वर्ष 2067 में वैश्विक अर्थव्यवस्था | 26 Jun 2017

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि आज संपूर्ण विश्व आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहा है| अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि यह संकट निकट भविष्य में भी जारी रहेगा| वर्ष 2008 के आर्थिक संकट को आधुनिक युग के सबसे बड़े संकटों में से एक माना जाता है| वास्तव में, इसके परिणामस्वरूप सभी मध्यम और उच्च आय-वर्ग वाले देशों के पारिश्रमिकों में अगले 40 वर्षों तक गिरावट दर्ज की जाएगी| परन्तु क्या हम यह जानते हैं कि आने वाले 50 वर्षों में क्या होगा?

महत्वपूर्ण तथ्य

  • ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले 50 वर्षों में वैश्विक अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है; इसकी वजह यह है कि अन्य घटकों की वृद्धि के साथ आय और उपभोग के स्तर में प्रति 4 वर्षों में दोगुनी वृद्धि होगी|
  • विदित हो कि वर्तमान में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मात्र 3% की वार्षिक दर से वृद्धि हो रही है| हालाँकि यह पहली बार नहीं है कि वैश्विक आर्थिक संवृद्धि दर पूर्व के अकल्पनीय स्तरों पर पहुँच गई है|
  • दरअसल, 1500 से 1820 तक विश्व की वार्षिक संवृद्धि दर मात्र 0.32% थी जबकि इस दौरान विश्व के अधिकांश भागों में वृद्धि की दर नगण्य थी| चीन में इसी समयावधि के दौरान प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 600 डॉलर थी| इस समयावधि में किसी भी व्यक्ति के लिये आज की निराशाजनक 3% संवृद्धि दर भी अकल्पनीय थी| औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप विश्व की औसत वर्षिक संवृद्धि दर वर्ष 1820(0.32%) की तुलना में वर्ष 2003 में 2.25% हो गई थी|

वर्तमान परिदृश्य

  • आज डिजिटल क्रांति के युग ने अर्थव्यवस्थाओं को तेजी से आगे बढ़ने में सहायता की है| वास्तव में, हम नाटकीय तकनीकी सफलताओं  (dramatic technological breakthroughs) से भलीभाँति परिचित हैं जिसमें डिजिटल तकनीक का आधुनिक रूप सम्पूर्ण विश्व को एक साथ जोड़ रहा है| डिजिटल तकनीक के परिणामस्वरूप, श्रमिक न केवल अधिक उत्पादन कर रहे हैं बल्कि वे रोज़गार में भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं| उदाहरण के लिये, विकासशील देशों के कई व्यक्ति आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कार्य करने में सक्षम हैं| इसके अतिरिक्त आज अत्यधिक श्रमिक श्रम बाज़ारों में भागीदारी कर रहे हैं|
  • विदित हो कि इस प्रवृत्ति के सभी आर्थिक परिणाम सकारात्मक नहीं होंगे| उदाहरण के लिये, अमेरिका के औसत वास्तविक पारिश्रमिक(मुद्रास्फीति से समायोजित) में वांछित वृद्धि नहीं हो रही है| यहाँ तक कि अमेरिका के रोज़गारों में भी 4.3% की गिरावट दर्ज की गई है|
  • रोज़गार की चाह में सस्ते श्रमिकों को विदेशों में लाकर और आधुनिक मशीनों की संख्या में वृद्धि कर प्रौद्योगिकी ने इस अधिकतम मजदूरी की सीमा को प्रबल कर दिया है| इस सीमा को तोड़ने का मुख्य उद्देश्य उन कार्यों के स्वरूप में परिवर्तन करना है जिनमें अधिकतर लोग संलग्न हैं| शिक्षा और प्रशिक्षण में सुधार कर तथा कुशल पुनर्वितरण कर रचनात्मक कार्यों(कला से वैज्ञानिक अनुसंधान तक) को बढ़ावा दिया जा सकता है जो भविष्य में मशीनों के द्वारा भी संभव नहीं होंगे|
  • वास्तव में जैसे ही रचनात्मक क्षेत्र में वृद्धि होगी तो स्वयं ही आर्थिक संवृद्धि आएगी| इस प्रकार के परिणाम प्राप्त हो तो सकते हैं परन्तु वे निश्चित नहीं है| इससे यह सुनिश्चित होता है कि आर्थिक संवृद्धि  के लिये वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं और समाजों में मूल परिवर्तनों की आवश्यकता होगी|

