अब्राहम एकॉर्ड के तीन वर्ष | 23 Sep 2023

यह एडिटोरियल 21/09/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Three years of the Abraham Accords’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय संदर्भ में अब्राहम एकॉर्ड की प्रासंगिकता पर विशेष बल देते हुए उससे जुड़ी उपलब्धियों एवं बाधाओं के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

I2U2, अब्राहम एकॉर्ड, पश्चिम एशियाई क्वाड, प्रोस्पेरिटी ग्रीन एंड ब्लू एग्रीमेंट, यमन युद्ध। 

मेन्स के लिये:

भारत से संबंधित और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले  द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह एवं समझौते, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, भारतीय प्रवासी। 

तीन वर्ष पूर्व सितंबर, 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और इज़राइल के बीच अब्राहम एकॉर्ड (Abraham Accord) की मध्यस्थता की थी, जिसमें  अरब के खाड़ी देशों और इज़राइल के बीच संबंधों को सामान्य बनाने का वादा किया गया था। 

अब्राहम एकॉर्ड ने न केवल मध्य पूर्व में अधिक राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा एकीकरण की शुरुआत की, बल्कि भारत के लिये भी बेहतर अवसरों की संभावना उत्पन्न की है। 

‘अब्राहम एकॉर्ड’ (Abraham Accords): 

  • परिचय: 
    • अब्राहम एकॉर्ड इज़राइल और विभिन्न अरब देशों के बीच वर्ष 2020 में हस्ताक्षरित समझौतों की एक शृंखला है, जो मध्य-पूर्व में राजनयिक संबंधों में एक ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक है। 
    • यहूदियों और अरबों के कथित सामान्य पूर्वज ‘अब्राहम’ (बाइबिल का अब्राहम या इब्राहीम) और भाईचारे की अभिव्यक्ति के संदर्भ में इन समझौतों को ‘अब्राहम एकॉर्ड’ का नाम दिया गया। 
  • अब्राहम एकॉर्ड से संलग्न प्राथमिक देश: 
    • इज़राइल: समझौते के एक प्रमुख पक्षकार के रूप में इज़राइल ने भागीदार अरब देशों के साथ राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाने पर सहमति व्यक्त की, जो कि विभिन्न अरब देशों के साथ उसके ऐतिहासिक रूप से शत्रुतापूर्ण संबंधों से एक महत्त्वपूर्ण प्रस्थान को चिह्नित करता है। 
    • संयुक्त अरब अमीरात (UAE): संयुक्त अरब अमीरात पहला अरब देश था जिसने औपचारिक रूप से अब्राहम एकॉर्ड के तहत इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की घोषणा की थी। इस ऐतिहासिक समझौते में पूर्ण राजनयिक संबंधों की स्थापना के साथ-साथ आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी शामिल है। 
    • बहरीन: संयुक्त अरब अमीरात का अनुसरण करते हुए बहरीन ने भी इज़राइल के साथ इसी तरह के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। ‘बहरीन-इज़राइल शांति समझौते’ में राजनयिक संबंध और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग जैसे विषय शामिल हैं। 
    • सूडान: सूडान भी इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने पर सहमति जताते हुए अब्राहम एकॉर्ड में शामिल हुआ है। इसने सूडान की विदेश नीति में एक बड़े बदलाव को चिह्नित किया और इसके प्रभाव में सूडान को आतंकवाद के राज्य प्रायोजकों की अमेरिकी सूची से बाहर कर दिया गया। 
    • मोरक्को: एक अन्य अरब राष्ट्र मोरक्को भी इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की प्रतिबद्धता के साथ समझौते में शामिल हुआ। इस समझौते में इज़राइल के साथ मोरक्को की भागीदारी के बदले संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पश्चिमी सहारा पर मोरक्को की संप्रभुता को मान्यता प्रदान की गई। 

एकॉर्ड का महत्त्व:  

  • यह समझौता दिखाता है कि किस प्रकार अरब देश धीरे-धीरे स्वयं को फ़िलिस्तीन के सवाल से पृथक कर रहे हैं। 
  • समझौते से इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित होंगे जिसका पूरे क्षेत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 
  • इस सौदे से संयुक्त अरब अमीरात को अमेरिका में व्यापक साख प्राप्त हुई है, जहाँ यमन युद्ध में भागीदारी के बाद अमेरिका में उसकी छवि खराब हो गई थी। 
  • दक्षिण एशिया में, यह पाकिस्तान के लिये एक दुविधा उत्पन्न करता है कि वह भी संयुक्त अरब अमीरात का अनुसरण करे (जहाँ फिर इसे फिलिस्तीन के ‘इस्लामी कॉज’ को छोड़ने के रूप में देखा जाएगा) या उसका अनुसरण न करे (जहाँ फिर एक अन्य प्रमुख इस्लामी देश संयुक्त अरब अमीरात से उसके संबंध बिगड़ सकते हैं जबकि कश्मीर मामले में साथ न देने के लिये पहले से ही सऊदी अरब के साथ उनके संबंधों में एक गतिरोध उत्पन्न हुआ है)। 

