व्यापार सुगमता हेतु आवश्यक दिवालिया एवं शोधन अक्षमता कोड | 05 Oct 2020

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में व्यापार सुगमता हेतु आवश्यक दिवालिया एवं शोधन अक्षमता कोड व उससे संबंधित विभिन्न पहलूओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

प्रधानमंत्री मोदी ने दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code-IBC) को प्रमुख विधायी सुधारों में से एक के रूप में उल्लिखित किया है, जो उच्च विकास  प्रक्षेपवक्र में भारत को आत्मनिर्भरता के  मार्ग में लाने के लिये अनुकूल माहौल प्रदान करेगा। वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Service Tax) जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण सुधारों के साथ दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड भारत में व्यापार करने की प्रक्रिया को सुगम बनाकर इसे ‘मेक फॉर वर्ल्ड’ प्लेटफ़ॉर्म के रूप में विकसित कर रहा है।

वर्ष 2019-20 में भारत को प्राप्त होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में लगभग 74.5 बिलियन डॉलर की वृद्धि में इन सुधारों का महत्त्वपूर्ण योगदान था। 

क्या है दिवालिया एवं शोधन अक्षमता कोड? 

  • केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाते हुए एक नया दिवालियापन संहिता संबंधी विधेयक पारित किया। 
  • दिवालिया एवं शोधन अक्षमता कोड- 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code-2016) आरोपी प्रबंधन के विरुद्ध शेयरधारकों, लेनदारों और कामगारों के हितों की सुरक्षा के लिये लाया गया है। 
  • इसके प्रावधानों के तहत डिफॉल्ट के मामले में किसी बैंकिंग कंपनी को दिवालिया समाधान प्रक्रिया शुरू करने के लिये निर्देशों हेतु आरबीआई को प्राधिकृत करने के लिये लागू किया गया है।

कोड की आवश्यकता क्यों पड़ी? 

  • दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड (IBC), 2016 लाने तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का NPA चिंताजनक स्तर तक बढ़ चुका था। इन चिंताओं को दूर करने के लिये यह कानून बनाया गया और इसे लागू करके इसके तहत कार्रवाई भी की गई।
  • दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 1909 के 'प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्वेन्सी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेन्सी एक्ट 1920’ को रद्द करती है तथा कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और 'सेक्यूटाईज़ेशन एक्ट' समेत कई कानूनों में संशोधन करती है।
  • इस कोड ने देश में कर्ज़ दाताओं और कर्ज़ लेने वालों के संबंधों में महत्त्वपूर्ण बदलाव किया है। अब देखने में आ रहा है कि बड़ी संख्या में ऐसे कर्ज़दार, जिन्‍हें यह डर होता है कि वे रेड लाइन के करीब पहुँचने वाले हैं और जल्दी ही वे NCLT में होंगे, अब दिवालिया घोषित होने से परहेज कर रहे हैं। 
  • इस कोड के कार्यान्‍वयन की प्रक्रिया कुछ निश्चित शर्तों और नियमों द्वारा संचालित है। कुछ मामलों में अपीलों और उसके विरोध में अपीलों तथा मुकदमेबाज़ी के कारण कई बार यह प्रक्रिया बाधित हो जाती है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद यह बाधा दूर हो गई है।
  • वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण सीमित अवधि के निलंबन के बावज़ूद दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड दीर्घावधि में समुचित सुधार साबित होगा।

गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्ति समस्या के समाधान में सहायक

  • जब कोई देनदार बैंक को अपनी देनदारियाँ चुकाने में असमर्थ हो जाता है तो उसके द्वारा लिया गया कर्ज़ गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्ति (NPA) कहलाता है।
  • नियमों के तहत जब किसी कर्ज़ का मूलधन या ब्याज़ तय अवधि के 90 दिन के भीतर नहीं चुकाया जाता है तो उसे NPA में डाल दिया जाता है।
  • कई बार कर्ज़दार दिवालिया हो जाता है, ऐसे में बैंक उसकी परिसंपत्तियों को बेचकर अपने नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। 
  • IBC के अनुसार, किसी ऋणी के दिवालिया होने पर एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसकी परिसंपत्तियों को अधिकार में लिया जा सकता है।
  • IBC के हिसाब से, यदि 75 प्रतिशत कर्ज़दाता सहमत हों तो ऐसी किसी कंपनी पर 180 दिनों (90 दिन के अतिरिक्त रियायती काल के साथ) के भीतर कार्रवाई की जा सकती है, जो अपना कर्ज़ नहीं चुका पा रही।
  • IBC के लागू होने से ऋणों की वसूली में अनावश्यक देरी और उससे होने वाले नुकसानों से बचा जा सकेगा।
  • कर्ज़ न चुका पाने की स्थिति में कंपनी को अवसर दिया जाएगा कि वह एक निश्चित समयावधि में कर्ज़ चुकता कर दे या स्वयं को दिवालिया घोषित करे।

