असम में हत्या और एनआरसी (NRC) | 05 Nov 2018

संदर्भ

हाल ही में असम के तिनसुकिया ज़िले में  हुए हमले में उग्रवादियों ने बंगाली समुदाय के पाँच युवकों की हत्या कर दी। इस घटना में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA इंडिपेंडेंट) का हाथ माना जा रहा था, लेकिन संगठन ने इस घटना में अपनी भूमिका होने से इनकार कर दिया था। इसी दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने हमले की निंदा करते हुए सवाल उठाया था कि क्या यह एनआरसी की वज़ह से हुआ है? इस प्रकार की हत्याएँ असमिया और बंगाली समुदायों के बीच दूरियों को बढ़ाती हैं क्योंकि विवाद के केंद्र में उन लोगों माना जा रहा है जो अंततः अद्यतन एनआरसी में शामिल नहीं हुए हैं।

एनआरसी क्या है?

  • एनआरसी से अभिप्राय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर से है अर्थात् एनआरसी वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है।
  • इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे।
  • वर्तमान में असम में एनआरसी को अपडेट किया जा रहा है।
  • असम में एनआरसी अपडेट करने के कार्य को नियंत्रित करने वाले प्रावधान नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम, 2003 में दिये गए हैं। एनआरसी अद्यतन के लिये प्रारूप को संयुक्त रूप से असम सरकार और भारत सरकार द्वारा विकसित किया गया है।
  • असम में घुसपैठियों के ख़िलाफ़ वर्ष 1979 से छह साल तक चले लंबे आंदोलन के बाद 15 अगस्त, 1985 को केंद्र की राजीव गांधी सरकार और आंदोलनकारी नेताओं के बीच असम समझौता हुआ था। इसी समझौते के आधार पर सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में एनआरसी को अपडेट करने का काम चल रहा है।
  • असम समझौते के मुताबिक 25 मार्च, 1971 के बाद असम में आए सभी बांग्लादेशी नागरिकों को यहाँ से जाना होगा, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान।

असम समझौता

  • 15 अगस्त, 1985 को AASU और दूसरे संगठनों तथा भारत सरकार के बीच एक समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है।
  • इस समझौते के अनुसार, 25 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले हिंदू- मुसलमानों की पहचान की जानी थी तथा उन्हें राज्य से बाहर किया जाना था।
  • इस समझौते के तहत 1961 से 1971 के बीच असम आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।
  • इसके अंतर्गत असम के आर्थिक विकास के लिये विशेष पैकेज भी दिया गया। साथ ही यह फैसला भी किया गया कि असमिया भाषी लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषायी पहचान की सुरक्षा के लिये विशेष कानून और प्रशासनिक उपाय किये जाएंगे।
  • असम समझौते के आधार पर मतदाता सूची में भी संशोधन किया गया।

किन्हें अवैध करार दिया गया?

  • निम्नलिखित लोगों को अवैध करार दिया गया है-
  • जो एनआरसी में वैध दस्तावेज़ संबंधी कार्रवाई पूरी नहीं कर सके।
  • जिनके पास 25 मार्च, 1971 से पहले की नागरिकता के कानूनी दस्तावेज़ नहीं हैं।
  • चोरी-छिपे बांग्लादेश से आए लोग भी भारतीय दस्तावेज़ पेश नहीं कर पाए।
  • संदिग्ध मतदाताओं, उनके आश्रितों, विदेशी न्यायाधिकरण में गए लोगों और उनके बच्चों को भी इसमें शामिल नहीं किया गया है।

नागरिकता की समाप्ति से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ

  • एनआरसी की सूची जारी होने के बाद लोग स्टेटलेस हो गए हैं, अर्थात् वे अब किसी भी देश के नागरिक नहीं रहे।
  • ऐसी स्थिति में राज्य में हिंसा का खतरा बना हुआ है।जो लोग दशकों से असम में रह रहे थे, भारतीय नागरिकता समाप्त होने के बाद वे न तो पहले की तरह वोट दे सकेंगे, न इन्हें किसी कल्याणकारी योजना का लाभ मिलेगा और अपनी ही संपत्ति पर भी इनका कोई अधिकार नहीं रहेगा।
  • जिन लोगों के पास स्वयं की संपत्ति है वे दूसरे लोगों का निशाना बनेंगे।

निष्कर्ष

चार मिलियन लोगों को जुलाई में प्रकाशित अंतिम मसौदे में शामिल नहीं किया गया है और एनआरसी में शामिल लोगों की अंतिम संख्या केवल तब जानी जा सकती है जब दावों, आपत्तियों और सत्यापन की विस्तृत प्रक्रिया पूर्ण हो जाए। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी स्टेटलेसनेस को ख़त्म करना चाहती है, लेकिन दुनिया में क़रीब एक करोड़ लोग ऐसे हैं जिनका कोई देश नहीं। ऐसे में भारत के लिये हालिया स्थिति असहज करने वाली है। नागरिकता के इस मामले ने असम ही नहीं बल्कि पूरे भारत में बहस छेड़ दी है। असम की राजनीति में यह मुद्दा कई वर्षों से चला आ रहा है। अब आवश्यकता है इस मामले को गंभीरता के साथ सुलझाने की और ध्रुवीकरण की राजनीति से इस मुद्दे को दूर रखने की।