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भारत और जलवायु कूटनीति | 19 Dec 2019 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जलवायु कूटनीति और भारत के संदर्भ में उसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हिमालय एवं एंडीज़ पर्वत शृंखलाओ में पिघलते ग्लेशियर, कैरेबियन एवं ओशिनियाई भूभागों में बढ़ते तूफान और अफ्रीका एवं मध्य पूर्व में बदलता मौसम पैटर्न जलवायु परिवर्तन जनित चुनौतियों की एक भयावह तस्वीर प्रस्तुत करती हैं। वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन उन महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है जिसके प्रभावों को प्रत्यक्ष रूप से महसूस किया जा रहा है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं के बीच आम सहमति है कि जलवायु परिवर्तन न केवल अंतर्राष्ट्रीय शांति को प्रभावित करता है बल्कि यह राष्ट्रों की सुरक्षा के लिये भी एक बड़ा खतरा है। जानकारों का मानना है कि वैश्विक समुदाय को इन चुनौतियों से निपटने के लिये एक व्यापक गठबंधन की आवश्यकता है, क्योंकि यदि एक देश वैश्विक मानकों का पालन करते हुए अपने कार्बन उत्सर्जन में कमी करता है और अन्य देश इन मानकों को नज़रअंदाज़ करते हैं तो मानकों का पालन करने वाले देशों को इसका कोई लाभ नहीं होगा और उसे अथक प्रयासों के बावजूद भी जलवायु परिवर्तन के परिणामों का सामना करना होगा।

जलवायु कूटनीति

जलवायु कूटनीति और भारत

भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था, बाज़ार और विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। जानकारों का ऐसा मानना है कि भारत जलवायु कूटनीति के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

पर्यावरणीय उपनिवेशवाद

उपनिवेशवाद का सामान्य अर्थ उस स्थिति से होता है जिसमें कोई राष्ट्र अन्य राष्ट्रों तक अपनी राजनीतिक शक्ति का विस्तार वहाँ के संसाधनों का अपने हित में शोषण करता है। पर्यावरणीय उपनिवेशवाद की अवधारणा का विकास भी कुछ इसी आधार पर हुआ है दरअसल कई दशकों से अमेरिका जैसे विकसित देश वैश्विक तापमान में वृद्धि के लिये विकासशील देशों जैसे- भारत और चीन को दोषी ठहराते रहे हैं। फलस्वरूप विकासशील देशों द्वारा विकसित देशों के पर्यावरणीय उपनिवेशवाद के दबाव को कम करने के लिये ‘सामान किंतु विभेदित दायित्वों’ के सिद्धांत को अपनाया गया ताकि विकसित देशों के शोषण के कारण विकासशील देशों को अपनी विकासात्मक ज़रूरतों की बलि न चढ़ानी पड़े। ज्ञातव्य है कि यह सिद्धांत जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में अलग-अलग देशों की विभिन्न क्षमताओं और ज़िम्मेदारियों को स्वीकार करता है।

बेहतर जलवायु कूटनीति की ओर

निष्कर्ष

आवश्यक है कि भारत जलवायु परिवर्तन को अपनी विदेश नीति में प्राथमिकता दे और इसे केवल पर्यावरणीय या आर्थिक दृष्टि से न देखकर इसके रणनीतिक महत्त्व को भी पहचाने। भारत अपनी ‘प्रथम पड़ोस’ (Neighbourhood First) की नीति के माध्यम पड़ोसी देशों की ओर ध्यान देकर जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है। जलवायु परिवर्तन को अपनी विदेश नीति का अहम हिस्सा बनाना और जलवायु कूटनीति की ओर अगसर होना भारत को एक संवेदनशील और ज़िम्मेदार वैश्विक नेता के रूप में पेश कर सकता है।

प्रश्न: भारत के संदर्भ में जलवायु कूटनीति की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।