भारत-चीन संबंध के बदलते आयाम | 20 May 2020

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत-चीन संबंध व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

ऐसे समय में जब विश्व व्यवस्था को वैश्विक महामारी से निपटने के लिये आपसी सहयोग, समन्वय एवं सहभागिता की आवश्यकता है, विश्व व्यवस्था के दो बड़े राष्ट्र भारत व चीन सीमा विवाद के कारण आपस में उलझे हुए हैं। हालिया विवाद का केंद्र अक्साई चिन में स्थित गालवन घाटी (Galwan Valley) है, जिसको लेकर दोनो देशों की सेनाएँ आमने-सामने आ गईं हैं। जहाँ भारत का आरोप है कि गालवन घाटी के किनारे चीनी सेना अवैध रूप से टेंट लगाकर सैनिकों की संख्या में वृद्धि कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर चीन का आरोप है कि भारत गालवन घाटी के पास रक्षा संबंधी अवैध निर्माण कर रहा है। इस घटना से पूर्व उत्तरी सिक्किम के नाथू ला सेक्टर में भी भारतीय व चीनी सैनिकों की झड़प हुई थी।

उपरोक्त घटनाएँ भारत-चीन के मध्य सीमा विवाद का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जो दोनों देशों के बीच रक्षा व सुरक्षा संबंधों की जटिलता को प्रदर्शित करते हैं। दोनों देशों के बीच संबंधों को व्यापक दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है। यह विदित है कि भारत और चीन दोनों ने लगभग एक-साथ साम्राज्यवादी शासन से मुक्ति पाई। भारत ने जहाँ सच्चे अर्थों में लोकतंत्र के मूल्यों को खुद में समाहित किया, तो वहीं चीन ने छद्म लोकतंत्र को अपनाया। भारत चीन सबंधों की इस गाथा में अनेक स्याह मोड़ आए। हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे से लेकर वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से होते हुए दोनों देशों के संबंध आज इस दौर में हैं कि भारत व चीन विभिन्न मंचों पर एक-दूसरे की मुखालफत करते नज़र आते हैं। 

इस आलेख में भारत-चीन संबंधों की व्यापकता पर चर्चा करते हुए वर्तमान में दोनों देशों के बीच सहयोग के क्षेत्र व विवाद के बिंदुओं का विश्लेषण करने का प्रयास किया जाएगा।  

