डोका ला, डोकलाम, डोंगलांग या डोलाम? क्या है भारत-चीन संबंधों में हालिया तनाव का कारण? | 25 Jul 2017

संदर्भ 
पिछले महीने के उत्तरार्द्ध से उत्तर में बटांग ला (Batang La) और दक्षिण में जिमोचेन (Gymochen) के मध्य स्थित भारत की सैन्य चौकी डोका ला के निकट डोलाम पठार पर भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने डटी हुई हैं। दोनों देशों के सैनिकों का यह जमावड़ा तब लगना शुरू हुआ, जब चीनी सैनिकों ने भूटान के क्षेत्र में एक कच्ची सड़क का विस्तार करने पर काम करना शुरू किया, जिसका भारतीय सैनिकों ने विरोध किया। भारत और भूटान का मानना है कि ऐसा करने के पीछे चीन का इरादा दक्षिण में स्थित जमफेरी रिज (Jampheri Ridge) तक पहुँच बनाने का है, जो सामरिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है। चीन की सरकार और वहाँ का सरकार समर्थक मीडिया बस एक ही रट लगाए है कि इस मुद्दे के समाधान के लिये कोई भी बातचीत तब तक नहीं होगी, जब तक भारतीय सैनिक वहाँ से वापस नहीं लौट जाते।

आइये, प्रश्नोत्तर के माध्यम से यह जानने-समझने का प्रयास करते हैं कि सिक्किम के ट्राईजंक्शन पर स्थित यह विवाद क्या है, जिसकी वजह से भारत और चीन के संबंधों में इतना तनाव आ गया है कि चीन बराबर सीधे-सीधे युद्ध की धमकी दिये जा रहा है और भारत भी आँखें तरेरने में पीछे नहीं है। 

1. मामला है क्या? विवाद कहाँ है, डोका ला, डोकलाम, डोंगलांग या डोलाम?

दरअसल, विवादित स्थान डोलाम पठार पर स्थित है, जिसे भारतीय विदेश मंत्रालय और नई दिल्ली स्थित भूटान के दूतावास के बयानों में डोकलाम क्षेत्र कहा गया है। डोलाम पठार और डोकलाम पठार अलग-अलग हैं। डोकलाम पठार को लेकर चीन और भूटान के बीच विवाद है, लेकिन इसकी भारत के साथ कोई संलग्नता नहीं है।  डोकलाम पठार, डोलम पठार के उत्तर-पूर्व में 30 किमी. दूर स्थित है। डोकलाम को चीनी भाषा मेंडेरिन में डोंगलांग कहा जाता है। डोकलाम क्षेत्र कीप (Funnel) के आकार जैसी घाटी के उत्तरी छोर के निकट है, जिसे चुम्बा घाटी कहा जाता है। यह घाटी चीन के तिब्बत क्षेत्र में फैली है और वहाँ इसका विस्तार 54 किमी. चौड़ा है, जबकि मुहाने पर इसकी चौड़ाई केवल 11 किमी. है। यह बटांग ला है, जो गंगटोक के पूर्व में स्थित है। कीप जैसी चुंबी घाटी का आकार अपने सिरे से आधार तक कुल 70 किमी. है।

2. जिस पर इतना विवाद है वह  ट्राईजंक्शन क्या है और कहाँ है?

ट्राईजंक्शन वह बिंदु है, जहाँ भारत (सिक्किम), भूटान और चीन (तिब्बत) की सीमाएं मिलती हैं। यह ट्राईजंक्शन ही वर्तमान विवाद की जड़ है—भारत दावा करता है कि यह बटांग ला है, जबकि चीन का दावा है कि यह दक्षिण में  6.5 किमी. दूर जिमोचेन में है। दोनों के दावे ब्रिटेन और चीन के बीच 1890 में हुई कलकत्ता संधि की प्रतिस्पर्द्धात्मक व्याख्याओं पर आधारित हैं। 2012 में भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों के बीच हुए समझौते के अनुसार दोनों पक्ष तब तक यथास्थिति बनाए रखेंगे, जब तक उनके प्रतिस्पर्द्धी दावे को तीसरे पक्ष (भूटान) से परामर्श कर सुलझा नहीं लिया जाता। पश्चिम बंगाल की सीमा से कोई पक्षी उड़ान भरे तो जिमोचेन तक की दूरी मात्र 20 किमी. है। 

3. तो क्या यह भी वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control-LAC) है?

