दिल्ली का शिक्षा मॉडल | 13 Feb 2020

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में दिल्ली के शिक्षा मॉडल से संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

आधुनिक भारत के निर्माण में महात्मा गांधी का बहुआयामी योगदान रहा है। गांधीजी की शिक्षा संबंधी विचारधारा उनके नैतिकता तथा स्वाबलंबन संबंधी सिद्धांतों पर आधारित थी। गांधीजी का मानना था कि सच्ची शिक्षा वही है जो बच्चों के आध्यात्मिक, शारीरिक और बौद्धिक पहलू को उभारे और उसे प्रेरित करे। संक्षेप में कहा जा सकता है कि गांधीजी की शिक्षा संबंधित विचारधारा सर्वंगीण विकास पर ज़ोर देती है। वर्ष 1930 में जब गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की तब नमक जैसी बुनियादी वस्तु के लिये पूरा देश उनके पीछे जा खड़ा हुआ। मौजूदा समय में देश के प्रत्येक नागरिक के लिये शिक्षा का वही महत्त्व है जो वर्ष 1930 में नमक का था। विगत वर्षों में दिल्ली के शिक्षा मॉडल ने दुनिया भर के तमाम विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया है।

शिक्षा का महत्त्व

पूर्व अमेरिकी राजनीतिज्ञ एडवर्ड इवरेट के अनुसार, “एक प्रशिक्षित सेना की अपेक्षा शिक्षित नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा अधिक बेहतर ढंग से कर सकते हैं।” शिक्षा समाज का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है जो आधुनिक और औद्योगिक विश्व में बहुत अहम भूमिका अदा करती है। कई विद्वान मौजूदा प्रतिस्पर्द्धी युग में अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिये शिक्षा को एक अनिवार्य साधन के रूप में देखते हैं। शिक्षा हमें न केवल अपनी समस्याओं के बेहतर एवं नवीन समाधान खोजने में मदद करती है बल्कि यह व्यक्ति विशेष के जीवन स्तर में सुधार करने और समाज को व्यवस्थित एवं सुचारु रूप से चलाने में भी सहायक है। शिक्षा के माध्यम से गरीबी को समाप्त कर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि देश का प्रत्येक नागरिक भारत के विकास में अपनी भूमिका अदा कर सके।

दिल्ली का शिक्षा मॉडल

देश में लंबे अरसे तक दो प्रकार के शिक्षा मॉडल ही प्रयोग किये जाते रहे हैं, पहला कुलीन वर्ग का शिक्षा मॉडल और दूसरा आम जनता का शिक्षा मॉडल। किंतु राजधानी में उक्त दो शिक्षा मॉडल्स के बीच के अंतर को कम करने का प्रयास किया गया है। विद्वानों के अनुसार, दिल्ली के शिक्षा मॉडल का दृष्टिकोण इस विश्वास पर आधारित है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना देश के सभी नागरिकों का अधिकार है। इस प्रकार दिल्ली में शिक्षा के एक ऐसे मॉडल का विकास किया गया है हो मुख्यतः 5 प्रमुख घटकों पर आधारित है।

