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जल संकट और जल प्रबंधन | 09 Oct 2019 | कृषि

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जल संकट और जल प्रबंधन संबंधी विषयों पर भी चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

जल, मानव अस्तित्व को बनाए रखने के लिये एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। यह न केवल ग्रामीण और शहरी समुदायों की स्वच्छता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है बल्कि कृषि के सभी रूपों और अधिकांश औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं के लिये भी आवश्यक है। परंतु विशेषज्ञों ने सदैव ही जल को उन प्रमुख संसाधनों में शामिल किया है जिन्हें भविष्य में प्रबंधित करना सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारत एक गंभीर जल संकट के कगार पर है। मौजूदा जल संसाधन संकट में हैं, देश की नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, जल संचयन तंत्र (Water-Harvesting Mechanisms) बिगड़ रहे हैं और भूजल स्तर लगातार घट रहा है। इन सभी के बावजूद जल संकट और उसके प्रबंधन का विषय भारत में आम जनता की चर्चाओं में स्थान नहीं पा सका है।

जल संकट- वर्तमान स्थिति

देश में पानी की खपत

वर्तमान में जल प्रबंधन की स्थिति

भारत में बहने वाली मुख्य नदियों के अलावा हमें औसतन सालाना 1170 ml बारिश का पानी मिल जाता है, इसके अलावा नवीकरणीय जल संरक्षण से भी हमें सालाना 1608 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी हर साल मिल जाता है। जिस तरह का मज़बूत बैकअप हमें मिला है और दुनिया का जो नौवाँ सबसे बड़ा फ्रेश वॉटर रिज़र्व हमारे पास है, उसके बाद भारत में व्याप्त पानी की समस्या स्पष्टतः जल संरक्षण को लेकर हमारे कुप्रबंधन को दर्शाती है, न कि पानी की कमी को।

जल प्रबंधन का अर्थ?

जल प्रबंधन का आशय जल संसाधनों के इष्टतम प्रयोग से है और जल की लगातार बढ़ती मांग के कारण देशभर में जल के उचित प्रबंधन की आवश्यकता कई वर्षों से महसूस की जा रही है। जल प्रबंधन के तहत पानी से संबंधित जोखिमों जैसे- बाढ़, सूखा और संदूषण आदि के प्रबंधन को भी शामिल किया जाता है। यह प्रबंधन स्थानीय प्रशासन द्वारा भी किया जा सकता है और किसी व्यक्तिगत इकाई द्वारा भी। उचित जल प्रबंधन में जल का इस प्रकार प्रबंधन शामिल होता है कि सभी लोगों तक वह पर्याप्त मात्रा में पहुँच सके।

जल प्रबंधन की आवश्यकता क्यों?

भारत में जल प्रबंधन के समक्ष चुनौतियाँ

जल प्रबंधन के प्रमुख तरीके

उपयुक्त सीवेज सिस्टम साफ और सुरक्षित तरीके से अपशिष्ट जल के निपटान में मदद करते हैं। इसमें गंदे पानी को रिसाइकिल किया जाता है और उसे प्रयोग करने योग्य बनाया जाता है ताकि उसे वापस लोगों के घरों में पीने और घरेलू कार्यों में इस्तेमाल हेतु भेजा जा सके।

सूखा प्रभावित क्षेत्रों में फसलों के पोषण के लिये अच्छी गुणवत्ता वाली सिंचाई प्रणाली सुनिश्चित की जा सकती है। इन प्रणालियों को प्रबंधित किया जा सकता है ताकि पानी बर्बाद न हो और अनावश्यक रूप से पानी की आपूर्ति को कम करने से बचने के लिये इसके पुनर्नवीनीकरण या वर्षा जल का भी उपयोग कर सकते हैं।

झीलों, नदियों और समुद्रों जैसे प्राकृतिक जल स्रोत काफी महत्त्वपूर्ण हैं। ताज़े पानी के पारिस्थितिकी तंत्र और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र दोनों ही विभिन्न जीवों की विविधता का घर हैं और इन पारिस्थितिक तंत्रों के समर्थन के बिना ये जीव विलुप्त हो जाएंगे।

देश में जल संरक्षण पर बल देना आवश्यक है और कोई भी इकाई (चाहे वह व्यक्ति हो या कोई कंपनी) अनावश्यक रूप से उपकरणों के प्रयोग को कम कर रोज़ाना कई गैलन पानी बचा सकता है।

अन्य तरीके:

नीति आयोग की @75 कार्यनीति और जल प्रबंधन

आगे की राह

निष्कर्ष

जल पृथ्वी का सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन है और हमें न केवल अपने लिये इसकी रक्षा करनी है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये भी इसे बचा कर रखना है। वर्तमान समय में जब भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व जल संकट का सामना कर रहा है तो आवश्यक है कि इस ओर गंभीरता से ध्यान दिया जाए। भारत में जल प्रबंधन अथवा संरक्षण संबंधी नीतियाँ मौज़ूद हैं, परंतु समस्या उन नीतियों के कार्यान्वयन के स्तर पर है। अतः नीतियों के कार्यान्वयन में मौजूद शिथिलता को दूर कर उनके बेहतर क्रियान्वयन को सुनिश्चित किया जाना चाहिये जिससे देश में जल के कुप्रबंधन की सबसे बड़ी समस्या को संबोधित किया जा सके।

प्रश्न: भारत में जल संकट की गंभीर चुनौती से निपटने के लिये उचित जल प्रबंधन की आवश्यकता पर विचार कीजिये।