ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिये शक्तिशाली उपकरण : “नवीकरणीय ऊर्जा” | 05 Jun 2017

संदर्भ
अक्षय ऊर्जा, नवीकरणीय स्रोतों प्राप्त की जाती है जिनमें सूर्यताप, पवन, जल, ज्वारीय तरंगें, हाइड्रोजन आदि शामिल हैं। REN-21 (Renewable Energy Policy Network for the 21st Century) की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, कुल वैश्विक ऊर्जा खपत में अक्षय ऊर्जा का योगदान 19.2% रहा। बढ़ते वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन को देखते हुए विश्व के सभी देश नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा दे रहे हैं। साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में नए-नए अनुसंधान भी किये जा रहे हैं, ताकि सस्ती एवं सुलभ ‘स्वच्छ ऊर्जा’ को लोगों तक पहुँचाया जा सके।  

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में वर्तमान ट्रेंड्स

  • वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है। 
  • 2016 में पहली बार जीवाश्म ईंधन की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के निवेश में वृद्धि हुई। 
  • सोलर सेल की कीमतों में पिछले सालों की तुलना में कमी देखी गई है। 
  • कई देशों द्वारा थर्मल पावर प्लांट जैसे परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दिया जा रहा है। उदाहरणस्वरूप, भारत ने यह घोषणा की है कि वह 13.7 गीगावाट के थर्मल पॉवर प्लांट के निर्माण को बंद करेगा। टाटा पावर ने पिछले पाँच सालों में किसी भी थर्मल पॉवर प्लांट का निर्माण नहीं किया है।    
  • चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पवन, जल, सौर और जैव ईंधन के क्षेत्र में भारी निवेश किया जा रहा है। 
  • विश्व स्तर पर,  नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग द्वारा लगभग 7.7 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान किया जा रहा है। 
  • नवीकरणीय ऊर्जा, परंपरागत ऊर्जा से सस्ती तथा प्रदूषण रहित होने के कारण हाल के दिनों में लोगों का रुझान इस तरफ बढ़ा है।

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों का विकास

  • फ्रांस के द्वारा ‘फ्लोटोवोल्टिक’ (Floatovoltics) का विकास किया गया है। ‘फ्लोटोवोल्टिक’ पानी पर तैरने वाले सोलर सेल होते हैं, जिनके माध्यम से बिजली उत्पन्न की जाती है। इनके द्वारा आने वाले समय में ऊर्जा की कीमतों में कमी होने की संभावना है। 
  • ‘बाइफेशिअल मॉड्यूल्स’ (Bifacial Module) का भी निर्माण तेज़ी से किया जा रहा है, ताकि सोलर सेल को दोनों तरफ से उपयोग किया जा सके।  ज्ञातव्य है कि अभी सोलर सेल को केवल एक ही तरफ से ऊर्जा उत्पादन के लिये उपयोग किया जा रहा है। 
  • एक ‘पेरोस्काइटस सोलर सेल’ (perovskites) का निर्माण भी किया जा रहा है, जो एक हाइब्रिड कार्बनिक या अकार्बनिक तकनीक पर आधारित है। इस तकनीक को सीसा या टिन द्वारा निर्मित किया जाता है जो वर्तमान में सिलिका से बने सोलर सेल से ज़्यादा कुशल एवं सस्ता है।  
  • जर्मनी ने हाल ही में हाइड्रोजन फ्यूल आधारित ट्रेन का परीक्षण किया है, जो भविष्य में हाइड्रोजन फ्यूल आधारित कार, ट्रक जैसे परिवहन साधनों के परिचालन में मदद करेगा।      
  • एक ऐसे कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का निर्माण किया जा रहा है जो यह बताएगा कि सोलर सेल एक दिन में कितनी ऊर्जा का उत्पादन करेगा।  

क्या लाभ होंगे?

  • ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को कम करने में मदद मिलेगी।  
  • बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय गुणवत्ता को बढ़ावा मिलेगा।  
  • बड़ी मात्रा में और बाधारहित ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी।  
  • इस क्षेत्र में रोज़गार के अवसर उपलब्ध होंगे और अन्य आर्थिक लाभ मिलेंगे।  
  • ऊर्जा की कीमतों में स्थिरता आएगी।  
  • एक अधिक विश्वसनीय और लचीली ऊर्जा प्रणाली का निर्माण हो सकेगा। 

निष्कर्ष
वर्तमान विश्व में औद्योगीकरण और नगरीकरण के कारण ऊर्जा की मांग में काफी बढ़ोतरी हुई है, जिसकी पूर्ति थर्मल, जीवाश्म ईंधन जैसे परंपरागत साधनों से की जा रही है। इन साधनों से जहाँ एक तरफ पर्यावरण प्रदूषण एवं ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या सामने आई है, वहीं दूसरी तरफ बिजली की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए विश्व के तमाम देश नवीकरणीय ऊर्जा के विकास एवं उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। नवीकरणीय ऊर्जा “पेरिस समझौते” के तहत किये गए प्रावधानों को भी प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उल्लेखनीय है कि पेरिस समझौते के तहत यह प्रावधान किया गया है कि वैश्विक तापमान को आने वाले समय में 1.5 डिग्री से अधिक नहीं बढ़ने देना है। अत: यह समय की मांग है कि सभी देश मिलकर ‘पेरिस समझौते’ के आलोक में नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित एक बेहतर रणनीति बनाएँ ताकि विश्व को ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से बचाया जा सके तथा ‘स्वच्छ ऊर्जा’ की प्राप्ति की दिशा में हम आगे बढ़ सकें।