हाल ही में उत्तर भारत के छह राज्यों ने हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर अपर यमुना बेसिन में बनाए जाने वाले रेणुका बांध को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। रेणुका बांध का मुद्दा विभिन्न कारणों से दो दशकों से अधिक समय से अधर में लटका हुआ है।
दरअसल, हमारे देश में गर्मियों का मौसम अभी आया नहीं होता, लेकिन पानी की उपलब्धता को लेकर योजनाएँ बनने लगती हैं और चिंता जताई जाने लगती हैं। ऐसा हर साल देखने को मिलता है। देश में छोटी-बड़ी नदियों, झीलों और तालाबों आदि में पानी की असमान उपलब्धता की वज़ह से यह समस्या उत्पन्न होती है...और इसके एक संभावित समाधान ने नदियों को आपस में जोड़ने की अवधारणा को जन्म दिया।
भारत में नदी जोड़ो का विचार सर्वप्रथम 1858 में एक ब्रिटिश सिंचाई इंजीनियर सर आर्थर थॉमस कॉटन ने दिया था। लेकिन तब से अब तक इस मुद्दे पर कोई खास प्रगति नहीं हुई है। दरअसल, राज्यों के बीच असहमति, केंद्र की दखलंदाज़ी के लिये किसी कानूनी प्रावधान का न होना और पर्यावरणीय चिंता इसकी राह में कुछ बड़ी बाधाएँ बनकर सामने आती रही हैं। जुलाई 2014 में केंद्र सरकार ने नदियों को आपस में जोड़ने संबंधी विशेष समिति के गठन को मंज़ूरी दी थी।
नदियों को मनुष्यों और अन्य समस्त जीव-जगत की जीवन-रेखा माना जाता है। यह इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि दुनिया की तमाम बड़ी मानव-सभ्यताएँ किसी-न-किसी नदी के किनारे ही विकसित हुईं। सिंचाई और पेयजल का प्रमुख स्रोत नदियाँ ही होती हैं। इसके अलावा, जलमार्गों को परिवहन का सबसे किफायती माध्यम माना जाता है...और नदियों के साथ लाखों लोगों की आजीविका भी जुड़ी रहती है।
हमारे देश में सतह पर मौजूद पानी की कुल मात्रा 690 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष है, लेकिन इसका केवल 65 फीसदी पानी ही इस्तेमाल हो पाता है। शेष पानी बेकार बहकर समुद्र में चला जाता है, लेकिन इससे धरती और महासागरों तथा ताज़े पानी और समुद्र का पारिस्थितिकीय संतुलन बना रहता है।
हालाँकि पानी की उपलब्धता को प्रभावित करने वाले स्थानिक और अस्थायी कारण भी हैं। इसकी वज़ह से भारत में सूखा और बाढ़ जैसे हालात साथ-साथ चलते हैं। ऐसे देश के लिये जहाँ की आबादी के एक बड़े हिस्से को साफ़ पानी उपलब्ध नहीं है, यह स्थिति निश्चित ही चिंतनीय है।
उदाहरण के लिये, गोदावरी नदी के बेसिन की क्षमता प्रतिवर्ष 110 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की है, जबकि कावेरी में यह मात्रा केवल 21 बिलियन क्यूबिक मीटर ही है। ऐसे में गोदावरी नदी के पानी का अधिकतम इस्तेमाल करने के लिये उसका अतिरिक्त पानी कावेरी नदी में डाला जा सकता है।
जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा अगस्त, 1980 में तैयार अंतर-बेसिन जल अंतरण के माध्यम से जल संसाधन विकास के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan) के तहत राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (National Water Development Authority) व्यवहार्यता रिपोर्ट (Feasibility Report) तैयार करने हेतु 30 संपर्कों (प्रायद्वीपीय घटक के तहत 16 और हिमालयी घटक के तहत 14) की पहचान की गई है। इस योजना के अनुसार 30 नहरों के साथ ही 3000 जलाशयों और 34 हज़ार मेगावाट क्षमता वाली विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण कराया जाना है। इसके अतिरिक्त इसके पूरा होने पर 87 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराई जा सकेगी। केन-बेतवा लिंक परियोजना इस वृहद् नदी जोड़ो योजना की ही पहली कड़ी है। लेकिन इस योजना पर आने वाला भारी-भरकम खर्च वहन करना भारत जैसे विकासोन्मुख देश के लिये आसान नहीं है। 