भारत में एक से अधिक टाइम ज़ोन की सार्थकता | 25 Mar 2017

भारत एक विशाल देश है जिसका पूर्व में विस्तार बांग्लादेश की सीमा से लेकर पश्चिम में अरब सागर तक है, लेकिन विशाल भौगोलिक क्षेत्र के बावजूद हमारे यहाँ एक ही टाइम ज़ोन( time zone) है। गौरतलब है कि भारत में टाइम ज़ोन का मसला एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, इसमें बदलाव के प्रस्ताव खास तौर से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से आते रहते हैं।

पृष्ठभूमि

  • विदित हो कि प्रत्येक देश का एक मानक समय है जो अक्षांश-देशांतर में अंतर के आधार पर मापा जाता है। इसी तरह हमारे देश में आधिकारिक भारतीय मानक समय का निर्धारण उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद को केंद्र में रखकर होता रहा है जिसे दिल्ली स्थित राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला निर्धारित करती है। दुनिया के अधिकांश देश एकल टाइम ज़ोन से काम चलाते हैं और विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल वाले भारत में भी एक ही टाइम ज़ोन है। कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचल से गुजरात तक एक ही समय मान्य है।
  • ज्ञात हो कि यह व्यवस्था वर्ष 1906 में बनाई गई थी। हालाँकि 1948 तक कोलकाता का आधिकारिक समय अलग से निर्धारित होता था और इसका कारण यह था कि वर्ष 1884 में वॉशिंगटन में विश्व के सभी टाइम ज़ोन्स में एकरूपता लाने के उद्देश्य से हुई इंटरनेशनल मेरिडियन कॉन्फ्रेंस में तय हुआ कि भारत में दो टाइम ज़ोन होंगे। इसलिये कोलकाता का टाइम ज़ोन दूसरे मान्य टाइम ज़ोन के रूप में प्रचलित रहा। गौरतलब है कि मुंबई का समय भी 1955 तक अलग से मापा जाता था, हालाँकि उसे आधिकारिक तौर पर कभी लागू नहीं किया गया।
  • बहरहाल, विस्तृत भूभाग वाले हमारे देश में एक से ज़्यादा टाइम जोन की ज़रूरत की स्पष्ट वज़ह है। देश के कई हिस्सों में सूरज दूसरे हिस्सों के मुकाबले पहले उगता और अस्त होता है। पूर्वोत्तर में सुबह और शाम देश के बाकी हिस्सों से जल्दी होते है, इस कारण एक निश्चिय समय सारिणी से अनुसार खुलने वाले दफ्तरों में काम करने वाले लोगों को परेशानी का सामना तो करना ही पड़ता है साथ में वायुयानों की उड़ानों आदि के संचालन में भी असुविधा होती है।

क्यों बनना चाहिये एक और टाइम जोन ?

  • दरअसल, टाइम ज़ोन के प्रति एक आम भारतवासी के मन में यहीं छवि है कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसे बदला नहीं जा सकता और इसके कारण होने वाले नुकसान को हमें हर हाल में झेलना ही होगा, जबकि ऐसा है नहीं। पूर्वोतर के राज्यों में सूर्योदय सुबह के चार बजे ही हो जाता है और शाम भी इतनी ही जल्दी हो जाती है। फलस्वरूप जब तक स्कूल कॉलेज और दफ्तर खुलते हैं तब तक दिन का एक बड़ा हिस्सा बीत चूका होता है। रात हो जाती है कार्यालयों में काम होता रहता है। एक अध्ययन के मुताबिक इस प्रक्रिया में जितनी बिजली का उपयोग किया जाता है उससे रात के समय नागरिकों को की जाने उर्जा आपूर्ति में 18 प्रतिशत की बचत की जा सकती है। इन्हीं ज़रूरतों के मद्देनजर विस्तृत भूभाग वाले कई देशों में एक से अधिक टाइम ज़ोन हैं जैसे- रूस और अमेरिका में 11-11 टाइम ज़ोन हैं यहाँ तक कि फ्रांस जैसे छोटे देश में 12 टाइम ज़ोन हैं वहीं कनाडा में छह टाइम ज़ोन हैं।

क्यों नहीं बनना चाहिये अतिरिक्त टाइम ज़ोन ?

  • गौरतलब है कि वैज्ञानिक, भारत को दो समय ज़ोन में विभाजित करने के खतरों से आगाह करते रहे है। विदित हो कि वैज्ञानिकों के एक वर्ग का कहना है कि भारत में दो टाइम ज़ोन होने से अफरा-तफरी का माहौल देखने को मिल सकता है इतना ही नहीं, बल्कि टाइम ज़ोन की सीमाओं पर मानवीय भूल होने से भयंकर रेल दुर्घटनाएँ हो सकती हैं। ज़ाहिर है कि वैज्ञानिक समुदाय अपने आकलन के आधार पर भारत को अलग-अलग टाइम ज़ोन में विभाजित करने के पक्ष में नहीं है। विदित हो कि मुख्य रूप से पूर्वोत्तर राज्यों की ओर से उठने वाली इस मांग को ध्यान में रखकर कई वैज्ञानिक अध्ययन किये जा चुके हैं।

क्या हो आगे का रास्ता ?

  • ध्यातव्य है कि भारत में दो अलग टाइम जोन के मुद्दे की व्यवहारिकता और इससे से संबंधित वैज्ञानिक पक्षों के अध्ययन के लिये त्रिपुरा सरकार के आग्रह पर वर्ष 2002 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक समिति का गठन किया था। समिति का निष्कर्ष था कि दो टाइम ज़ोन में विभाजित करने से हवाई उड़ानों, रेल यातयात को कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और इससे राज्यों को कोई विशेष लाभ नहीं होगा। इसके साथ-साथ समिति का सुझाव था कि अलग-अलग राज्य सरकारें चाहें, तो इस दिशा में पहलकदमी कर सकती हैं।
  • एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम में वर्ष 2012 में केंद्र के ऊर्जा मंत्रालय की ओर से तैयार किये गए एक शोध पत्र में भी कहा गया था भारत के मानक स्थानीय समय को आधा घंटा बढ़ा दिया जाए तो लगभग 17-18 प्रतिशत ऊर्जा की खपत में बचत हो सकती है जो कि निश्चित इस समस्या का एक व्यवहारिक समाधान है।

निष्कर्ष

गौरतलब है दो टाइम ज़ोन बनाने को लेकर विशेषज्ञों में दो मत हैं, विशेषज्ञों का एक धड़ा यह मानता है कि भारत को अलग-अलग टाइम ज़ोन में विभाजित करना कई किस्म की प्रशासनिक दिक्कतें पैदा कर सकता है, जबकि दूसरा धड़ा ऊर्जा में बचत संबंधी फायदों की दलील देते हुए टाइम ज़ोन को विभाजित करने की वकालत करता है। ज़ाहिर है कि वैज्ञानिकों द्वारा दोनों ही दलीलों को ध्यान में रखते हुए ये रास्ता सुझाया गया है कि पूरे भारत में मानक समय को ही आधा घंटा बढ़ा दिया जाए। इससे टाइम जोन में बदलाव से संभावित प्रशासनिक दिक्कतें दूर हो सकती हैं।