क्वाड समूह और वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका | 03 Nov 2020

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में क्वाड समूह और वैश्विक राजनीति में हो रहे हालिया बदलावों व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:  

बंगाल की खाड़ी में 3 नवंबर, 2020 से शुरू हो रहे मलाबार नौसैनिक अभ्यास के पहले चरण में ऑस्ट्रेलिया के शामिल होने के साथ क्वाड (QUAD) समूह हिंद-प्रशांत क्षेत्र की भू-राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक बनकर उभरा है। हालाँकि इस सैन्य अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने का निर्णय अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यकाल के अंतिम सप्ताह में आया है परंतु  इस समूह में शामिल चारों देशों के बीच मज़बूत संस्थागत प्रतिबद्धताओं को देखकर यह स्पष्ट है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव परिणामों के इस समूह के दृष्टिकोण को प्रभावित करने की संभावनाएँ लगभग शून्य ही हैं। अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल (डेमोक्रैट और रिपब्लिकन) विश्व के विभिन्न हिस्सों में उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये वर्तमान वैश्विक संरचनाओं में बदलाव पर सहमति रखते हैं। वर्तमान में सबसे बड़ा प्रश्न क्वाड के अस्तित्त्व की बजाय आने वाले समय में स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गटबंधन की एक विस्तृत शृंखला स्थापित कर उपलब्ध संभावनाओं का लाभ उठाने में भारत की क्षमता के संदर्भ में है।     

पृष्ठभूमि:  

  • स्वतंत्रता के बाद से ही भारत  वैश्विक प्रणाली में बड़े बदलाए का समर्थक रहा है, परंतु लंबे समय तक भारत की अपेक्षाओं और वैश्विक राजनीति पर इसके प्रभाव में एक बड़ा अंतर रहा। 
  • भारत अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ आदर्शवादी नीति का समर्थक रहा परंतु शीत युद्ध ने शीघ्र ही इसे समाप्त कर दिया।  
  • वर्ष 1970 के दशक में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non Aligned Movement-NAM) के नेता के रूप में भारत द्वारा ‘नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था’ के विचार को अपनाया गया जिसके परिणाम बहुत ही सीमित रहे। 
  • शीत युद्ध के बाद भारत के दृष्टिकोण में एक बार पुनः बदलाव देखने को मिला, सोवियत संघ के विघटन के बाद एक ध्रुवीय व्यवस्था, भूमंडलीकरण के पक्ष में वाशिंगटन सहमति (Washington Consensus) का उदय हुआ।
  •  इसी दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट हुई जिसके बाद भारत ने राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को पीछे छोड़ आर्थिक सुधार और अपने आंतरिक मुद्दों में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप को कम करने पर ध्यान देने को अधिक प्राथमिकता दी।
  • हालाँकि उस समय विकास की गति में वृद्धि के लिये पश्चिमी देशों के साथ सहयोग बढ़ाया जाना बहुत ज़रूरी था परंतु परमाणु कार्यक्रम और कश्मीर मुद्दे पर अमेरिकी विरोध के भय से भारत ने अमेरिका को नियंत्रित करने और एक बहु-ध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था की स्थापना के उद्देश्य रूस तथा चीन का समर्थन किया, जिसके बाद ब्रिक्स (BRICS) समूह का गठन हुआ। 
  • अमेरिकी राष्ट्रपति जाॅर्ज बुश के कार्यकाल के दौरान जहाँ कश्मीर और परमाणु मुद्दे पर अमेरिका के रुख में बदलाव देखने को मिला, वहीं ये दोनों मुद्दे भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव का प्रमुख कारण बन गए।  
  • भारत को यह भी पता चल गया है कि चीन पर नियंत्रण करना ब्रिक्स समूह के लिये असंभव है। ऐसे में जैसे-जैसे भारत एक बहु-ध्रुवीय एशिया की स्थापना पर अपना ध्यान मज़बूत कर रहा है, वैसे ही एशिया में एक स्थिर शक्ति संतुलन स्थापित करने में क्वाड की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। 

क्वाड और मालाबार का संक्षिप्त परिचय:      

  • क्वाड समूह की शुरुआत दिसंबर 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद राहत कार्यों के लिये गठित ‘सुनामी कोर ग्रुप’ से जोड़कर देखी जाती है, जिसमें इस समूह के चारों देशों ने मिलकर राहत कार्यों में योगदान दिया था। 
  • क्वाड की अवधारणा औपचारिक रूप से सबसे पहले वर्ष 2007  में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे द्वारा प्रस्तुत की गई थी, हालाँकि चीन के दबाव में ऑस्ट्रेलिया के पीछे हटने से इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका।
  • वर्ष 2012 में शिंज़ो आबे द्वारा हिंद महासागर से प्रशांत महासागर तक समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका को शामिल करते हुए एक ‘डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड’ (Democratic Security Diamond) स्थापित करने का विचार प्रस्तुत किया गया।  
  • नवंबर 2017 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को किसी बाहरी शक्ति (विशेषकर चीन) के प्रभाव से मुक्त रखने हेतु नई रणनीति बनाने के लिये ‘क्वाड’ समूह की स्थापना की और आसियान शिखर सम्मेलन के एक दिन पहले इसकी पहली बैठक का आयोजन किया गया।  
  • मालाबार: मालाबार नौसैनिक अभ्यास भारत-अमेरिका-जापान की नौसेनाओं के बीच वार्षिक रूप से आयोजित किया जाने वाला एक त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास है।   
  • मालाबार नौसैनिक अभ्यास की शुरुआत भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 1992 में एक द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास के रूप में हुई थी।
  • वर्ष 2015 में इस अभ्यास में जापान के शामिल होने के बाद से यह एक त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास बन गया।  
  • ऑस्ट्रेलिया के इस सैन्य अभ्यास में शामिल होने के बाद यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में क्वाड समूह की क्षमता में वृद्धि करेगा।   

वैश्विक राजनीति में हालिया बदलाव:  

  • हाल के वर्षों में वैश्विक राजनीति में भारत की स्थिति में मज़बूती के साथ आर्थिक वैश्वीकरण पर विश्व की बड़ी शक्तियों में मतभेद और अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के साथ विश्व व्यवस्था में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं।   
  • पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण एशिया में चीन की आक्रामकता में वृद्धि और विश्व के विभिन्न हिस्सों में  चीन द्वारा  बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (BRI) तथा अपने सैन्य अड्डों की स्थापना के ज़रिये अपनी शक्ति में विस्तार के प्रयासों ने भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों के लिये एक नई चुनौती उत्पन्न की है।    
  • द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् स्थापित अमेरिकी नेतृत्त्व वाली वैश्विक व्यवस्था को कमज़ोर करने के प्रयासों में चीन की आक्रामकता को देखते हुए अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने वैश्विक संस्थानों में बड़े बदलाव पर सहमति व्यक्त की है
  • इसी विचार के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में G-7 समूह  का विस्तार करते हुए ऑस्ट्रेलिया, भारत, रूस और दक्षिण कोरिया को इस समूह में शामिल करने का प्रस्ताव रखा था।      
  • पिछले कुछ महीनों में अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक ‘क्लीन नेटवर्क’ (Clean Network) की पहल पर विशेष ज़ोर दिया है, जिसके तहत दूर संचार प्रणाली, डिज़िटल एप, समुद्री केबल और क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर से अविश्वसनीय सेवाप्रदाताओं को बाहर करने की बात कही गई है।
  • इसकी शुरुआत चीनी दूरसंचार कंपनी हुवेई (Huawei) जैसे आपूर्तिकर्त्ताओं पर कार्रवाई के साथ हुई परंतु वर्तमान में यह समान विचारधारा वाले देशों के बीच सुरक्षित प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये एक व्यापक प्रयास के रूप में उभरा है

बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत और क्वाड की भूमिका:     

  • भारत दक्षिण एशिया में एक बड़ा बाज़ार होने के साथ हाल के वर्षों में स्वास्थ्य, रक्षा और प्रौद्योगिकी जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में एक बड़ी शक्ति बनकर उभरा है। 
  • अमेरिका क्वाड की संभावनाओं को रक्षा सहयोग से आगे भी देखता है, इसी माह ‘फाइव आइज़’ (Five Eyes) नामक सूचना गठबंधन में भारत को शामिल करने के प्रस्ताव को इसके एक उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है।
  • हाल ही में अमेरिका के प्रस्ताव पर COVID-19 महामारी से निपटने हेतु समन्वित प्रयासों के लिये ‘क्वाड प्लस (Quad Plus) संवाद ‘ (ब्राज़ील, इज़रायल, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और वियतनाम को शामिल करते हुए) की शुरुआत  की गई।    
  • ब्रिटेन द्वारा भारत सहित विश्व के 10 लोकतांत्रिक देशों के साथ मिलकर एक गठबंधन बनाने पर विचार किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य चीन पर निर्भरता को कम करते हुए इन देशों के योगदान से एक सुरक्षित 5जी (5G) नेटवर्क का निर्माण करना है।     
  • भारत द्वारा चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिये जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर मज़बूत आपूर्ति शृंखला को विकसित करने पर कार्य किया जा रहा है।

भारत के लिये क्वाड का महत्त्व:  

