एशिया-यूरोप सहयोग की प्रासंगिकता | 30 Oct 2018

संदर्भ

12वीं एशिया-यूरोप मीटिंग (ASEM) का शिखर सम्मेलन बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में 18-19 अक्तूबर को संपन्न हुआ जिसमें 51 देशों के साथ ही यूरोपीय संघ और एशियाई संस्थान भी शामिल हुए। भारत के उपराष्ट्रपति ने भारत की ओर से प्रतिनिधित्व किया। इस शिखर सम्मेलन का शीर्षक ‘वैश्विक चुनौतियों के लिये वैश्विक भागीदार’ (Global Parteners for Global Challanges) था। उल्लेखनीय है कि ASEM एशिया-यूरोप वार्ता के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण मंच है। दरअसल इस सम्मलेन द्वारा इस बात पर विचार-विमर्श किया गया कि बहुपक्षीय वार्ता के माध्यम से बहुपक्षवाद और वैश्विक साझेदारी से संबंधित मुद्दों को सुरक्षित रखने और संरक्षित करने के लिये एशिया और यूरोप कैसे मिलकर काम कर सकते हैं।

एशिया-यूरोप बैठक (ASEM) क्या है?

  • ASEM एशिया और यूरोप के बीच बातचीत और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक अंतर सरकारी प्रक्रिया है।
  • ASEM की स्थापना 1996 में बैंकाक, थाईलैंड में इसके पहले शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी।
  • प्रारंभ में इसमें 15 यूरोपीय संघ के सदस्य देश और 7 आसियान सदस्य देशों के साथ चीन, जापान, कोरिया और यूरोपियन कमीशन शामिल था।
  • वर्तमान में इसमें 53 साझेदार हैं: 30 यूरोपीय और 21 एशियाई देशों के अलावा यूरोपीय संघ और आसियान सचिवालय। ASEM शिखर सम्मेलन द्विवार्षिक रूप से आयोजित किया जाता है।
  • ASEM वैश्विक आबादी का 62%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 57% और विश्व व्यापार के 60% हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
  • ASEM आपसी सम्मान और समान साझेदारी की भावना के साथ आम हित के राजनीतिक, आर्थिक, वित्तीय, सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक मुद्दों को संबोधित करता है।

सम्मेलन के संभावित लाभ

यूरोप और एशिया के बीच सतत् कनेक्टिविटी

  • सम्मेलन में यूरोपीय संघ और एशिया के बीच अधिक टिकाऊ कनेक्टिविटी में निवेश के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया।
  • यूरोपीय संघ ने सितंबर में यूरोप और एशिया को जोड़ने हेतु एक नई रणनीति के तहत यूरोपीय आयोग के गठन के प्रस्ताव को अपनाया है।
  • कनेक्टिविटी दृष्टिकोण के मूल में वित्तीय, पर्यावरण और सामाजिक स्थिरता के साथ, ईयू का उद्देश्य डिजिटल, परिवहन, ऊर्जा और मानव आयामों में टिकाऊ कनेक्टिविटी नेटवर्क को क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित करना है।
  • साथ ही, द्विपक्षीय साझेदारी को मज़बूत करना है। यूरो-एशियाई कनेक्टिविटी को बढ़ाने के साथ-साथ संबंधों में सुधार के उद्देश्य से यूरोपियन कमीशन ने इस सप्ताह ASEM सस्टेनेबल कनेक्टिविटी पोर्टल लॉन्च किया है, जो नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, व्यवसायियों और अन्य हितधारकों के लिये दो महाद्वीपों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संबंधों पर आँकड़े जुटाने का काम करता है।

यूरोपीय संघ-एशिया द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ बनाना

  • ASEM शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ ने क्रमशः सिंगापुर और वियतनाम के साथ अपने संबंधों को और अधिक मज़बूत बनाने और उन्हें विस्तार देने के लिये कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये। इसमें यूरोपीय संघ-सिंगापुर मुक्त व्यापार समझौता प्रमुख है।
  • साझेदारी और सहयोग पर फ्रेमवर्क समझौता तथा ईयू-सिंगापुर निवेश संरक्षण समझौता पर भी हस्ताक्षर किये गए।
  • ये समझौते यूरोपीय संघ और सिंगापुर के बीच व्यापक और पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करते हैं जो यूरोपीय उत्पादकों, किसानों, सेवा प्रदाताओं और निवेश के साथ-साथ राजनीतिक तथा क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत बनाने के लिये नया अवसर प्रदान करता है।
  • यूरोपीय संघ वियतनाम के साथ अपने संबंधों को बढ़ा रहा है। इस सप्ताह की शुरुआत में यूरोपियन कमीशन ने ईयू-वियतनाम व्यापार और निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर कर उसे अपनाया है।
  • व्यापार समझौता दोनों पक्षों के बीच कारोबार किये जाने वाली वस्तुओं पर लगभग सभी तरह के टैरिफ को खत्म कर देगा।
  • इस समझौते में स्थायी अधिकारों के लिये एक मज़बूत, कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रतिबद्धता भी शामिल है, जिसमें मानवाधिकार, श्रम अधिकार, पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई शामिल है।
  • यूरोपीय संघ और वियतनाम ने वन कानून प्रवर्तन, शासन और व्यापार स्वैच्छिक साझेदारी समझौते पर भी ASEM आपसी सम्मान और समान साझेदारी की भावना में जो कि आम हित के राजनीतिक, आर्थिक, वित्तीय, सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक मुद्दों को संबोधित करता है, पर हस्ताक्षर किये।