नहीं, ऐसा नहीं है। चूँकि संरेखण के आधार पर दोनों देशों के बीच सहमति है, इसलिये माना यह जाता है कि सिक्किम क्षेत्र में चीन और भारत के बीच सीमा को लेकर कोई विवाद नहीं है। हालाँकि नक्शे पर सीमा को अंकित करने और जमीन पर इसके सीमांकन का काम शुरू ही नहीं हुआ है।  इसमें तीन क्षेत्र शामिल नहीं है—पूर्वी, मध्य और पश्चिमी—दोनों देश इन्हें विवादित मानते हैं। सिक्किम में 220 किलोमीटर सीमा वास्तविक नियंत्रण रेखा नहीं है, जैसा कि शेष 3,488 किलोमीटर भारत-चीन सीमा के मामले में है।

4. तो फिर डोलाम पठार वस्तुतः कहाँ है?

उत्तर से दक्षिण तक जाने वाले रिज पर स्थित हैं बटांग ला और जिमोचेन और इन दोनों के बीच एक दर्रा है, जिसे डोका ला नाम से जाना जाता है (ला का अर्थ है संकरा पर्वतीय मार्ग)। बटांग ला के पूर्व में मेरुग ला (Merug La) और सिंचे ला (Sinche La) होते हुए अमो चु (Amo Chu) नदी तक एक और रिज चलती है।  इसके बाद यह रिज दक्षिण की ओर अमो चु नदी के साथ-साथ चलती है। ऐसी ही एक रिज जिमोचेन से पूर्व/दक्षिण-पूर्व से अमो चु नदी के साथ चलती है, इसे जमफेरी रिज कहते हैं। ये सभी रिज मिलकर अपने केंद्र के समतल क्षेत्र से लगभग 500 मीटर ऊपर उठकर 89 वर्ग किमी. क्षेत्र को कटोरे की तरह घेरते हैं, जिसे डोलाम पठार कहा जाता है। डोका ला के आधार से टोरसा नाला नामक एक छोटी सी नदी निकलती है और इस पठार से पूर्व की ओर बहती हुई अमो चु नदी में जाकर मिल जाती है।

5. यह वाहनों के चलने योग्य सड़क (Motorable Road) क्या है, जिसे कथित तौर पर बनाने में चीनी लगे हैं?

चुंबी घाटी की ओर जाने वाली मुख्य सड़क चीनी राज्य राजमार्ग संख्या एस-204 है, जो तिब्बत में शिगात्से (Shigatse) से दक्षिण की ओर होती हुई याडोंग (Yadong) तक जाती है, जो नाथु ला के पूर्वोत्तर में स्थित है। याडोंग से एक पक्की डामरयुक्त सड़क चुंबी घटी में भीतर स्थित असं (Asam) तक जाती है। यहाँ से इस सड़क से कई कच्चे हिस्से (Track) निकलते हैं, जिनमें से एक डोका ला के निकट तक आता है। 20 किमी. लंबी यह सड़क  ‘श्रेणी -5 ट्रैक’  के रूप में वर्गीकृत की गई है अर्थात इस पर जीप जैसे छोटे भारवाहक वाहन चलाए जा सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि चीन ने इस सड़क का निर्माण 2003 या 2005 में किया था। भूटान के एक बयान के अनुसार श्रेणी-5 की यह सड़क वाहनों के चलने योग्य है।  20 किमी. लंबी इस सड़क के अंत में एक ऐसा घुमावदार बिंदु आता है, जो इतना चौड़ा है कि वहाँ से बड़े वाहन बैक (Reverse) करके मोड़े जा सकते हैं।  यह घुमावदार बिंदु डोका ला स्थित भारतीय सैन्य चौकी से कुछ ही मीटर दूर है और यहाँ से जिमोचेन केवल साढ़े 3 किमी. और बटांग ला लगभग 3 किमी. दूर रह जाते हैं।

6. क्या चीन के सैनिक यहाँ निगरानी के लिये आते हैं?

