मैच फिक्सिंग से निज़ात पाने के लिये विशेष कानूनों की ज़रूरत | 10 Aug 2017

सन्दर्भ
हाल ही में केरल उच्च न्यायालय द्वारा भारतीय तेज़ गेंदबाज एस. श्रीसंत पर बीसीसीआई की ओर से 2013 के आईपीएल स्पाट फिक्सिंग मामले में लगाया गया आजीवन प्रतिबंध हटा लिया गया है। एस. श्रीसंत मैच फिक्सिंग में सम्मिलित थे या नहीं यह निर्णित करना तो अदालत का काम है लेकिन, सच तो यह है कि हमारी विधायिका यदि मैच-फिक्सिंग से निपटने के लिये आवश्यक कानूनों के महत्त्व को यूँ ही नज़रअंदाज़ करती रही तो शायद ही देश की कोई अदालत मैच-फिक्स करने वाले खिलाड़ियों को दण्डित कर पाए।
समस्याएँ क्या हैं?

  • क्रिकेट या अन्य खेलों में सट्टेबाजी को वैध करने को लेकर बहस हो सकती है, लेकिन मैच-फिक्सिंग को एक गंभीर अपराध माना जाना चाहिये। विदित हो कि ऐसे कई मौके आए हैं, जब बीसीसीआई द्वारा लागाये गए प्रतिबन्ध को अदालतों ने खारिज़ कर दिया है।
  • 1999 मे दिल्ली पुलिस ने इसी तरह साउथ अफ्रीका टीम के कप्तान हैंसी क्रोनिया के साथ मो. अज़रुद्दीन, अजय जडेजा आदि जैसे बड़े खिलाड़ियों के मैच फिक्सिंग में शामिल होने का खुलासा किया था। बाद में इस मामले की जाँच सीबीआई ने इन खिलाड़ियों के खिलाफ आरोपों को सही पाया और उनके खिलाफ पुख्ता सबूत भी जुटाए।
  • लेकिन कानून की किसी भी धारा मे मैच फिक्सिंग को अपराध नहीं ठहराए जाने के कारण सीबीआई किसी भी खिलाड़ी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकी। एस. श्रीसंत का मामला तो और भी दिलचस्प है, विदित हो कि वर्ष 2013 में आईपीएल के दौरान स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में गिरफ्तार श्रीसंत के ऊपर मकोका (Maharashtra Control of Organised Crime Act) लगाया गया था।
  • यह अत्यंत ही चिंतनीय है कि जिस कानून का उद्देश्य आतंकी गतिविधियों पर अंकुश लगाना है, उसका प्रयोग मैच फिक्सिंग के मामले में किया गया। असली चिंता वही है कि मैचिंग फिक्सिंग के मामलों के लिये भारत में कोई विशेष कानून ही नहीं है।

विधायिका का रुख

  • विदित हो कि वर्ष 2011 में तत्कालीन केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन द्वारा नेशनल स्पोर्ट्स (डेवलपमेंट) बिल, 2011 पेश किया गया था। इस बिल का मुख्य उद्देश्य देश में कार्यरत विभिन्न खेल संगठनों के प्रशासनिक ढाँचे में सुधार करना और पारदर्शिता लाना था, लेकिन यह पारित नहीं हो पाया।
  • इसके बाद साल 2013 में आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग का मामला उजागर हुआ और इसकी जाँच के लिये सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस मुग्दल की अध्यक्षता में एक जाँच समिति का गठन किया।
  • तत्पश्चात्, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा की अध्यक्षता में गठित समिति ने अपनी जाँच में आईपीएल की दो टीमों चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स के मालिकों को सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग में लिप्त पाया जिसके बाद दोनों टीमों पर दो वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया गया। हालाँकि इन दोनों समितियों की रिपोर्ट्स को खेल मंत्रालय ने गंभीरता से नहीं लिया।
  • वर्ष 2016 में खेलों में सुधार के लिये अनुराग ठाकुर ने एक संविधान संशोधन बिल लोकसभा में पेश किया, जिसमें खेल को राज्य सूची के विषय से हटाकर समवर्ती सूची में शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है। खेल के समवर्ती सूची में शामिल होने पर, खेलों का समन्वित विकास होगा, केंद्र और राज्य की सरकारें बेहतर तरीके से खेलों पर ध्यान दे सकेंगी और इसके विकास की योजनाएँ बना सकेंगी।
  • निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि इस संबंध में विधायिका ने प्रयास किया है, लेकिन यह भी सच है कि ये प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं।


आगे की राह

  • जब किसी अपराध के संबंध में हमारे पास कोई ठोस कानून ही नहीं है, तो उस पर किस तरह की सुनवाई होगी और क्या सज़ा दी जायेगी? यह अदालत के लिये भी संशय वाली स्थिति है।
  • ऐसे मामलों में दोषी पाए गए खिलाड़ियों के खिलाफ भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पास एकमात्र हथियार प्रतिबंधित करने का है, जो कि बाद में अदालत द्वारा निरस्त कर दिया जाता है।
  • कई बार तो मैच फिक्सिंग के कई संगीन मामले भी बीसीसीआई द्वारा दबा दिये जाते है। यदि इस संबंध में कोई कानून बन जाए तो बीसीसीआई को और अधिक ज़िम्मेदार बनाया जा सकता है।
  • देश का कानून बनाने का काम संसद करती है। सवाल यह है कि इतने सालों बाद भी हम इस बारे में कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा सके हैं?
  • हम भले ही अभी मैच या स्पॉट फिक्सिंग को क्रिकेट से जोड़ कर देख रहे हैं, लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों में भारत में कईं अन्य खेलों और लीग प्रतियोगिताओं की शुरुआत हुई है। फिर वह चाहे इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) हो या हॉकी इंडिया लीग (एचआईएल) या फिर प्रो-कबड्डी लीग।
  • कई देशों में पहले से ही मैच फिक्सिंग को लेकर विशेष कानून मौजूद हैं और हमें भी अब देर नहीं करनी चाहिये। हो सकता है अज़हरुद्दीन निर्दोष हो, हो सकता है श्रीशांत भी निर्दोष हो, लेकिन हमें अदालतों को दोषी को दंडित करने की शक्ति देने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

  • फिक्सिंग का दायरा केवल क्रिकेट तक ही सीमित नहीं है, कुछ समय पहले वैश्विक स्तर पर टेनिस और फुटबॉल में फिक्सिंग होने की बातें भी सामने आईं थी।
  • वर्ष 2014 में इंग्लैंड के फुटबॉल लीग क्लबों के सात खिलाड़ियों को कथित मैच फिक्सिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यूरोपियन यूनियन पुलिस ऑर्गनाइज़ेशन (यूरोपोल) की जाँच टीम को एक दो नहीं बल्कि 380 फुटबॉल मुकाबलों में मैच फिक्सिंग के सबूत मिले थे।
  • भारत में क्रिकेट के अलावा फुटबॉल, टेनिस, कबड्डी और कुश्ती जैसे कई खेलों की लीग्स शुरू हुई हैं, ऐसे में इन खेलों में भी फिक्सिंग की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता, ऐसे में निश्चित तौर पर फिक्सिंग को रोकने के लिये एक बेहतर और सुदृढ़ क़ानून बनाने की आवश्यकता है। संसद को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना होगा ताकि खेल प्रेमियों का खेल और खिलाड़ियों पर विश्वास बना रह सके।