अब्राहम एकॉर्ड के बाद हुई प्रमुख प्रगति:  

  • जून 2021 में अबू धाबी में इज़राइली दूतावास खोला गया जबकि UAE ने भी तेल अवीव में अपना दूतावास खोला है। 
  • UAE और इज़राइल के बीच व्यापार 900 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। अप्रैल 2022 में सरकारी खरीद और बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) से संबंधित मुक्त व्यापार क्षेत्र के लिये भी एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए। 
  • इज़राइल, UAE और जॉर्डन के बीच त्रिपक्षीय व्यापार जल समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इसके तहत, इज़राइल या तो एक नया अलवणीकरण संयंत्र स्थापित करेगा या सदस्य देशों को जल की आपूर्ति करेगा। 
  • पर्यटन के संबंध में, इज़राइल और UAE के बीच सीधी उड़ान सेवाओं की स्थापना हुई है और  समझौते के बाद पहले माह में ही UAE ने 67,000 से अधिक इज़राइली पर्यटकों की मेजबानी की। 
  • अपने देश की आर्थिक समस्याओं से असंतुष्ट कई इज़राइलियों के लिये संयुक्त अरब अमीरात रोज़गार के एक नए गंतव्य के रूप में भी उभरा है। 
  • इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और जॉर्डन के बीच संपन्न हुए ‘प्रॉस्पेरिटी ग्रीन एंड ब्लू एग्रीमेंट’ (Prosperity Green & Blue agreement) के तहत तय किया गया कि एक सोलर फ़ील्ड की स्थापना के साथ इज़राइल को 600 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जाएगी। 

अब्राहम एकॉर्ड की कमियाँ:  

  • अरबी आयोजकों के प्रारंभिक लक्ष्य के बावजूद, इज़राइल और उसके अरब भागीदारों के बीच का सहयोग इज़राइल-फिलिस्तीन समीकरण में कोई ठोस सुधार लाने में विफल रहा है। 
  • मध्य-पूर्व के कई प्रमुख हितधारक अभी भी समझौते से बाहर हैं, जैसे कि सऊदी अरब ने पहले से मौजूद ‘अरब शांति पहल’ (Arab Peace Initiative) के प्रति अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता बनाए रखी है। 
  • ओमान और क़तर ने इस ढाँचे के भीतर अपने संबंधों को औपचारिक रूप देने से इनकार कर दिया है। 

अब्राहम एकॉर्ड भारतीय हितों से कैसे संबद्ध हैं? 

  • राजनयिक गठबंधन: 
    • अब्राहम एकॉर्ड एक ऐसे माहौल का निर्माण करते हैं जहाँ भारत अरब देशों के साथ-साथ इज़राइल के साथ एकसमान स्तर पर अपने संबंधों को सुदृढ़ कर सकता है। 
    • अब्राहम एकॉर्ड के बाद ही I2U2 जैसे गठबंधन का निर्माण संभव हो सका। इसे अनौपचारिक रूप से ‘पश्चिम एशियाई क्वाड’ (West Asian Quad) और ‘इंडो-अब्राहमिक कंस्ट्रक्ट’ (Indo-Abrahamic construct) के रूप में भी वर्णित किया गया है। 
  • निवेश के अवसर: 
    • यह समूह छह पारस्परिक रूप से चिह्नित क्षेत्रों में संयुक्त निवेश को प्रोत्साहित करता है, जिसमें खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, अंतरिक्ष, जल और ऊर्जा शामिल हैं। 
    • हाल ही में दुबई में ‘इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ इंडो-इज़राइल चैंबर ऑफ कॉमर्स’ (IFIICC) की स्थापना की गई है। 
  • प्रौद्योगिकीय सहयोग: 
    • भारत की प्रौद्योगिकीय क्षमताएँ, UAE से प्राप्त वित्त और इजराइल की नवोन्मेष की क्षमताएँ तीनों देशों के बीच सहयोग को आगे बढ़ा सकती हैं। 
    • इन उद्यमों में से पहले उद्यम के तहत रोबोटिक सोलर पैनल के लिये एक अमीराती परियोजना को एक इज़राइली कंपनी ‘एकोपिया’ (Eccopia) द्वारा समर्थन दिया गया है, जिसका विनिर्माण आधार भारत में अवस्थित है। 
  • प्रवासी संबंध: 
    • जीवंत भारतीय प्रवासियों को अब संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के साथ-साथ इज़राइल और बहरीन के बीच सीधी उड़ानों की सुविधा प्राप्त हुई है। 
    • भारतीय छात्रों को यात्रा की आसानी प्राप्त हो रही है; वे हमारे विश्वविद्यालयों तक बेहतर पहुँच और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन कार्यक्रमों का पता लगाने के अवसर प्राप्त कर रहे हैं। 