सूक्ष्म, लघु  और मध्यम उद्यम के लिये है लाभदायक

  • सूक्ष्म, लघु  और मध्यम क्षेत्र के उद्यम बड़े नियोक्ता के रूप में कृषि क्षेत्र के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं।  रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास के मामले में सूक्ष्म, लघु  और मध्यम उद्यम की महत्ता को समझते हुए सरकार ने इस कोड के अंतर्गत विशेष छूट प्रदान की हैं।
  • सूक्ष्म, लघु  और मध्यम उद्यम के ​​प्रवर्तकों को अपनी कंपनियों के लिये बोली लगाने की अनुमति तब तक दी जाती है जब तक वे विलफुल डिफॉल्टर्स नहीं होते हैं और किसी अन्य संबंधित अयोग्यता को प्रदर्शित नहीं करते हैं। इसने मौजूदा एक्ट की धारा 29 (ए)  में विसंगति को ठीक किया है जिसने संपत्ति को डिफॉल्ट करने वाले प्रमोटर्स को अपनी एसेट्स के लिये बोली लगाने से रोक दिया था।
  • दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड ने व्यापार करने के लिये अनुकूल माहौल का सृजन किया है, निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है और सूक्ष्म, लघु  और मध्यम उद्यम को सहायता प्रदान करते हुए उद्यमिता को प्रोत्साहित करने में सहायता प्रदान की है।
  • इस प्रकार के प्रोत्साहन निश्चित रूप से विदेशी और घरेलू निवेशकों दोनों में अधिक विश्वास पैदा करेंगी क्योंकि भारत अब एक आकर्षक निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित हो रहा है।

निर्णय जिनसे  प्रभावोत्पादकता में वृद्धि हुई

  • IBC खराब ऋणों को वसूलने के लिये बनाए गए पूर्व के दो अधिनियमों  पर बहुत बड़ा सुधार है- रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 (Sick Industrial Companies (Special Provision-SICA) और बैंकों और वित्तीय संस्थानों के ऋणों की वसूली संबंधी अधिनियम, 1993 (Recovery of Debts Due to Banks and Financial Institutions Act- RDDB)।
  • IBC से पूर्व रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस में औसतन 4-6 वर्ष लगते थे, IBC के अधिनियमित होने के बाद रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस औसतन 317 दिनों तक आ गए। 
  • IBC के बाद  ऋणों की वसूली भी पूर्व की अपेक्षा ( 22 प्रतिशत के सापेक्ष 43 प्रतिशत ) अधिक रही है। 
  • IBC के बाद यह देखा गया कि कई व्यापारिक संस्थाएँ दिवालिया होने की घोषणा करने से पहले भुगतान कर रही हैं। अधिनियम की सफलता इस तथ्य में निहित है कि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को भेजे जाने से पहले ही कई मामलों को सुलझा लिया गया है।

आगे की राह

  • देश के विभिन्न हिस्सों में अधिक न्यायाधिकरण स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि IBC से सम्बंधित मुद्दों का शीघ्र निस्तारण किया जा सके।
  • IBC को इस बात पर विचार करना चाहिये कि मौजूदा प्रबंधन को ज्ञान, सूचना और विशेषज्ञता आधारित  कंपनी को चलाने की अनुमति देने के अलग-अलग फायदे हैं।
  • भारत NPA की वसूली से अधिक चिंतित है, इस प्रकार बैंकिंग प्रणाली को बचाना पहली प्राथमिकता है।

प्रश्न- दिवालिया एवं शोधन अक्षमता कोड  की आवश्यकता को परिभाषित करते हुए बताए कि यह सूक्ष्म, लघु  और मध्यम उद्यम के विकास हेतु किस प्रकार कारगर साबित हो सकता है?