भारत-चीन संबंधों का विकास 

  • हज़ारों वर्षों तक तिब्बत ने एक ऐसे क्षेत्र के रूप में काम किया जिसने भारत और चीन को भौगोलिक रूप से अलग और शांत रखा, परंतु जब वर्ष 1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर वहाँ कब्ज़ा कर लिया तब भारत और चीन आपस में सीमा साझा करने लगे और पड़ोसी देश बन गए। 
  • 20वीं सदी के मध्य तक भारत और चीन के बीच संबंध न्यूनतम थे एवं कुछ व्यापारियों, तीर्थयात्रियों और विद्वानों के आवागमन तक ही सीमित थे। 
  • वर्ष 1954 में नेहरू और झोउ एनलाई (Zhou Enlai) ने “हिंदी-चीनी भाई-भाई” के नारे के साथ पंचशील सिद्धांत पर हस्ताक्षर किये, ताकि क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिये कार्ययोजना तैयार की जा सके।
  • वर्ष 1959 में तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक और लौकिक प्रमुख दलाई लामा तथा उनके साथ अन्य कई तिब्बती शरणार्थी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बस गए। इसके पश्चात् चीन ने भारत पर तिब्बत और पूरे हिमालयी क्षेत्र में विस्तारवाद और साम्राज्यवाद के प्रसार का आरोप लगा दिया।
  • वर्ष 1962 में सीमा संघर्ष से द्विपक्षीय संबंधों को गंभीर झटका लगा तथा उसके बाद वर्ष 1976 मे भारत-चीन राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल किया गया। इसके बाद समय के साथ-साथ द्विपक्षीय संबंधों में धीरे-धीरे सुधार देखने को मिला।
  • वर्ष 1988 में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने द्विपक्षीय संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया शुरू करते हुए चीन का दौरा किया। दोनों पक्ष सीमा विवाद के प्रश्न पर पारस्परिक स्वीकार्य समाधान निकालने तथा अन्य क्षेत्रों में सक्रिय रूप से द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने के लिये सहमत हुए। वर्ष 1992 में, भारतीय राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन भारत गणराज्य की स्वतंत्रता के बाद चीन का दौरा करने वाले प्रथम भारतीय राष्ट्रपति थे।  
  • वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन का दौरा किया। दोनों पक्षों ने भारत-चीन संबंधों में सिद्धांतों और व्यापक सहयोग पर घोषणा (The Declaration on the Principles and Comprehensive Cooperation in China-India Relations) पर हस्ताक्षर किये। 
  • वर्ष 2011 को 'चीन-भारत विनिमय वर्ष' तथा वर्ष 2012 को 'चीन-भारत मैत्री एवं सहयोग वर्ष' के रूप में मनाया गया। 
  • वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन का दौरा किया इसके बाद चीन ने भारतीय आधिकारिक तीर्थयात्रियों के लिये नाथू ला दर्रा खोलने का फैसला किया। भारत ने चीन में भारत पर्यटन वर्ष मनाया।
  • वर्ष 2018 में चीन के राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री के बीच वुहान में भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन’ का आयोजन किया गया। उनके बीच गहन विचार-विमर्श हुआ और वैश्विक और द्विपक्षीय रणनीतिक मुद्दों के साथ-साथ घरेलू एवं विदेशी नीतियों के लिये उनके संबंधित दृष्टिकोणों पर व्यापक सहमति बनी। 
  • वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री तथा चीन के राष्ट्रपति बीच चेन्नई में दूसरा अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। इस बैठक में, 'प्रथम अनौपचारिक सम्मेलन' में बनी आम सहमति को और अधिक दृढ़ किया गया।
  • वर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70 वीं वर्षगांठ है तथा भारत-चीन सांस्कृतिक तथा पीपल-टू-पीपल संपर्क का वर्ष भी है।

सहयोग के विभिन्न क्षेत्र 

  • राजनैतिक तथा राजनयिक संबंध
    • भारत तथा चीन के शीर्ष नेताओं द्वारा दो अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किये गए तथा वैश्विक एवं क्षेत्रीय महत्त्व के मुद्दों पर गहन विचारों का आदान-प्रदान किया।
    • दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय यात्राओं का लगातार आदान-प्रदान, अंतर-संसदीय मैत्री समूह स्थापना, सीमा प्रश्न पर विशेष प्रतिनिधियों की बैठक आदि का आयोजन समय-समय पर किया जाता रहा है।
    • भारत तथा चीन के बीच द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक चिंताओं के विभिन्न विषयों पर विचारों के आदान-प्रदान के लिये लगभग 50 संवाद तंत्र हैं।
  • आर्थिक संबंध
    • 21 वीं सदी के प्रारंभ से अब तक भारत और चीन के बीच होने वाला व्यापार 3 बिलियन डॉलर से बढ़कर लगभग 100 बिलियन डॉलर (32 गुना) हो गया है। वर्ष 2019 में भारत तथा चीन के बीच होने वाले व्यापार की मात्रा 92.68 बिलियन डॉलर थी।
    • भारत में औद्योगिक पार्कों, ई-कॉमर्स तथा अन्य क्षेत्रों में 1,000 से अधिक चीनी कंपनियों ने निवेश किया है। भारतीय कंपनियाँ भी चीन के बाज़ार में सक्रिय रूप से विस्तार कर रही हैं। चीन में निवेश करने वाली दो-तिहाई से अधिक भारतीय कंपनियाँ लगातार मुनाफा कमा रही हैं।
    • 2.7 बिलियन से अधिक लोगों के संयुक्त बाज़ार तथा दुनिया के 20% के सकल घरेलू उत्पाद के साथ, भारत और चीन के लिये आर्थिक एवं व्यापारिक सहयोग के क्षेत्र में व्यापक संभावनाएँ विद्यमान हैं। भारत में चीनी कंपनियों का संचयी निवेश 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का है। 
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
    • भारतीय कंपनियों ने चीन में तीन सूचना प्रौद्योगिकी कॉरिडोर स्थापित किये हैं, जो सूचना प्रौद्योगिकी तथा उच्च प्रौद्योगिकी में भारत-चीन सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
  • रक्षा संबंध 
    • भारत तथा चीन के बीच हैंड-इन-हैंड (Hand-in-Hand) संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यास के अब तक 8 दौर आयोजित किये जा चुके हैं।
  • पीपल-टू-पीपल कनेक्ट 
    • दोनों देशों ने कला, प्रकाशन, मीडिया, फिल्म और टेलीविज़न, संग्रहालय, खेल, युवा, पर्यटन, स्थानीयता, पारंपरिक चिकित्सा, योग, शिक्षा तथा थिंक टैंक के क्षेत्र में आदान-प्रदान तथा सहयोग पर बहुत अधिक प्रगति की है।
    • दोनों देशों ने सिस्टर सिटीज़ (Sister Cities) तथा प्रांतों के 14 जोड़े स्थापित किये हैं। फ़ुज़ियान प्रांत और तमिलनाडु को सिस्टर स्टेट के रूप में जबकि चिनझोऊ (Quanzhou) एवं चेन्नई नगर को सिस्टर सिटीज़ के रूप में विकसित किया जाएगा।

