पर्यावरणीय मुद्दों पर भू-राजनीति | 06 Mar 2017

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि सम्पूर्ण विश्व में आगे बढ़ने की होड़ लगी हुई है| यही कारण है कि विकास की इस बेतहाशा दौड़ में पिछले कुछ समय से रूस के साथ पश्चिम के संबंधों, नाटो (North Atlantic Treaty Organization - NATO), का भविष्य, सीरियाई गृहयुद्ध तथा शरणार्थी संकट, दिनोंदिन बढ़ता दक्षिणपंथी लोकलुभावनवाद (Right-Wing Populism), स्वचालन (Automation) का प्रभाव जैसे कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों ने सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खिंच रखा है| परन्तु इन सभी मुद्दों से अधिक महत्त्वपूर्ण एक मुद्दा है जिसकी पिछले कुछ समय से काफी अनदेखी की जा रही हैं, वह मुद्दा है पर्यावरण का|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • गौरतलब है कि पिछले वर्ष स्विट्ज़रलैंड के दावोस में संपन्न हुई विश्व आर्थिक फोरम (World Economic Forum) की वार्षिक बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा पेरिस जलवायु समझौते के सन्दर्भ में दी गई मंजूरी के अलावा अन्य किसी मुद्दों यथा; जलवायु परिवर्तन एवं सतत् विकास इत्यादि पर चर्चा नहीं की गई| 
  • इसके विपरीत, फोरम की बैठकों में वर्तमान में वैश्विक राजनैतिक की स्थिति तथा आर्थिक घटनाओं के विषय में चर्चा की गई|स्पष्ट है कि भू-राजनैतिक तथा सामाजिक अस्थिरता के मुद्दों के कारण पर्यावरणीय मुद्दों की उपेक्षा किया जाना एक सही कदम नहीं है क्योंकि पर्यावरण क्षरण एवं प्राकृतिक संसाधनों की असुरक्षा कुछ ऐसी वैश्विक समस्याएँ हैं, जिनसे संबद्ध समस्याओं का समाधान करने में हम अभी तक सक्षम नहीं हो पाए हैं| 
  • ऐसे में यदि हम इन समस्याओं के संबंध में गंभीरता से विचार नहीं करते हैं तो भविष्य में इस संबंध में कोई भी पहल कर पाना आसान नहीं होगा|
  • वस्तुतः पर्यावरणीय असुरक्षा एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं वृहद् मुद्दा है, जिसके वैश्विक अस्थिरता के सन्दर्भ में हमेशा कम करके ही आँका जाता है| 
  • गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग द्वारा शरणार्थियों के संबंध में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि वर्ष 2008 से प्रतिवर्ष तकरीबन 26 मिलियन लोग प्राकृतिक आपदाओं के कारण विस्थापित होने को विवश हैं| जबकि इस समयावधि में जबरन विस्थापित हुए लोगों की कुल संख्या उक्त संख्या का मात्र एक तिहाई भाग ही है| 
  • इतना ही नहीं वरन् वर्तमान में शरणार्थी संकट का एक अहम तत्त्व पर्यावरण ही है| जैसा  कि हम सभी जानते हैं कि वर्तमान में युद्धग्रस्त सीरियाई क्षेत्र इतिहास के सबसे भयावह सूखे की चपेट में है| सूखे के साथ-साथ कृषि की अरक्षणीय पद्धतियों तथा निम्न प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के कारण वर्ष 2011 से अभी तक तकरीबन 1.5 मिलियन लोग आंतरिक विस्थापन को छोड़ने को विवश हो गए हैं, बल्कि इसके कारण उपजी राजनैतिक अस्थिरता ने देश में विद्रोह की स्थिति उपन्न कर दी है|
  • हालाँकि पर्यावरणीय तथा कृषिगत अस्थिरता की स्थिति अब सीरियाई क्षेत्र से बाहर तक फैल गई है|

पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन (आर्थिक परिदृश्य में)

