भारत की निर्यात क्षमता में वृद्धि करना | 17 Dec 2022

यह एडिटोरियल दिनांक 16/12/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “India’s current account deficit reveals the need to increase exports” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के चालू खाता घाटे और निर्यात को बढ़ावा देने की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।

भारत का विनिर्माण निर्यात पिछले 2 वर्षों में तीव्र वृद्धि के साथ वित्तीय वर्ष 2022 (FY22) में 418 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुँच गया है। दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 3.1% का योगदान करने के बावजूद वैश्विक व्यापार में भारत का निर्यात योगदान वर्तमान में केवल 1.6% है। इसमें बढ़ता संरक्षणवाद एवं वि-वैश्वीकरण (deglobalisation), बुनियादी ढाँचे की कमी और उच्च-आय देशों में  बाज़ार तक कमज़ोर पहुँच जैसे कई कारक शामिल हैं।

इस परिदृश्य में, निर्यात संबंधी चुनौतियों को संबोधित करने के लिये आवश्यक है कि भारत मुक्त व्यापार समझौतों में तेज़ी लाने, टैरिफ कम करने और आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को दूर करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाए।

भारतीय निर्यात में योगदान देने वाले प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?

  • पेट्रोलियम उत्पाद: महामारी के कारण कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न भू-राजनीतिक तनाव परिदृश्य के और बिगड़ने के बीच पेट्रोलियम उत्पादों ने भारत के निर्यात में प्रमुखता से योगदान दिया।
    • भारत 55.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात किया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 150% की भारी वृद्धि को दर्शाता है।
  • इंजीनियरिंग वस्तुएँ: वित्त वर्ष 2022 में 101 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के साथ इन्होंने निर्यात में 50% की वृद्धि दर्ज की है। वर्तमान में भारत में सभी तरह के पंपों, उपकरणों, कार्बाइड, एयर कंप्रेशर्स, इंजन और जनरेटर के विनिर्माण से संबद्ध बहुराष्ट्रीय निगम रिकॉर्ड उच्च स्तर पर कारोबार कर रहे हैं और अधिकाधिक उत्पादन इकाइयों को भारत में स्थानांतरित कर रहे हैं।
  • आभूषण: आभूषण क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2022 में भारत के निर्यात में 35.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया। इस वर्ष के बजट में कट एंड पॉलिश्ड हीरों पर आयात शुल्क घटाए जाने से इनके निर्यात में और वृद्धि का अनुमान किया जा रहा है।
  • कृषि उत्पाद: महामारी के बीच खाद्य की वैश्विक मांग की पूर्ति के लिये सरकार के प्रोत्साहन से कृषि निर्यात में उछाल आया है। भारत 9.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के चावल का निर्यात करता है , जो कृषि जिंसों में सबसे अधिक है।
  • वस्त्र एवं परिधान: वित्त वर्ष 2012 में भारत का वस्त्र एवं परिधान निर्यात (हस्तशिल्प सहित) 44.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा जो पिछले वर्ष की तुलना में 41% वृद्धि दर्शाता है।
  • फार्मास्यूटिकल्स और ड्रग्स: भारत मात्रा के हिसाब से दवाओं का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।
    • भारत अफ्रीका की जेनरिक आवश्यकताओं के 50% से अधिक, अमेरिका की  जेनरिक मांग के लगभग 40% और यूके की सभी दवाओं के 25% की आपूर्ति करता है।

भारतीय निर्यात वृद्धि से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • बढ़ता संरक्षणवाद और वि-वैश्वीकरण: दुनिया भर के देश बाधित वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था (रूस-यूक्रेन युद्ध के कारन) और आपूर्ति शृंखला के शस्त्रीकरण (weaponization of supply chain) के कारण संरक्षणवादी व्यापार नीतियों की ओर आगे बढ़ रहे हैं, जो कई प्रकार से भारत की निर्यात क्षमताओं को कम कर रहा है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: भारत के विनिर्माण क्षेत्र में विकसित देशों की तुलना में पर्याप्त विनिर्माण केंद्रों की कमी है और इंटरनेट सुविधा तथा परिवहन महँगा है जो उद्योगों के लिये एक बड़ी बाधा है।
    • निर्बाध विद्युत आपूर्ति एक अन्य प्रमुख चुनौती है।
  • अनुसंधान एवं विकास पर कम व्यय के कारण नवाचार की कमी: वर्तमान में भारत अनुसंधान और विकास पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.7% खर्च करता है। यह विनिर्माण क्षेत्र को विकसित होने, नवाचार करने और आगे बढ़ने से अवरुद्ध करता है।
  • विशेषज्ञता बनाम विविधीकरण (Specialisation versus Diversification): भारतीय निर्यात उच्च विविधिकरण के साथ निम्न विशेषज्ञता की प्रकृति का है, जिसका अर्थ यह है कि भारत का निर्यात कई उत्पादों एवं साझेदारों में विस्तृत है, जिसके परिणामस्वरूप अन्य देशों की तुलना में प्रतिस्पर्द्धात्मकता की कमी की स्थिति बनती है।

