भारतीय शहरों के विकास में सिंगापुर मॉडल की उपयोगिता | 04 Feb 2017

सन्दर्भ 

  • भारत में शहरीकरण की गति बढ़ती ही जा रही है और ऐसी उम्मीद की जा रही है कि हमारी अगली पीढ़ी जिस भारत को देखेगी, वह भारत महानगरों एवं शहरों का भारत होगा। गौरतलब है कि हमारे शहरों एवं महानगरों की हालत पहले से ही चिंतनीय है।
  • हमारे शहरों की जर्जर अवस्था का सबसे बड़ा कारण ख़राब नियोजन है। हमारे शहरों की त्रासदी यह है कि शहर पहले बन जाते हैं, उनके लिये योजनाएँ बाद में बनाई जाती हैं। लोग घर बनाकर नई बस्तियों में रहने लगते हैं, फिर वहाँ सड़क, सीवेज़, पानी, टेलीफोन और बिजली की व्यवस्था के बारे में सोचा जाता है।
  • हम कह सकते हैं कि शहरों की समस्या का निदान बेहतर नगर नियोजन है, लेकिन सवाल यह है कि बेहतर नगर नियोजन के मायने क्या हैं? इस प्रश्न के उत्तर में अधिकांश लोग तर्क देते हैं कि सिंगापुर बेहतर नगरीय नियोजन का सर्वोत्तम उदहारण है। यदि अगला सवाल यह हो कि क्या भारत का कोई शहर सिंगापुर मॉडल पर आधारित है, तो यहाँ प्रायः चंडीगढ़ का नाम लिया जाता है।
  • यह विडंबना ही कही जाएगी कि चंडीगढ़ शहर के विकास और सिंगापुर मॉडल का आपस में दूर-दूर तक संबंध नहीं है और अक्सर यह देखा गया है कि हम चंडीगढ़ मॉडल और सिंगापुर मॉडल को आपस में मिला देते हैं जो कि भारत में समुचित नगरीय नियोजन के सफल न होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण है।

भारतीय शहरों के नगर नियोजन से संबंधित समस्याएँ

  • भारत के महानगर और अधिकांश शहर अंग्रेज़ों के जमाने के नगर योजना पर आधारित हैं। आबादी बढ़ती गई लेकिन शहरों को बढ़ती आबादी की ज़रुरतों के हिसाब से विकसित नहीं किया गया। आज स्थिति यह है कि लोगों की ज़रूरतों और शहरों में उपलब्ध सुविधाओं के बीच ज़मीन-आसमान का अंतर है। एक तरफ जहाँ ट्रैफिक जाम की समस्या है तो दूसरी तरफ पीने के साफ़ पानी का अभाव, बिजली की कमी, कचरे का जमाव, प्रदूषण की समस्या का आलम यह है कि सरकार के पास न तो इससे निपटने के लिये कोई योजना है, न ही योजना बनाने की तरकीब।
  • विदित हो कि कई शहरों में अंडरग्राउंड नालियों का मानचित्र भी ग़ायब है। सड़क बन जाती है, फिर सीवर के लिये नई सड़कों की खुदाई हो जाती है। सड़क फिर से बनती है और फिर टेलीफोन लाइन के लिये खुदाई शुरू हो जाती है और फिर से सड़क बनाई जाती है। कुछ दिनों बाद बिजली विभाग खुदाई करने पहुँच जाता है। सड़कों का बनना और उसे फिर से बर्बाद करने का चक्र लगातार चलता रहता है। इससे ज़ाहिर होता है कि सरकार के विभागों में न तो कोई सामंजस्य है और न ही कोई समग्र योजना है।
  • हमारे देश में ऐसी किसी नीति का सर्वथा अभाव है जो शहरों की शासन प्रणाली को मज़बूत बना सके। स्थानीय संस्थाओं के पास अधिकार न के बराबर हैं। सुनियोजित योजना के अभाव में शहर के विकास की नींव कमज़ोर पड़ जाती है। शहरों के नियोजन के सन्दर्भ में न तो महापौर को स्वयात्तता प्राप्त है और न ही किसी एक्सपर्ट एजेंसी की सेवाएँ ली जाती हैं।

क्यों महत्त्वपूर्ण है सिंगापुर मॉडल?

  • सिंगापुर का नगरीय विकास इस अवधारणा पर आधारित है कि सिंगापुर एक शहर नहीं बल्कि एक पारिस्थितिकी तंत्र है, जो अपनी ज़रूरतों के हिसाब से स्वयं निश्चित आकार लेता रहता है। सिंगापुर नगरीय योजना में सम्पूर्ण ध्यान शहर में हो रहे बदलाव के प्रबंधन और लोगों की सुख सुविधा के अनुकूल बनाने पर दिया जाता है।इसके विपरीत हमारे भारत में शहरों के विकास में अभी भी अंग्रेज़ों के जमाने में स्थापित मानकों को ध्यान में रखा जाता है जो कि भारतीय शहरों के गिरते स्तर का सबसे बड़ा कारण है।

निष्कर्ष

  • अंग्रेज़ों के जमाने की केंद्रीयकृत प्रणाली स़िर्फ मौजूद ही नहीं है, बल्कि इसके साथ नए-नए नियमों का भँवरजाल बना दिया गया है, जिससे पूरी प्रक्रिया ही उलझ कर रह गई है। अतः हमें अपने शहरों के विकास के लिये एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
  • हमारे शहरों की दुर्गति इसलिये हो रही है, क्योंकि योजना, नीति और नियम बनाने वालों में स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों की हिस्सेदारी नहीं है। अतः स्थानीय लोगों को शहरों के प्रशासन का हिस्सा बनाया जाना चाहिये।
  • एक समस्या देशवासियों के मनोविज्ञान की भी है। हम अपने घरों को तो साफ रखते हैं, लेकिन घर के बाहर फैली गंदगी को नज़रअंदाज़ करने में महारत हासिल कर चुके हैं। अतः आवश्यकता इस बात की भी है कि लोगों को अपने वातावरण को साफ़ रखने के लिये जागरूक किया जाए।
  • हर साल बड़ी संख्या में लोग गाँव छोड़कर शहरों की ओर रोज़गार की तलाश में आते हैं। अतः शहरों में जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिये गाँवों में मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना होगा। आज़ादी के बाद हमने उल्लेखनीय प्रगति की है फिर भी हमें अभी एक लम्बा रास्ता तय करना है।