  • भारत के अन्य सीमा विवादों (पाकिस्तान और चीन के संदर्भ में) की अनिश्चितता के विपरीत हिंद महासागर में भारत क्वाड सदस्यों के साथ मिलकर एक नई व्यवस्था स्थापित कर सकता है।
  • वैश्विक व्यापार की दृष्टि से हिंद महासागर का समुद्री मार्ग चीन के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, ऐसे में इस क्षेत्र में क्वाड का सहयोग भारत को एक रणनीतिक बढ़त प्रदान करेगा। इसका उपयोग भारत इस क्षेत्र की शांति के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिये कर सकेगा।
  • पिछले कुछ वर्षों में हिंद-प्रशांत के संदर्भ में विश्व के अनेक देशों की सक्रियता बढ़ी है, ध्यातव्य है कि हाल ही में फ्राँस  और जर्मनी आदि देशों ने अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति जारी की है।
  • हिंद-प्रशांत के केंद्र में रहते हुए भारत इन प्रयासों के साथ मानवीय सहायता, आपदा प्रबंधन, समुद्री निगरानी और क्षेत्र के कमज़ोर देशों में अवसंरचना से जुड़ी साझा पहलों की शुरुआत कर वैश्विक राजनीति में अपनी स्थिति को मज़बूत कर सकता है।

चुनौतियाँ:

  • स्पष्ट रणनीतिक दृष्टिकोण का अभाव: क्वाड में शामिल सभी सदस्यों के बीच हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्त्व और इसकी सुरक्षा के प्रति विचारों में समानता होने के बावज़ूद इस साझेदारी में एक स्पष्ट रणनीतिक दृष्टिकोण का अभाव दिखाई देता है।
  • चीन का हस्तक्षेप: चीन द्वारा क्वाड समूह को दक्षिण एशिया के नाटो (NATO) के रूप में संबोधित किया जाता है, चीन का आरोप है कि यह समूह उसे घेरने के लिये स्थापित एक चतुष्पक्षीय सैन्य गठबंधन है जो क्षेत्र की स्थिरता के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है।
  • इसके विपरीत हाल के वर्षों में क्षेत्र में चीन की आक्रामकता में वृद्धि के साथ उसने वर्ष 2016 में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और तजाकिस्तान के साथ मिलकर एक ‘चतुर्भुज सहयोग और समन्वय तंत्र’ की स्थापना की है। साथ ही उसने इस वर्ष भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल के साथ मिलकर एक अन्य साझेदारी की स्थापना की, जो इस क्षेत्र की शांति के लिये एक बड़ी चुनौती बन सकता है।    
  • समन्वय: क्वाड देशों के बीच इस समूह के लक्ष्य को लेकर मतभेद दिखाई देता है, अमेरिका जहाँ चीन के खिलाफ खुलकर सामने आया है, वहीं भारत और जापान इस मामले में अधिक मुखर नहीं रहे, जबकि ऑस्ट्रेलिया पूर्व में चीन के दबाव में एक बार इस समूह को छोड़ चुका है।   

आगे की राह:

  • क्वाड देशों को क्षेत्र की शांति और स्थिरता के संदर्भ में समूह के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने तथा क्षेत्र के अन्य देशों के बीच इसकी भूमिका और लक्ष्यों के संदर्भ में चीन द्वारा स्थापित मतभेदों को दूर करने का प्रयास करना चाहिये। 
  • हिंद- प्रशांत क्षेत्र में भारत की कई अन्य देशों के साथ मज़बूत साझेदारी है, ऐसे में भारत द्वारा समान विचारधारा वाले अन्य देशों को इस समूह में शामिल करने की पहल की जानी चाहिये। 
  • स्वतंत्रता के बाद से ही भारतीय रक्षा नीति पूरी तरह थल शक्ति पर केंद्रित रही है, हालाँकि इसके बहुत बड़ा लाभ नहीं मिला है, ऐसे में यह सही समय है कि भारत को अपनी नौसैनिक शक्ति के विस्तार पर विचार करना चाहिये। 
  • वर्तमान में वैश्विक व्यवस्था में बदलाव के लिये उठी यह मांग रक्षा क्षेत्र तक ही सीमित नहीं दिखाई देती, उदाहरण के लिये अमेरिका की ‘बाय अमेरिकन’ (Buy American) और भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’  नीति इस बात का संकेत है कि शीघ्र ही वैश्विक व्यापार के नियमों में भी बड़े बदलाव की आवश्यकता होगी।
  • पूर्व के विपरीत वर्तमान में भारत के पास संसाधन, राजनीतिक इच्छाशक्ति और रणनीतिक बढ़त का एक महत्त्वपूर्ण अवसर भी है, ऐसे में वैश्विक व्यवस्था में बदलाव के लिये उसे आगे बढ़कर सामने आना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न:  मालाबार नौसैनिक अभ्यास में भारत द्वारा ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित किया जाना  हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ-साथ बदलती वैश्विक व्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभाने हेतु भारत की मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति को दर्शाता है। चर्चा कीजिये।