  • गौरतलब है कि यदि कृषि पैदावार की निर्भरता को विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों तक ही सीमित रखा जाता है तो इसका प्रत्यक्ष प्रभाव खाद्य उत्पादन क्षमता पर परिलक्षित होता है| स्पष्ट है कि पर्यावरण संबंधी समस्याएँ कृषि की खाद्य उत्पादन क्षमता को प्रभावित करने में सक्षम हैं|
  • सम्भवतः इससे विश्व के दो कोनों को आपस में संबद्ध करने में आसानी होती है| उदाहरण के तौर पर, भारत के किसी एक क्षेत्र विशेष में उत्पादित होने वाली किसी फसल विशेष का उपभोग अमेरिका के किसी व्यक्ति द्वारा किया जाता है| ऐसे में यदि उस फसल के उत्पादन में पर्यावरणीय समस्या से पीड़ित किसान द्वारा हानिकारक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है, तो इन उर्वरकों का सीधा प्रभाव अमेरिकी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ेगा|
  • सम्भवतः जिसके कारण सिंचाई में प्रयुक्त किये गए जल के साथ-साथ मिट्टी की गुणवत्ता, अत्यधिक मात्रा में  उर्वरकों के इस्तेमाल के साथ-साथ अन्य पर्यावरणीय प्रभावों के आकलन जैसे मुद्दों के संबंध में गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता होगी| क्योंकि विश्व के किसी एक स्थान की पर्यावरणीय दशा प्रभावित होने से इसका प्रभाव विश्व के अन्य भागों पर भी पड़ने की व्यापक संभावनाएँ हैं|
  • इसके अतिरिक्त किसी स्थान विशेष की पर्यावरणीय स्थिति प्रभावित होने से उस क्षेत्र में उत्पादित होने वाली फसलों के उत्पादन में लगने वाली कुल लागत में भी बढ़ोतरी हो जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप वस्तु की कीमत में दिनोंदिन वृद्धि होती जाएगी| इसका सबसे सशक्त उदाहरण है कॉफी|
  • वस्तुतः ऐसी किसी भी स्थिति का प्रत्यक्ष प्रभाव घरेलू आय के स्तर पर परिलक्षित होता है| जहाँ एक ओर, इसके कारण किसानों की आय में वृद्घि होती है वहीं दूसरी ओर, उपभोक्ता के लिये महँगाई का स्तर बढ़ जाता है| परिणामतः गरीब वर्ग के लोगों को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता है|
  • इसके अतिरिक्त पर्यावरणीय प्रभावों को आर्थिक परिचर्चा का केंद्र बिंदु इसलिये भी बनाया जाता हैं क्योंकि यह विश्व का एकल सबसे बड़ा नियोक्ता है|
  • सम्पूर्ण विश्व की औपचारिक रूप से कार्यशील आबादी का तकरीबन 20 फीसदी हिस्सा यानि तकरीबन 1 बिलियन लोग कृषि से संबद्ध हैं| जबकि अन्य एक बिलियन आबादी के जीवन निर्वाह का आधार कृषि से संबद्ध अन्य क्षेत्र हैं, यह और बात है कि इन लोगों को औपचारिक रूप से मजदूरी आँकड़ों में पंजीकृत नहीं किया जाता है|
  • स्पष्ट है कि आर्थिक विकास को बढ़ावा प्रदान करने वाली पहलों के अंतर्गत कृषि क्षेत्र से संलग्नित इतनी बड़ी आबादी की उत्पादकता को बढ़ावा प्रदान करने वाली गतिविधियों को भी प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये| विशेषकर ऐसी स्थिति में जब विकास के क्रम में तकनीकी का प्रयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है|
  • इतनी बड़ी आबादी को लाभान्वित करने हेतु मात्र परीक्षण तथा शिक्षा के विकल्प ही पर्याप्त साबित नहीं होंगे, बल्कि इसके लिये आवश्यक है कि कुछ नई परियोजनाओं को लागू किया जाए ताकि कोई भी देश अपनी समस्त प्राकृतिक देनों यथा; भूमि, जल तथा समुद्री संसाधनों का उचित तथा पर्यावरणीय दृष्टि के अनुरूप प्रयोग कर सकें|
  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्राकृतिक संसाधनों के अव्यवस्थित उपयोग के परिणामस्वरूप विस्थापन तथा असुरक्षा की भावना दिनोंदिन बढ़ती जा रही है| ऐसी स्थिति में प्राकृतिक संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करके सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा प्रदान किया जा सकता है|

निष्कर्ष

हालाँकि इसके लिये आवश्यक है कि पर्यावरणीय संसाधनों के साथ-साथ इसके समीपस्थ रहने वाले स्थानीय समुदायों के उत्थान की दिशा में भी प्रयास किये जाने चाहिये| कई मामलों में ऐसा देखा गया है कि प्राकृतिक संसाधनों के समीप रहने वाले समुदायों तथा पर्यावरण के मध्य एक रिश्ता-सा कायम हो जाता है, ये स्थानीय समुदाय प्रकृति को अपने समाज एवं परिवार का हिस्स्सा बना लेते हैं| अत: ऐसी स्थिति में यह और अधिक आवश्यक हो जाता है कि सरकार अपनी नीतियों एवं निर्णयों के माध्यम से संसाधनों के उचित बँटवारे तथा इससे संबद्ध कौशल प्रशिक्षण को बढ़ावा प्रदान करना सुनिश्चित करे ताकि समुदायों एवं प्रकृति के मध्य स्थापित इस संबंध को और अधिक प्रगाढ़ किया जा सके| स्पष्ट है कि वर्तमान में दुनिया के समक्ष मौजूद तकरीबन मुद्दों की जड़ें पर्यावरण से संबद्ध है| अत: एक स्वस्थ दुनिया के स्वरूप को बनाए रखने के लिये एक स्वस्थ पर्यावरण को सुनिश्चित किया जाना अत्यंत आवश्यक है|