चीनी सैन्य निगरानी दल नियमित रूप से असं से श्रेणी-5 की सड़क पर स्थित पर घुमावदार बिंदु तक आते हैं। चीनी चरवाहे अक्सर टोरसा नाला के आसपास देखे जाते हैं। चीनी सैन्य निगरानी दल जमफेरी रिज तक भी आ जाते हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम ही देखने में आता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि न्यायिक सीमा (de jure border) बटांग ला के साथ लगी है, जबकि वास्तविक सीमा (de facto border) डोका ला में है।

7. इस पठार पर जून महीने में क्या हुआ था?

चीनी सैनिकों ने  8 जून को रिज के पूर्वी ढलान में डोका ला से कुछ उत्तर की ओर बने दो स्वयं सहायता बंकरों को नष्ट कर दिया। ये बंकर तकनीकी तौर पर भूटान के क्षेत्र में थे, लेकिन पठार के इस क्षेत्र की सुरक्षा भारतीय सैनिक करते हैं। चीन ने इसी क्षेत्र में 2008 में भी दो स्वयं सहायता बंकरों को नष्ट कर दिया था। इसके बाद 16 जून को उपरोक्त श्रेणी-5 के पथ पर स्थित घुमावदार बिंदु पर 100 लोग 4-5 बुलडोज़रों और अन्य भारी मशीनों के साथ आए और जमफेरी रिज की ओर दक्षिण की तरफ सड़क विस्तार का काम शुरू कर दिया। इस रिज पर भूटान की शाही सेना की चेला चौकी है तथा भारतीय और भूटानी सेना हर महीने जमफेरी रिज पर गश्त करती है। भूटान ने एक बयान में दावा किया कि  चीनी इस रिज पर स्थित उसके ज़ोम्पेलरी सैन्य शिविर तक सड़क निर्माण कर रहे थे।

जब डोलाम पठार पर सड़क निर्माण करने वाले चीनियों के दल ने सर्वेक्षण आदि का काम शुरू किया तो भारतीय सैनिक डोका ला से नीचे उतरे और एक मानव श्रृंखला बनाकर चीनियों को काम करने से रोक दिया। भारतीय सैनिकों ने भारी मशीनों आदि को भी नीचे धकेल दिया, ताकि चीनियों द्वारा किये जा चुके काम को नष्ट किया जा सके। यह भारी मशीनरी उन चित्रों में देखी जा सकती है, जिन्हें चीन के विदेश मंत्रालय ने 29 जून को जारी किया था। अब स्थिति यह बन गई कि भारी मशीनरी वहीं आसपास पड़ी रही और दोनों देशों के सैनिकों ने अपने-अपने तम्बू वहाँ गाड़ लिये। शुरूआती 2-3 दिनों के बाद चीनियों ने दुबारा काम शुरू करने का प्रयास नहीं किया और सैनिक आमने-सामने डटे रहे। एक कमांडिंग अधिकारी के नेतृत्व में 300-350 भारतीय वहाँ डटे हैं और चीनी सैनिक चीन सेना की सीमा रक्षा रेजिमेंट (यूनिट -77694) से हैं।

8. क्या सैनिक ठंड के मौसम में भी वहाँ तैनात रहेंगे?

हाँ, उन्हें कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। चीन और भारत के सैनिक कड़ाके की ठंड में भी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात रहते हैं और इसके अभ्यस्त भी हैं। साजो-सामान की आपूर्ति तथा सैनिकों की आवाजाही कोई बड़ी समस्या नहीं है क्योंकि फिलहाल जहाँ भारतीय सैनिक तैनात हैं वह स्थान डोका ला में भारतीय सैनिकों के तैनाती स्थानों से थोड़ी ही दूरी पर है।

9. सड़क निर्माण रोकने पर भारत इतना अधिक ज़ोर क्यों दे रहा है?