विवाद के बिंदु

  • सीमा विवाद, जैसे- पैंगोंग त्सो मोरीरी झील का विवाद-2019, डोकलाम गतिरोध-2017, अरुणाचल प्रदेश में आसफिला क्षेत्र पर विवाद। 
  • परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) में भारत का प्रवेश, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता आदि पर चीन का प्रतिकूल रुख।
  • बेल्ट एंड रोड पहल (Belt and Road Initiative) संबंधी विवाद, जैसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (China Pakistan Economic Corridor- CPEC) विवाद। 
  • सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर चीन द्वारा पाकिस्तान का बचाव एवं समर्थन।
  • चीन ने हिंद-प्रशांत महसागरीय क्षेत्र में भारत (QUAD का सदस्य) की भूमिका पर भी असंतोष जाहिर किया है।

विवाद समाधान की रणनीति

  • दोनों देशों को नेताओं के रणनीतिक मार्गदर्शन का पालन करना चाहिये। 
  • मैत्रीपूर्ण सहयोग की सामान्य प्रवृत्ति को विकसित करने पर बल देना होगा।
  • पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग की गति का विस्तार करना चाहिये।
  • भारत व चीन को अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मामलों पर समन्वय को बढ़ाना चाहिये।
  • दोनों देशों को आपसी मतभेदों का उचित प्रबंधन करना होगा। 

आगे की राह 

  • सीमाओं को परिभाषित करने के साथ ही उनका सीमांकन और परिसीमन किये जाने की आवश्यकता है ताकि आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के भय को दूर किया जा सके और संबंधों को मज़बूत किया जा सके।
  • पिछले दस वर्षों के द्विपक्षीय व्यापार में चीन ने भारत के मुकाबले 750 बिलियन डॉलर की बढ़त बना ली है, जिसे कम करना बहुत आवश्यक है। व्यापार घाटे को कम करने में सेवा क्षेत्र एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
  • विश्व में चीन तथा भारत ऐसे देश है जिनकी जनसंख्या एक अरब से अधिक है तथा ये दोनों देश राष्ट्रीय कायाकल्प के ऐतिहासिक मिशन के साथ ही विकासशील देशों की सामूहिक उत्थान प्रक्रिया को गति देने में महत्त्वपूर्ण प्रेरक की भूमिका निभा सकते हैं।
  • भारत और चीन के बीच की समस्याओं को अल्पावधि में हल किया जाना कठिन है, लेकिन मौजूदा रणनीतिक अंतर को न्यूनतम करने, मतभेदों को कम करने और यथास्थिति बनाए रखने जैसे उपायों से समय के साथ आपसी संबंधों को और बेहतर बनाया जा सकता है।

प्रश्न- ‘भारत और चीन के मध्य संबंधों में समय के साथ परिवर्तन होते रहे हैं।’ वर्तमान परिदृश्य के आलोक में दोनों देशों के मध्य संबंधों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।