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सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना | 25 Jan 2021 | भारतीय समाज

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जनगणना तथा सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना के बीच तुलना एवं उनसे संबंधित चिंताओं के बारे में चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

सामाजिक आबादी के बारे में लोगों को जानकारी देना, उसका वर्णन करना और समझाना एवं यह पता लगाना कि लोगों की पहुँच का स्तर क्या है, यह न केवल सामाजिक विज्ञानियों के लिये बल्कि नीति निर्माताओं और सरकार के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। इस संबंध में भारत की जनगणना इस तरह के सबसे बड़े आयोजनों में से एक है जिसके माध्यम से भारतीय आबादी से संबंधित जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक जानकारी एकत्र की जाती है। हालाँकि जनगणना के आलोचक इसे डेटा संग्रह का एक प्रयास और शासन की तकनीक के रूप में मानते हैं, लेकिन एक जटिल समाज की विस्तृत और व्यापक समझ के लिये यह पर्याप्त रूप से उपयोगी नहीं है। इस संदर्भ में वर्ष 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (Socio-Economic and Caste Census- SECC) आयोजित की गई थी, लेकिन इसके अपने अन्य मुद्दे हैं।

जनगणना, SECC और दोनों में अंतर:

जनगणना:

सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना:

जनगणना और SECC के बीच अंतर:

SECC से जुड़ी विभिन्न चिंताएँ:

आगे की राह:

निष्कर्ष:

हालाँकि जनगणना अधिकारी पारदर्शिता की नीति के एक भाग के रूप में कार्यप्रणाली पर दस्तावेज़ प्रस्तुत करते हैं, फिर भी जनगणना और SECC के कार्यकर्त्ताओं के साथ-साथ जनगणना और SECC के अधिकारियों के बीच घनिष्ठ और निरंतर जुड़ाव की आवश्यकता है, क्योंकि जनगणना और SECC शासन के साथ-साथ शैक्षणिक हित से संबंधित प्रक्रियाएँ हैं। 

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) जनगणना संबंधी आँकड़े प्राप्त करने के लिये जनगणना से बेहतर उपाय है। हालाँकि इसकी अपनी अलग चिंताएँ हैं। चर्चा करें।