भारत ने यह माना है कि तकनीकी रूप से भारतीय सैनिक चीनियों को जमफेरी तक सड़क विस्तार करने से रोकने के लिये भूटानी क्षेत्र में हैं।  हालाँकि, यह सड़क निर्माण रोकने के लिये भारतीय ट्राईजंक्शन पर उसके दावों के अनुरूप है, लेकिन जमफेरी रिज का सैन्य महत्त्व भारत के मज़बूत रुख का मुख्य कारण है। भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा भी है कि ऐसा कोई भी निर्माण भारत के लिये गंभीर सुरक्षा प्रभावों के साथ यथास्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव का वाहक होगा।

यदि चीन की पहुँच जमफेरी रिज तक हो जाती है तो उसके लिये सिलीगुड़ी कॉरिडोर स्थित ‘चिकन नेक’ तक की दूरी लगभग 50 किलोमीटर तक कम हो जाएगी, फिर भी वह उसके तोपखाने की सीमा के भीतर नहीं आएगा। लेकिन, क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की रक्षात्मक तैनाती के लिये अन्य सुरक्षा निहितार्थ भी भारत की चिंता का कारण हैं।  इसीलिये भारतीय और भूटानी पक्ष 16 जून से पहले की स्थिति बहाल करने पर ज़ोर दे रहे हैं, लेकिन चीन इस बात पर अड़ा हुआ है कि इस मुद्दे पर कोई भी बातचीत तभी संभव हो पाएगी, जब भारत अपने सैनिक वहाँ से वापस बुला लेगा।  

10. क्या संघर्ष बढ़ सकता है?

इसका कूटनीतिक समाधान निकल सकता है, लेकिन दोनों पक्षों के लिये ‘win-win’ अर्थात न हम जीते, न तुम हारे वाली स्थिति अभी दिखाई नहीं दे रही। चीन के बड़बोलेपन ने हालात इतने बिगाड़ दिये हैं कि सम्मानित तरीके से दोनों पक्षों के सैनिकों की वापसी फिलहाल संभव नहीं दिख रही। यद्यपि यह किसी के भी हित में नहीं है, लेकिन मामला लंबा खिंचा तो संघर्ष में वृद्धि को नकारा नहीं जा सकता। फिलहाल सारी उम्मीदें दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक पर टिकी हैं, जिसमें भाग लेने के लिये भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इस महीने के अंत में बीजिंग जाने वाले हैं। 

11. 1890 की चीन-ब्रिटेन संधि क्या है?

चीन ने सिक्किम खंड में सड़क निर्माण को यह कहते हुए उचित ठहराया है कि 1890 में हुई चीन-ब्रिटेन संधि के अनुसार वह क्षेत्र उसकी सीमा में आता है। दरअसल, 17 मार्च, 1890 को ब्रिटिश भारत और चीन ने एक संधि कर तिब्‍बत और सिक्किम के बीच सीमा तय की थी। ग्रेट ब्रिटेन और चीन के बीच हुई इस संधि की वज़ह से उपनिवेशी शाक्तियों को सिक्किम पर नियंत्रण करने का मौका मिल गया था। तत्‍कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन और लेफ्टिनेंट गवर्नर शेंग ताई के बीच हुई संधि का उल्लेख चीनी सरकार ने सिक्किम के नाथू ला के पास चल रहे सैन्‍य गतिरोध के संदर्भ में किया है। 

चीन ने इस संधि के पहले अनुच्‍छेद का उल्लेख किया है जिसके अनुसार ”सिक्किम और तिब्‍बत के बीच की सीमा उन पहाड़ियों की चोटियां होंगी, जो कि सिक्किम में तीस्‍ता नदी में बह रहे पानी को तिब्‍बत की मोचू और उत्‍तर में तिब्‍बत की अन्‍य नदियों से अलग करता है। यह सीमांकन भूटान सीमा पर माउंट गिपमोची से शुरू होता है और इस पानी के बंटवारे से होते हुए नेपाल सीमा से जा मिलता है।” दूसरे अनुच्‍छेद में सिक्किम पर ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण पर सहमति बनी। इसमें कहा गया, ”यह माना जाता है कि ब्रिटिश सरकार, जिसकी सिक्किम राज्‍य पर सत्‍ता यहाँ स्‍वीकार की जाती है, का राज्‍य के आंतरिक प्रशासन और विदेशी संबंधों पर एकाधिकारी नियंत्रण होगा। ब्रिटिश सरकार की अनुमति के बिना, राज्‍य का कोई शासक, न ही उसका कोई अधिकारी किसी और देश के साथ, औपचारिक या अनौपचारिक संबंध नहीं रखेगा।”

चीन और आज़ादी के बाद भारत ने इस संधि और सीमांकन का पालन किया। ऐसी स्थिति तब तक चलती रही, जब तक 1975 में सिक्किम भारत का एक राज्‍य नहीं बन गया।