अमेरिकी नीतियों के प्रति सुरक्षा तंत्र के रूप में

  • एशिया और यूरोप दोनों अमेरिका द्वारा उत्त्पन्न की गई अनिश्चितताओं के प्रति सावधान हैं।
  • अमेरिका की संरक्षणवादी व्यापार नीतियों में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन के पेरिस समझौते से वापसी तथा बहुपक्षीय वार्ता के लिये ट्रम्प की उपेक्षा दोनों महाद्वीपों के देशों के लिये महत्त्वपूर्ण आम चुनौतियाँ हैं।
  • उल्लेखनीय है कि चीन ट्रम्प प्रशासन के व्यापार शुल्क का मुख्य लक्ष्य है और यूरोपीय संघ, जापान तथा भारत भी इससे परे नहीं हैं।
  • भारत के लिये चीन और अमेरिका दोनों के साथ संबंध एक कसौटी चल रहे हैं। चीन की बेल्ट और रोड पहल और अमेरिका की टैरिफ नीति तथा एच -1 बी वीज़ा मुद्दा भारत के लिये चिंता का प्रमुख क्षेत्र हैं।
  • साथ ही ईरान, भारत, चीन और यूरोपीय संघ के देश आर्थिक मुद्दों के साथ ही महत्त्वपूर्ण सामरिक मुद्दों पर भी काफी हद तक एक ही धरातल पर हैं।
  • अतः उपर्युक्त परिस्थतियों को देखते हुए ASEM एक सुरक्षा तंत्र के रूप में अमेंरीकी नीतियों से एशिया और यूरोप दोनों महाद्वीपों के देशों को संरक्षण प्रदान कर सकता है।

भारत और ASEM

  • वर्ष 2006 में भारत ASEM के विस्तार के दौरान ASEM में शामिल हुआ। उल्लेखनीय है कि बीजिंग में वर्ष 2008 में आयोजित 7वें शिखर सम्मेलन में भारत की पहली शिखर सम्मेलन स्तर की भागीदारी थी।
  • भारत ने वर्ष 2013 में दिल्ली-एनसीआर में 11वें ASEM विदेश मंत्रियों की बैठक की मेज़बानी की।
  • ASEM भारत को समान विचारधारा वाले देशों के साथ काम करने हेतु मंच प्रदान करता है।
  • भारत ASEM में एक सक्रिय भागीदार है तथा इस समूह में शामिल होने के बाद से भारत हरित ऊर्जा, फार्मा सेक्टर, आपदा प्रबंधन, टिकाऊ विकास और दो महाद्वीपों की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने जैसे विभिन्न क्षेत्रों में ASEM के साथ काम कर रहा है।
  • एशिया-यूरोप फाउंडेशन (ASEF) ASEM की स्थायी रूप से स्थापित संस्था है।
  • ASEF द्वारा किये जा रहे सहयोगी पहलों का समर्थन करने के लिये वर्ष 2007 में भारत ने ASEM के सदस्य बनने के बाद नियमित रूप से ASEF में योगदान दिया है।
  • 12वें शिखर सम्मेलन के दौरान भारत ने आतंकवाद के प्रति चिंता बढ़ाने के लिये मंच का उपयोग किया और यूनाइटेड नेशंस कम्प्रीहेंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म (CCIT) को अपनाने की दिशा में काम करने के लिये आग्रह किया।
  • भारत ने जलवायु परिवर्तन पर सहयोग के लिये भी आह्वान किया तथा एशिया और यूरोप सहयोग के उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में 'अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन' को पेश किया।

आगे की राह

  • विश्व राजनीति और विश्व अर्थव्यवस्था में चल रहे  बदलाव और उदार अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में आवेग ASEM को और अधिक प्रासंगिक बनाते हैं।
  • एशियाई और यूरोपीय देशों को कई मुद्दों पर करीब लाने में ASEM महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अतः ASEM की अस्पष्टताओं को हल किया जाना चाहिये और इसकी पहचान को स्पष्ट अंतःक्रियात्मक सहयोग के आदर्श उद्देश्यों के अनुरूप लाने के लिये काम किया जाना चाहिये तथा ASEM को दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य से देखा जाना चाहिये।
  • उल्लेखनीय है ऐसे समय में यह मंच और महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब अमेरिका वैश्वीकरण के लाभ को बाधित कर रहा है।
  • हालाँकि, बहुपक्षवाद और मुक्त व्यापार को पुनः स्थापित करने के लिये एशिया और यूरोप की मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी।