व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी | 29 Oct 2019

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी और भारत के संबंध में इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) के सदस्य देशों ने इससे संबंधित अंतिम मसौदा तैयार करने की समय-सीमा नवंबर 2019 निर्धारित की है। इसके तहत RCEP के प्रमुख समझौतों/संधियों तथा देशों की सदस्यता पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

क्या है RCEP?

  • व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी (RCEP) दुनिया का सबसे बड़ा मुफ्त व्यापार समझौता होगा। इसमें कुल 16 सदस्य देश होंगे जिसमें आसियान के 10 देश तथा 6 अन्य देश भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, जापान तथा दक्षिण कोरिया शामिल होंगे।
  • इन 16 देशों के समूह में दुनिया की आधी आबादी निवास करती है तथा विश्व की कुल जी.डी.पी. में इनकी एक-तिहाई हिस्सेदारी है।
  • इन देशों के मध्य आपसी व्यापार दुनिया के कुल व्यापार का लगभग एक-चौथाई से भी अधिक है।
  • इस समझौते के बारे में देशों के बीच वार्त्ता वर्ष 2012 से ही चल रही है परंतु इस पर अभी तक कोई एकमत होकर निर्णय नहीं लिया गया है।

ट्रांस पेसिफिक साझेदारी पर प्रतिक्रिया

प्रशांत महासागर से संबंधित 12 देशों ने एक आर्थिक साझेदारी हेतु वर्ष 2015 में हस्ताक्षर किये। तत्कालीन समय में इसका नेतृत्व अमेरिका द्वारा किया जा रहा था। इस साझेदारी के अन्य उद्देश्यों के अतिरिक्त चीन की नीतियों के जवाब में प्रशांत महासागर क्षेत्र में अमेरिका अपनी स्थिति को मज़बूत करना चाहता था। इस आधार पर चीन को इस साझेदारी से दूर रखा गया। किंतु यह ध्यान देने योग्य है कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के पश्चात् ट्रंप प्रशासन ने इस समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया। चीन ने TPP के जवाब में हिंद-प्रशांत के देशों को मिलाकर व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी (RCEP) को निर्मित करने का प्रयास किया,यद्यपि इस साझेदारी के लिये वार्ता वर्ष 2012 से ही चल रही है किंतु इसमें तेजी TPP के बाद आई। हालाँकि यह समझना दिलचस्प है कि TPP के चार देश RCEP के भी सदस्य देश हैं, साथ ही TPP का डिपोज़िटरी देश न्यूज़ीलैंड भी RCEP का सदस्य देश है। अमेरिका के TPP से बाहर होने तथा इस समझौते के भागीदार देशों का RCEP में शामिल होने से यह तय हो गया है कि वर्तमान दौर की प्रैग्मेटिक नीति में आर्थिक मुद्दे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

उदारवाद के नाम पर संरक्षणवाद

वैश्वीकरण के दौर में विभिन्न देश आपस में समझौतों को अंजाम दे रहे हैं। इन समझौतों का प्रमुख ध्येय शुल्क एवं गैर-शुल्कीय बाधाओं को दूर करके व्यापार में उत्तरोत्तर वृद्धि करना होता है। किंतु ये समझौते न सिर्फ दो देशों के मध्य बल्कि एक क्षेत्र विशेष से संबंधित देशों के मध्य भी किये जाते हैं। यूरोपीय संघ, आसियान, TPP तथा RCEP इसके प्रमुख उदाहरण के रूप में देखे जा सकते हैं। इस प्रकार के संगठन संयुक्त रूप से एक कॉमन मार्केट का निर्माण करते हैं लेकिन ये सुविधाओं अन्य गैर-सदस्यीय देशों तक विस्तारित नहीं करते हैं। इससे विश्व विभिन्न गुटों में विभाजित होता जा रहा है। इस पर WTO द्वारा भी चिंता व्यक्त की जा चुकी है। कुछ आर्थिक विश्लेषक इसे नवीन संरक्षणवाद के रूप में देखते हैं, जो एक देश के स्थान पर विभिन्न देशों के समूह द्वारा संचालित किया जाता है।

भारत के पक्ष में संभावित लाभ

  • यह समझौता इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार संबंधों को स्थिरता प्रदान करेगा।
  • इसके सहयोगी देशों के मध्य मुफ्त व्यापार समझौता होने से उन्हें परस्पर अपने बाजारों को निवेश तथा व्यापार हेतु खुला रखना होगा।
  • भारतीय उद्योग, विशेषकर आई.टी. तथा सेवा क्षेत्र की कंपनियों को नए बाजार की प्राप्ति होगी। इससे रोज़गार के नए अवसरों का सृजन होगा।