2002 के अनुमानों के अनुसार इस योजना पर 123 बिलियन डॉलर लागत आने का अनुमान था। आज 17 वर्ष बाद यह लागत निश्चित ही कई गुना बढ़ गई होगी।
अभी तक केवल केन-बेतवा संपर्क पर ही कुछ काम हुआ है और धरातल पर हुई प्रगति दिखाई भी देती है। यह देश का ऐसा पहला नदी जोड़ो प्रोजेक्ट है जिस पर कुछ प्रगति हुई है। इस नदी संपर्क के तहत केन नदी का अतिरिक्त पानी नहरों के माध्यम से बेतवा नदी में डाला जाना है। इस परियोजना के पूरा हो जाने से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के सूखा प्रभावित क्षेत्रों को लाभ पहुँचेगा और वहाँ सिंचाई, जल-विद्युत और पीने के पानी की उपलब्धता बढ़ेगी।
आपको बता दें कि केन नदी मध्य प्रदेश स्थित कैमूर की पहाड़ियों से निकलती है और 427 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद उत्तर प्रदेश के बांदा में यमुना में मिल जाती है। वहीं बेतवा मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले से निकलती है और 576 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में यमुना में मिल जाती है।
नदी जोड़ो परियोजना एक महत्त्वाकांक्षी और महत्त्वपूर्ण परियोजना है। लेकिन राज्यों के बीच पानी को लेकर जारी विवाद नदियों को जोड़ने की राह में सबसे बड़ी बाधा है। नदियों को आपस में जोड़ना अपने आप में एक बेहद कठिन काम है, पर यह मुश्किल तब और बढ़ जाती है जब संबद्ध राज्य पानी के बँटवारे को लेकर आपस में उलझ जाते हैं। देशभर में लंबे समय से विभिन्न राज्यों के बीच नदियों के जल बँटवारे को लेकर विवाद चल रहे हैं। स्थिति इतनी गंभीर है कि विभिन्न ट्रिब्यूनल्स और सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी इसे सुलझाने में नाकाम रहे हैं। सरकार को चाहिये कि राज्यों से विचार-विमर्श के बाद तुरंत एक ऐसी राष्ट्रीय जल नीति का निर्माण करे, जो भारत में भूजल के अत्यधिक दोहन, जल के बँटवारे से संबंधित विवादों और जल को लेकर पर्यावरणीय एवं सामाजिक चिंताओं का समाधान कर सके। इन सुधारों पर कार्य करने के बाद ही नदी जोड़ो जैसी बेहद खर्चीली परियोजना को अमल में लाया जाना चाहिये।
राष्ट्रीय जल मिशन (National Water Mission) का मुख्य उद्देश्य समेकित जल संसाधन विकास और प्रबंधन के माध्यम से राज्यों के भीतर और बाहर जल का संरक्षण, उसकी न्यूनतम बर्बादी तथा उसका अधिक समान वितरण करना है।
संविधान में पानी को राज्यों का विषय माना गया है, लेकिन जो नदियाँ एक से अधिक राज्यों में बहती हैं, उन्हें राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किये जाने की चर्चा भी समय-समय पर ज़ोर पकड़ती है। सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल विवाद पर अपना अंतिम निर्णय देते हुए कहा भी था कि किसी भी अंतर-राज्यीय नदी का जल राष्ट्रीय संपत्ति है और कोई भी राज्य इन नदियों पर अपना दावा नहीं कर सकता।