अब्राहम एकॉर्ड की राह की चुनौतियाँ:  

  • फिलिस्तीन का मुद्दा: 
    • फिलिस्तीन के भविष्य से संबंधित चुनौतियाँ और ईरान एवं कतर की ओर से इन समझौतों का विरोध एक प्रमुख बाधा है। 86% फिलिस्तीनियों का मानना है कि संयुक्त अरब अमीरात के साथ सामान्यीकरण समझौता केवल इज़राइल के हितों की पूर्ति करता है, उनके अपने हितों की नहीं। 
  • क्षेत्रीय समर्थन का अभाव: 
    • बहरीन—एक छोटा-सा देश जो सुरक्षा चाहता है और सऊदी अरब से राजनीतिक संकेत ग्रहण करता है, इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की उम्मीद करने वालों के लिये चिंता का विषय बन गया है। 
  • सांस्कृतिक संघर्ष: 
    • भूभाग में शिया-सुन्नी दरार व्यापक और हिंसक बन सकती है। सऊदी अरब (सुन्नी) और ईरान (शिया) के बीच शत्रुता का लंबा इतिहास रहा है।  
  • बहुपक्षीय सत्ता संघर्ष: 
    • मध्य-पूर्व में अमेरिका एक प्रमुख शक्ति की हैसियत प्राप्त कर सकता है, लेकिन रूस ने बहुत कम धन खर्च करके भी अपने लिये एक जगह बना रखी है। हाल के वर्षों में चीन ने भी इस भू-भाग में एक बड़ी भूमिका निभाने की इच्छा व्यक्त की है और वह संयुक्त अरब अमीरात एवं इज़राइल दोनों से निकटता रखता है, जबकि सऊदी अरब के साथ भी तेज़ी से निकटता बढ़ा रहा है। 
  • वित्तपोषण संबंधी बाधाएँ: 
    • अब्राहम एकॉर्ड के एक अंग के रूप में ‘अब्राहम फंड’ स्थापित किया गया था और इसने मध्य-पूर्व में विकास पहलों के लिये लगभग 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रावधान किया था। अमेरिका में प्रशासन के बदलाव ने इस समझौते की क्षमता को कमज़ोर कर दिया है। 

आगे की राह:  

  • खुला संवाद: 
    • इज़राइल और अन्य भागीदार देशों सहित सभी हस्ताक्षरकर्ता पक्षकारों के बीच खुले एवं समावेशी संवाद के माध्यम से फिलिस्तीन के मुद्दे को संबोधित किया जाना चाहिये। 
    • मध्य-पूर्व में, विशेष रूप से यमन, सीरिया और लीबिया में क्षेत्रीय संघर्षों के लिये राजनयिक समाधान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। 
  • अतिवाद से मुक़ाबला: 
    • अलगाववादी आंदोलनों के लिये भूमि एवं संसाधनों का उपयोग करने और पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचने की आवश्यकता है। 
    • अतिवादी विचारधाराओं का मुक़ाबला करने के लिये खुफिया जानकारी की साझेदारी और सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। 
  • बहुपक्षीय कूटनीति: 
    • संयुक्त राष्ट्र, अरब लीग और अन्य समूहों के माध्यम से बहुपक्षीय कूटनीति में संलग्न रहना जारी रखा जाए। 
  • क्षेत्रीय संबंधों को संतुलित करना: 
    • शिया और सुन्नी (ईरान और अरब) के बीच संतुलन बनाये रखना स्थायी शांति की कुंजी है। 
  • क्षेत्रीय सहयोग: 
    • आर्थिक विकास, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर सहयोगात्मक प्रयासों को प्रोत्साहित किया जाए। 

निष्कर्ष: 

यद्यपि यह स्पष्ट है कि अब्राहम एकॉर्ड के साथ घनिष्ठ इज़राइल-अरब संबंधों के लिये एक अच्छी शुरुआत की गई है, इनकी सफलता और अन्य देशों में इनका विस्तार उन विभिन्न कारकों—जैसे अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता और पश्चिम एशिया की संरेखण एवं पुनर्संरेखण की राजनीति—पर निर्भर करेगा जो वर्तमान में भू-राजनीतिक वातावरण को प्रभावित कर रहे हैं। 

अभ्यास प्रश्न: अब्राहम एकॉर्ड की सफलता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। भारत के लिये अब्राहम एकॉर्ड के आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'गोलन हाइट्स' के नाम में जाना जाने वाला क्षेत्र निम्नलिखित में से किससे संबंधित घटनाओं के संदर्भ में यदा-कदा समाचारों में दिखाई देता है? (2015)

(a) मध्य एशिया
(b) मध्य-पूर्व
(c) दक्षिण-पूर्व एशिया
(d) मध्य अफ्रीका

उत्तर: (b)  


मेन्स:

प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। ( 2018)