क्या किया जाना चाहिये?

  • अधिक कुशल उद्यमियों का सृजन करने के उपयोगी श्रमिकों के संक्रमण का प्रयास करना चाहिये| इसके लिये शिक्षा व्यवस्था में मूल परिवर्तनों(वयस्कों को पुनः प्रशिक्षित करना) की आवश्यकता होगी| इसके लिये ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों की आवश्यकता होगी जो स्थानांतरित श्रमिकों को वित्तीय आवरण उपलब्ध करा सके अन्यथा धन में अधिक हिस्सेदारी की श्रमिक मनमानी करने लगेंगे| विभिन्न देशों में आर्थिक संवृद्धि का यह उद्देश्य साझा लाभ के किसी भी तरीके से प्राप्त किया जा सकता है जैसे- किसी देश के कुल लाभ के 15-20% हिस्से पर श्रमिक वर्ग का स्वामित्व रहना|
  • उपभोग के स्तर में भी परिवर्तन की आवश्यकता है| यदि प्रत्येक चार वर्ष में सम्पूर्ण उपभोग में दोगुनी वृद्धि होती है तो सड़कों पर वाहनों में भी दोगुनी वृद्धि होनी स्वभाविक है| यह भी सत्य है कि जीवन प्रत्याशा बढ़ने से न केवल जनसँख्या में वृद्धि होगी बल्कि युवाओं की हिस्सेदारी में भी बढ़ोतरी हो जाएगी| यह सुनिश्चित करने के लिये कि देश की सम्पत्ति के एक बड़े हिस्से का उपयोग स्वास्थ्य सुधारों और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राप्त करने में किया जाएगा, उचित पहल करने की आवश्यकता होगी|
  • यदि आने वाले वर्षो में नीतियों में होने वाले इन बदलावों को प्रबंधित नहीं किया गया तो अगले 50 वर्षों में विश्व की अर्थव्यवस्था अन्य प्रकार के संकट से जूझेगी| वर्ष 2067 को  अत्यधिक असमान, संघर्ष और अराजकता के वर्ष के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जहाँ मतदाता इस प्रकार के नेता को चुनना पसंद करेंगे जो उनके भय और दुःख का लाभ उठाएगा| तात्पर्य यह है कि विश्व ऐसा प्रतीत होगा जैसे यह आज से 30-40 वर्ष पूर्व था|

निष्कर्ष
वर्ष 1967 में विश्व की अर्थव्यवस्थाओं और स्वास्थ्य क्षेत्र में नवप्रवर्तन देखने को मिले थे क्योंकि इसी वर्ष जून माह में लंदन में विश्व के पहले एटीएम को लगाया गया था तथा इसी वर्ष दिसम्बर माह में  दक्षिण अफ्रीका में विश्व का प्रथम हृदय प्रत्यारोपण किया गया था| यदि इस प्रकार के परिवर्तनों के लिये वर्ष 2067 एक उपयुक्त शताब्दी है तो वर्तमान अस्थिरता विश्व प्रमुखों को विश्व की आवश्यकतानुसार उदार नीतियों का निर्माण व उनका क्रियान्वयन करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है| अंततः हमें अधिक खुशहाल, समानता पर आधारित और स्थायित्व प्राप्त विश्व का सृजन करने की आवश्यकता है|