री ट्रेनें संपूर्ण रेलवे नेटवर्क का एक छोटा हिस्सा हैं, सरकार द्वारा प्रारंभ की गई निजीकरण की प्रक्रिया यात्री ट्रेन संचालन में निजी क्षेत्र की भागीदारी की शुरुआत का प्रतीक है। ध्यातव्य है कि नीति आयोग एक व्यापक योजना पर कार्य कर रहा है, जिसमें रेलवे स्टेशनों के आसपास के क्षेत्र के समग्र विकास की परिकल्पना की गई है और अनुमान के मुताबिक इसमें निजी निवेश आकर्षित करने की प्रबल संभावना है। रेल मंत्रालय के अनुसार, फरवरी-मार्च 2021 तक परियोजना के लिये वित्तीय बोली की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी तथा अप्रैल 2021 तक उन्हें अंतिम रूप दिया जाएगा। अप्रैल 2023 तक निजी ट्रेनों का परिचालन शुरू होने की उम्मीद है।

विदित है कि भारत के पास अमेरिका, चीन और रूस के बाद दुनिया में चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। एक अनुमान के मुताबिक, भारतीय रेलवे प्रतिदिन लगभग 2.5 करोड़ लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है और इस कार्य के लिये उसके पास तकरीबन 13 लाख कर्मचारी हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय रेलवे का संपूर्ण बुनियादी ढाँचा रेलवे बोर्ड द्वारा प्रबंधित है और भारतीय रेल सेवाओं पर उसका एकाधिकार है, परंतु बीते 2 दशकों में भारतीय रेलवे में निजीकरण का विषय चर्चाओं का केंद्र बिंदु रहा है। कुछ पहलुओं जैसे- रेल दुर्घटना, खान-पान और समय की पाबंदी आदि के कारण भारतीय रेलवे को समय-समय पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है और इन्हीं आलोचनाओं ने भारतीय रेलवे में निजीकरण को भी हवा दी है।

निजीकरण से तात्पर्य     

  • निजीकरण का तात्पर्य ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें किसी विशेष सार्वजनिक संपत्ति अथवा कारोबार का स्वामित्व सरकारी संगठन से स्थानांतरित कर किसी निजी संस्था को दे दिया जाता है। अतः यह कहा जा सकता है कि निजीकरण के माध्यम से एक नवीन औद्योगिक संस्कृति का विकास संभव हो पाता है।
  • यह भी संभव है कि सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र को संपत्ति के अधिकारों का हस्तांतरण बिना विक्रय के ही हो जाए। तकनीकी दृष्टि से इसे अविनियमन (Deregulation) कहा जाता है। इसका आशय यह है कि जो क्षेत्र अब तक सार्वजनिक क्षेत्र के रूप में आरक्षित थे उनमें अब निजी क्षेत्र के प्रवेश की अनुमति दे दी जाएगी।
  • वर्तमान में यह आवश्यक हो गया है कि सरकार स्वयं को ‘गैर सामरिक उद्यमों’ के नियंत्रण, प्रबंधन और संचालन के बजाय शासन की दक्षता पर केंद्रित करे। इस दृष्टि से निजीकरण का महत्त्व भी बढ़ गया है।

भारतीय रेलवे की विकास यात्रा

  • भारत में व्यावसायिक ट्रेन यात्रा की शुरुआत वर्ष 1853 में हुई थी जिसके बाद वर्ष 1900 में भारतीय रेलवे तत्कालीन सरकार के अधीन आ गई थी। 
  • वर्ष 1925 में बॉम्बे से कुर्ला के बीच देश की पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन चलाई गई।
  • वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात् भारत को एक पुराना रेल नेटवर्क विरासत में मिला और पूर्व में विकसित लगभग 40 प्रतिशत रेल नेटवर्क नवगठित पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। ऐसी स्थिति में यह आवश्यकता महसूस की गई कि कुछ लाइनों की मरम्मत की जाए और कुछ नई लाइने बिछाई जाएँ ताकि जम्मू व उत्तर-पूर्व भारत के कुछ क्षेत्रों को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ा जा सके। 
  • वर्ष 1952 में तत्कालीन रेल नेटवर्क को ज़ोन (Zone) में बदलने का निर्णय लिया गया और इसी वर्ष कुल 6 ज़ोन अस्तित्व में आए।
  • इससे पूर्व रेलवे संबंधी उत्पादन देश में काफी कम होता था, परंतु देश ने जैसे-जैसे विकास किया रेलवे संबंधी उत्पादन भी देश के अंदर ही होने लगा।
  • सितंबर 2003 में प्रशासन को मज़बूत करने के उद्देश्य से ज़ोन की संख्या को बढ़ाकर 12 कर दिया गया जिसके बाद कई अन्य मौकों पर रेलवे ज़ोन्स की संख्या को बढ़ाया गया और वर्तमान में देश में कुल 17 ज़ोन मौजूद हैं।
  • देश में जैसे-जैसे रेलवे नेटवर्क का विकास हुआ, रेलवे के संचालन और प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ भी सामने आने लगीं और इन चुनौतियों से निपटने के लिये नए विकल्पों की खोज की जाने लगी। कई विशेषज्ञ रेलवे के निजीकरण को इसी प्रकार के एक विकल्प के रूप में देखने लगे।
  • वर्ष 2019 में लखनऊ से नई दिल्ली के बीच भारत की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस की शुरुआत हुई, जिसे रेलवे में निजीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया।
  • वर्तमान में रेल मंत्रालय ने यात्री ट्रेन सेवाओं के संचालन के लिये निजी क्षेत्र हेतु 'अर्हता के लिये अनुरोधों' (Request for Qualifications-RFQ) को आमंत्रित कर रेलवे परिचालन के निजीकरण की दिशा में पहला कदम उठाया है।

रेलवे में निजीकरण के कारण

  • भारतीय रेलवे अपने बुनियादी ढाँचे और सेवाओं के आधुनिकीकरण के साथ तालमेल बिठा पाने में असफल रहा है। 
  • रेलवे अपनी सेवाओं जैसे- टिकटिंग, खानपान, कोच रखरखाव और टिकट चेकिंग आदि के विषय में ग्राहकों को संतुष्ट करने में असफल रहा है और यह आम लोगों की रेलवे के प्रति नाराज़गी का प्रमुख कारण है।  
  • भारतीय रेलवे उन चुनिंदा सरकारी स्वामित्त्व वाले उपक्रमों की सूची में आते है जिसे प्रतिवर्ष नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
  • तकनीकी स्तर पर भी रेलवे सेवाओं की गुणवत्ता के उच्च मानकों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाया है और यही कारण है कि समय-समय पर रेल दुर्घटना की खबरें सामने आती रही हैं।
  • इसके साथ ही ट्रेनों का समय पर परिचालन भी भारतीय रेलवे के समक्ष एक बड़ी चुनौती के रूप में मौजूद है।

निजीकरण के पक्ष में तर्क 

  • बेहतर बुनियादी ढाँचा
    • निजीकरण के पक्ष में एक तर्क यह दिया जाता है कि इससे बेहतर बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा मिलेगा और यात्रियों के लिये बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। उम्मीद है कि रेलवे में निजी कंपनियों के आने से बेहतर प्रबंधन संभव हो पाएगा।
  • मांग तथा आपूर्ति में अंतर
    • आज़ादी के 70 से अधिक वर्षों के बाद भी सभी यात्रियों को यात्रा सेवाएँ प्रदान करने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे का विकास नहीं हो पाया है।
    • प्रतीक्षा-सूची में टिकट कराने वाले अनेक यात्रियों के (व्यस्त मौसम के दौरान लगभग 13.3% यात्रियों) के टिकट की कंफर्म बुकिंग नहीं हो पाती है। 
    • निजी ट्रेनों के परिचालन द्वारा यात्रियों द्वारा की जा रही ट्रेन सेवाओं की मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी। 
  • किराए में वृद्धि नहीं
    • निजी ट्रेन संचालकों द्वारा यात्रा किराया तय करते समय बस तथा हवाई यात्रा किराये के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी होगी। अत: निजी ऑपरेटरों के लिये बहुत अधिक किराया वसूलना व्यवहार्य नहीं होगा।
    • चूँकि निजी ट्रेनों के संचालन के बाद भी रेलवे द्वारा 95% ट्रेनों का परिचालन किया जाएगा इसलिये इन ट्रेनों के किराए में वृद्धि नहीं की जाएगी, साथ ही इन ट्रेनों में बेहतर सुविधाएँ प्रदान करने की दिशा में कार्य किये जाएँगे। इससे आम जन को कम कीमत पर बेहतर सुविधाएँ मिल सकेंगी।
  • कर्मचारियों की छंटनी नहीं 
    • रेलवे द्वारा वर्तमान में उपलब्ध ट्रेनों के अलावा नवीन निजी ट्रेनें चलाई जाएँगी। रेलवे को वर्ष 2030 तक अनुमानित 13 बिलियन यात्रियों के लिये और अधिक ट्रेनों के संचालन की आवश्यकता होगी। 
    • निजी ट्रेनों के परिचालन से नौकरी खोने का तर्क आधारहीन है।
  • तकनीकी महत्त्व
    • वर्तमान समय में 4000 किमी. की दूरी तय करने के बाद ट्रेनों के कोचों के रख-रखाव की आवश्यकता होती है, लेकिन आधुनिक कोचों को हर 40,000 किमी के बाद या 30 दिनों में एक या दो बार ही रख-रखाव की आवश्यकता होगी।
    • इसके अलावा ये कोच गति, सुरक्षा और सुविधा के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।  
  • मेक इन इंडिया के अनुकूल
    • RFQ मेक इन इंडिया नीति के तहत जारी किया गया है। इसलिये कोचों का निर्माण भारत में किया जाएगा तथा इसके लिये स्थानीय घटकों का उपयोग किया जाएगा।

निजीकरण के विपक्ष में तर्क 

  • सीमित कवरेज
    • यदि रेलवे का स्वामित्त्व भारत सरकार के पास ही रहता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि वह लाभ की परवाह किये बिना राष्ट्रव्यापी कनेक्टिविटी प्रदान करती है। परंतु रेलवे के निजीकरण से यह संभव नहीं हो पाएगा, क्योंकि निजी उद्यमों का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है और उन्हें जिस क्षेत्र से लाभ नहीं होता वे वहाँ कार्य बंद कर देते हैं।
  • सामाजिक न्याय
    • निजी उद्यमों का एकमात्र उद्देश्य लाभ कमाना होता है और रेलवे में लाभ कमाने का सबसे सरल तरीका किराए में वृद्धि है और यदि ऐसा होता है तो इसका सबसे ज़्यादा असर आम नागरिकों पर पड़ेगा।
  • जवाबदेही
    • निजी कंपनियाँ अपने व्यवहार में अप्रत्याशित होती हैं और इनमें जवाबदेहिता की कमी पाई जाती है, जिसके कारण रेलवे जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में इनके प्रयोग का प्रश्न विचारणीय हो जाता है।
  • सुरक्षा का प्रश्न 
    • निज़ी कंपनियों में विभिन्न विदेशी कंपनियों की भी साझेदारी होती है ऐसे में यदि निज़ी कंपनियों को रेल परिचालन का कार्य दिया जाता है तो संभावना है कि उसकी सुरक्षा से समझौता हो जाए। 

आगे की राह  

  • स्थायी मूल्य निर्धारण- यात्री ट्रेनों व मालगाड़ियों के उचित किराए के निर्धारण हेतु भारतीय रेलवे मूल्य निर्धारण मॉडल को फिर से अपनाने की आवश्यकता है। यह मूल्य निर्धारण सड़क परिवहन की लागत के साथ प्रतिष्पर्धी होना चाहिये।
  • स्वतंत्र नियामक- निजी संचालकों के लिये एक समान स्तर के प्लेटफ़ॉर्म को विकसित करने के लिये एक स्वतंत्र नियामक की स्थापना महत्वपूर्ण होगी।
  • रेलवे का आधुनिकीकरण- बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिशों को लागू करने की आवश्यकता है, जैसे कि भारतीय रेलवे निर्माण कंपनी का विस्तार, रेलवे के मुख्य कार्यों का निगमीकरण आदि।

प्रश्न- ‘भारत में एक ऐसा रेल नेटवर्क होना चाहिये जो न केवल कुशल, विश्वसनीय और सुरक्षित हो बल्कि लागत प्रभावी और सुलभ भी हो।’ रेलवे के निजीकरण के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।