  • स्कूल के बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन
    दिल्ली के शिक्षा मॉडल का पहला घटक स्कूल के बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन से संबंधित है। बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे स्कूल न केवल प्रशासन और सरकार की उदासीनता को दर्शाते हैं, बल्कि इनसे पढ़ने एवं पढ़ाने को लेकर छात्रों तथा शिक्षकों के उत्साह में भी कमी आती है। इस समस्या से निपटने के लिये दिल्ली सरकार ने सर्वप्रथम स्मार्ट बोर्ड, स्टाफ रूम, ऑडिटोरियम, प्रयोगशाला और पुस्तकालय जैसी आधुनिक सुविधाएँ प्रदान कीं। इसके साथ ही दिल्ली के अधिकांश विद्यालयों में आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित नई कक्षाओं का निर्माण किया गया। आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली सरकार ने वर्ष 2017-18 में दिल्ली के विद्यालयों में कुल 10,000 कक्षाओं का निर्माण कराया था। ज्ञात हो कि दिल्ली सरकार ने अपने बजट का 25 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा के क्षेत्र में निवेश किया है। इसके अलावा सरकार ने प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों से स्कूलों की स्वच्छता, रख-रखाव और मरम्मत आदि के बोझ को कम करने के लिये सभी स्कूलों में एक प्रबंधक की नियुक्ति की है। इस प्रकार के अधिकांश प्रबंधक सेवानिवृत्त सैनिक हैं।
  • शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों का क्षमता निर्माण
    शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था दिल्ली के शिक्षा मॉडल का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष है। इसके तहत शिक्षकों को उनके विकास के अवसर भी प्रदान किये गए। दिल्ली के सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और IIM अहमदाबाद जैसे उत्कृष्ट संस्थानों में कार्यरत विद्वानों से सीखने का अवसर प्रदान किया गया। वर्ष 2016 में प्रधानाध्यापक नेतृत्व विकास कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इस कार्यक्रम के तहत 10 प्रधानाध्यापकों का एक समूह प्रत्येक माह में एक बार विद्यालय में नेतृत्त्व संबंधी चुनौतियों पर चर्चा करते हैं और संयुक्त स्तर पर उनसे निपटने के लिये उपायों की तलाश करते हैं।
  • विद्यालय प्रशासन को जवाबदेह बनाना
    दिल्ली के सरकारी विद्यालय मुख्य रूप से अपनी अनुशासनहीनता के लिये काफी प्रसिद्ध थे। इस चुनौती से निपटने के लिये दिल्ली सरकार ने त्रि-स्तरीय निगरानी एवं निरीक्षण तंत्र स्थापित किया, जिसमें शिक्षा मंत्री ने स्वयं विद्यालयों का निरीक्षण किया। इसके अलावा शिक्षा निदेशालय (DoE) के ज़िला अधिकारियों ने अपने ज़िलों के अंतर्गत आने वाले स्कूलों के प्रबंधन की निगरानी और ट्रैकिंग भी की। अंतिम और सबसे महत्त्वपूर्ण स्तर पर स्कूल प्रबंधन समितियों (School Management Committees-SMC) का पुनर्गठन किया गया। मौजूदा समय में सभी SMCs का वार्षिक बजट लगभग 5-7 लाख रुपए है। साथ ही SMC को यह छूट दी गई है कि वे इस धन को किसी भी सामग्री या गतिविधि पर खर्च कर सकते हैं।
  • पाठ्यक्रम में सुधार
    वर्ष 2016 के आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली के सरकारी विद्यालयों में 9वीं कक्षा में असफलता दर 50 प्रतिशत से भी अधिक है। आधारभूत कौशल के अभाव को सर्वसम्मति से इसका मुख्य कारण स्वीकार किया गया। नियमित शिक्षण गतिविधियों की शुरुआत की गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी बच्चे पढ़ना, लिखना और बुनियादी गणित का कौशल सीखें। इसी प्रकार नर्सरी से कक्षा 8 तक के बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य हेतु ‘हैप्पीनेस पाठ्यक्रम’ की शुरुआत की गई है। कक्षा 9 से 12 तक के बच्चों में समस्या-समाधान और विचार क्षमताओं को विकसित करने के लिये ‘उद्यमशीलता पाठ्यक्रम’ की शुरुआत की गई है।
  • निजी विद्यालयों की फीस में स्थिरता
    उल्लेखनीय है कि उक्त चारों घटकों ने केवल दिल्ली के सरकारी विद्यालयों को प्रभावित किया जबकि दिल्ली के निजी विद्यालयों में भी काफी अधिक संख्या में विद्यार्थी मौजूद हैं। पहले अक्सर यह देखा जाता था कि दिल्ली के सभी निजी स्कूल वार्षिक आधार पर अपनी फीस में 8-15 प्रतिशत की वृद्धि करते थे। दिल्ली सरकार ने सभी निजी विद्यालयों के लिये यह अनिवार्य किया कि वे फीस प्रस्ताव को लागू करने से पूर्व किसी भी एक अधिकृत चार्टर्ड एकाउंटेंट (CA) से उसकी जाँच कराएंगे।

‘चुनौती’ योजना

  • वर्ष 2016 में सरकार ने दिल्ली के विद्यालयों में ड्रॉपआउट दर को देखते हुए ‘चुनौती’ योजना की शुरुआत की। इस पहल के तहत छात्रों को हिंदी और अंग्रेजी पढ़ने या लिखने तथा गणित के प्रश्न हल करने के आधार पर समूहों में विभाजित किया गया।
  • उनकी सीखने की क्षमताओं के आधार पर, उन्हें सरकारी स्कूलों में 'विशेष कक्षाएं' प्रदान की जाती हैं। यह योजना मूल रूप से नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी के मॉडल पर आधारित थी।

आगे की राह

  • दिल्ली के शिक्षा मंत्री ने कहा कि “पहले चरण में हमारा लक्ष्य शिक्षा के आधार को निर्मित करना था, किंतु शिक्षा मॉडल के दूसरे चरण में हमारा उद्देश्य शिक्षा को आधार को रूप में विकसित करना होगा।” साथ ही सरकार ने विद्यालयों में ‘देशभक्ति’ के पाठ्यक्रम को जोड़ने की घोषणा भी की है।
  • दिल्ली के विद्यार्थियों के मध्य समीक्षात्मक सोच, समस्या समाधान और ज्ञान के अनुप्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिये दिल्ली शिक्षा बोर्ड के गठन पर भी विचार किया जा रहा है।
  • चूँकि सरकार ने शिक्षा को अपने प्राथमिक एजेंडे में शामिल कर लिया है, इसलिये आम जनता की सरकार से स्वाभाविक अपेक्षा यह सुनिश्चित करना होगी कि राज्य के सभी बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और समान अवसर प्राप्त कर सकें।

प्रश्न: दिल्ली के शिक्षा मॉडल के प्रमुख घटकों पर चर्चा करते हुए इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।