आगे की राह

  • संयुक्त विकास कार्यक्रम (Joint Development Programmes): वि-वैश्वीकरण की लहर और धीमी वृद्धि के बीच, निर्यात ही विकास का एकमात्र इंजन नहीं हो सकता। भारत के मध्यम अवधि की विकास संभावनाओं को उज्जवल बनाने के लिये इसे अन्य देशों के साथ अंतरिक्ष, सेमीकंडक्टर, सौर ऊर्जा जैसे विविध क्षेत्रों में संयुक्त विकास कार्यक्रमों की तलाश करनी चाहिये।
  • समर्पित निर्यात गलियारे (Dedicated Export Corridors): आर्थिक नीति को समर्पित निर्यात गलियारों के माध्यम से उत्पाद विविधीकरण के साथ-साथ निर्यात गतिशीलता एवं उत्पाद विशेषज्ञता को बढ़ावा देने का भी प्रयास करना चाहिये ताकि विश्व भर में सर्वोत्तम सेवा प्रदान की जा सके और भारतीय अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक निरंतर आर्थिक विकास के पथ पर आगे बढ़ाया जा सके।
  • विदेशों में अधिग्रहण को बढ़ावा देना: भारतीय उद्यमियों को अपने उत्पादों के लिये निर्यात क्षमता के निर्माण हेतु विदेशों में संयुक्त उद्यम उपक्रम स्थापित और अधिग्रहित करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। विशेष रूप से उन विकासशील देशों में जहाँ अनुकूल राजनीतिक माहौल है और भारतीय उत्पादों की मांग है, इस दृष्टिकोण से आगे बढ़ा जा सकता है।
  • MSME क्षेत्र को अग्रिम पंक्ति में लाना: MSME क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 29% और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में 40% का योगदान करते हैं; इस प्रकार, महत्वाकांक्षी निर्यात लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु वे प्रमुख खिलाड़ी होने की स्थिति रखते हैं।
    • भारत के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) को MSME क्षेत्र से संयुक्त करना और छोटे व्यवसायों को प्रोत्साहित करना महत्त्वपूर्ण है।
  • अवसंरचनात्मक अंतराल को भरना: एक सुदृढ़ अवसंरचना नेटवर्क (गोदाम, बंदरगाह, परीक्षण प्रयोगशाला, प्रमाणन केंद्र आदि) से भारतीय निर्यातकों को वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा कर सकने की सक्षमता प्राप्त होगी।
    • भारत को आधुनिक व्यापार अभ्यासों को अपनाने की भी आवश्यकता है जिन्हें निर्यात प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण के माध्यम से लागू किया जा सकता है। इससे समय और लागत दोनों की बचत होगी।

अभ्यास प्रश्न: भारत के निर्यात प्रभुत्व के मार्ग की प्रमुख बाधाओं की विवेचना कीजिये। उन प्रमुख क्षेत्रों की भी चर्चा कीजिये जो भारत की निर्यात क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न 1. पूर्ण और प्रति व्यक्ति वास्तविक जीएनपी में वृद्धि आर्थिक विकास के उच्च स्तर को नहीं दर्शाती है, यदि (वर्ष 2018)

(A) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ तालमेल बनाए रखने में विफल रहता है।
(B) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ तालमेल बनाए रखने में विफल रहता है।
(C) गरीबी और बेरोज़गारी में वृद्धि।
(D) निर्यात की तुलना में आयात तेज़ी से बढ़ता है।

उत्तर: (C)


प्रश्न 2. SEZ अधिनियम, 2005, जो फरवरी 2006 में प्रभाव में आया, के कुछ उद्देश्य हैं।  इस संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये (वर्ष 2010)

  1. अवसंरचना सुविधाओं का विकास।
  2. विदेशी स्रोतों से निवेश को बढ़ावा देना।
  3. केवल सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देना।

उपर्युक्त में से कौन-से इस अधिनियम के उद्देश्य हैं?

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 3
(C) केवल 2 और 3
(D) 1, 2 और 3

उत्तर: (A)


प्रश्न 3. एक "बंद अर्थव्यवस्था" एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें (वर्ष 2011)

(A) पैसे की आपूर्ति पूरी तरह से नियंत्रित है
(B) घाटे की वित्त व्यवस्था होती है
(C) केवल निर्यात होता है
(D) न तो निर्यात या आयात होता है

उत्तर: (D)