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भारत में ‘रैग-पिकर्स’ | 07 Mar 2022 | सामाजिक न्याय

यह एडिटोरियल 05/03/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Wheels of Swachh Bharat” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में कूड़ा-कचरा बीनने वालों (Rag-Pickers) के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

दशकों से कचरा बीनने वाले या ‘रैग-पिकर्स’ (Rag-Pickers) खतरनाक एवं अस्वच्छ परिस्थितियों में कार्य करते हुए हमारी फेंकी हुई चीज़ों से अपनी आजीविका कमाते रहे हैं। वे एक पिरामिड के आधार का निर्माण करते हैं जहाँ कबाड़ी या स्क्रैप डीलर, एग्रीगेटर और री-प्रोसेसर जैसे अन्य घटक शामिल होते हैं। दुर्भाग्य से अधिकांश अनौपचारिक कचरा बीनने वाले तंत्र में अदृश्य बने रहते हैं। भारत में उनकी संख्या 1.5 मिलियन से 4 मिलियन तक है और वे किसी सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा, न्यूनतम मज़दूरी या बुनियादी सुरक्षात्मक साधनों के बिना ही कार्यरत हैं। चूँकि भारत सतत् विकास के लिये एजेंडा-2030 की पूर्ति की दिशा में आगे बढ़ रहा है, ‘सफाई करने वाले साथियों’ की दुर्दशा एक महत्त्वपूर्ण विषय है जहाँ उनके समक्ष विद्यमान चुनौतियों को दूर करने के लिये प्रयासों को तेज़ करने की आवश्यकता है।

भारत में कचरा बीनने वालों की स्थिति:

रैग-पिकर्स के उत्थान के राह की बाधाएँ 

आगे की राह

अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत सतत् विकास लक्ष्यों को साकार करने की दिशा में दृढ़ प्रयास कर रहा है, लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति तब तक नहीं होगी जब तक कि भारत में कचरा बीनने वाले जैसे श्रमिकों की बदतर कार्य परिस्थितियों को संबोधित नहीं किया जाएगा।’’ टिप्पणी कीजिये।