भारत के लिये संभावित चुनौतियाँ

  • चीन तथा अमेरिका के मध्य चल रहे व्यापार युद्ध की स्थिति में भारत का इस समझौते में शामिल होना, यह दर्शाएगा कि भारत, चीन के पक्ष में है।
  • हाल ही में भारत द्वारा अमेरिका के साथ किये जाने वाले द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • वर्तमान में भारत चीन के साथ भारी व्यापार घाटे की स्थिति में है। इसका भारत के घरेलू उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। RCEP के लागू होने के बाद भारत को चीन से होने वाले आयात शुल्क में 80 प्रतिशत की कमी करनी होगी जिससे व्यापार घाटा और बढ़ेगा।
  • इस समझौते के तहत भारत को ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड से 86% तथा आसियान देशों, जापान व दक्षिण कोरिया से 90% आयात शुल्क में कमी करनी होगी।
  • RCEP के तहत भारत की प्रमुख चिंता ई-कॉमर्स कंपनियाँ तथा उनके निवेश से संबंधित है। इसके अनुसार सरकार किसी निवेशकर्त्ता कंपनी को तकनीकी हस्तांतरण के लिये बाध्य नहीं कर सकती। परिणामत: भारतीय कंपनियाँ वैश्विक बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा में पीछे छूट जाएंगी।
  • भारत में निवेश करने वाली विदेशी कंपनियाँ, भारत में उनके शेयरधारकों को उनका लाभांश देने की बजाय अपने मूल देश में धन प्रेषित करेंगी।
  • इस समझौते के अंतर्गत ई-कॉमर्स पर भी चर्चा की जा रही है, यदि यह चर्चा समझौते का हिस्सा बनती है तो इससे भारत के डेटा स्थानीयकरण की योजना पर विराम लग सकता है।

RCEP भारत के लिये कितना आवश्यक?

RCEP एक समझौते के तहत सदस्य देशों के मध्य व्यापार में वृद्धि करने का प्रयास है। इसमें भारत सहित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के 16 देश शामिल हैं। संयुक्त रूप से ये देश विश्व GDP में एक-तिहाई का योगदान करते हैं। वर्तमान में यह समझौता बातचीत के दौर से गुज़र रहा है तथा इसमें व्यापार हेतु एक स्पष्ट कार्यक्रम का निर्माण किया जा रहा है। कुछ आर्थिक जानकारों का मानना है कि भारत के लिये यह समझौता लाभकारी नहीं है। इस समझौते से चीन, जिससे पहले ही भारत अत्यधिक प्रतिकूल व्यापार संतुलन से जूझ रहा है, को और अधिक लाभ प्राप्त होगा। इसके अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देश भारत के डेरी उत्पादों को प्रतिस्थापित कर देंगे। साथ ही अन्य मुद्दे भी हैं जो भारत के घरेलू बाज़ार को हानि पहुँचा सकते हैं। हालाँकि RCEP जैसी साझेदारी से अलग रहना भी भारत के लिये उचित नहीं है क्योंकि यह भारत को एक बड़े बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा से बाहर कर देगा। ध्यान देने योग्य है कि RCEP गैर-सदस्य देशों के लिये समान प्रशुल्क आरोपित करने का प्रावधान करता है।

मेक इन इंडिया और RCEP

यह संभावना व्यक्त की गई है कि RCEP भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है लेकिन उपर्युक्त विचार को लेकर विवाद बना हुआ है। यदि भारत RCEP में शामिल होता है तो उसको चीन, जापान और कोरिया विनिर्मित सस्ते उत्पादों का सामना करना पड़ेगा। वर्तमान में भारत की सप्लाई चेन मैनेजमेंट में कुशलता की कमी के कारण भारत का घरेलू उत्पाद उपर्युक्त देशों का सामना करने में सक्षम नहीं है। मेक इन इंडिया को सफल बनाने के लिये आवश्यक है कि सरकार द्वारा कार्यक्रम को अधिक संरक्षण दिया जाए। RCEP जो कि एक मुक्त व्यापार समझौता है, पर इस कार्यक्रम के अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। भारत को इस ओर भी विचार करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

भारत को RCEP में अंतिम रूप से शामिल होने से पहले देश के विभिन्न उद्योगों तथा उससे संबंधित संस्थाओं के प्रतिनिधियों से बातचीत करनी चाहिये। हमें इस समझौते में व्याप्त संशय को दूर करके एक आम सहमति बनाने की आवश्यकता है। भारत को RCEP के मामले में एक मज़बूत निर्णय लेना होगा। हमारे लिये इस समझौते से दूर रहना या इसमें देर से शामिल होना अलाभकारी होगा क्योंकि भारत प्रारंभ में ही RCEP की नीतियों के निर्माण तथा चर्चा से बाहर हो जाएगा।

प्रश्न: व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी (RCEP) से भारत के घरेलू उद्योगों पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिये।