पृथ्वी के तापमान में असंतुलित परिवर्तन | 25 Aug 2018

संदर्भ

हाल ही में किये गए अध्ययनों में पाया गया है कि ग्रह धीरे-धीरे अपने तापमान में एक अपरिवर्तनीय परिवर्तन का अनुभव कर रहा है जो लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी अपने तापमान में संतुलन के साथ ही विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों के अस्तित्व को भी बनाए रखती है। हालाँकि, होलोसीन के स्थिर युग में मानव की उपस्थिति ने इस संतुलन को लगातार प्रभावित किया है। सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन इस ग्रह को “चरमावस्था”/"टिपिंग प्वाइंट" की ओर धकेल रहे हैं और यह एक ऐसा बिंदु है जिसके बाद हमारा ग्रह एक सीमा के बाद तापमान को स्थिर रखने में सक्षम नहीं होगा।

मानव का पृथ्वी के संतुलन पर प्रभाव

  • पृथ्वी सकारात्मक और नकारात्मक प्रतिक्रियाओं को संतुलित करके अपने संतुलन को बनाए रखती है।
  • सकारात्मक प्रतिक्रिया पारिस्थितिकी तंत्र के परिवर्तन में और इजाफा करती है। इसे ग्रीनलैंड की बर्फ के पिघलने के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ पिघला हुआ पानी सूरज की रोशनी को अवशोषित करता है और पुनः बर्फ के पिघलने का कारण बनता है।
  • वहीं दूसरी तरफ, नकारात्मक प्रतिक्रिया को वायुमंडल में CO2 की वृद्धि के बाद होने वाले रासायनिक अपक्षय के रूप में देखा जा सकता है।
  • जब सकारात्मक प्रतिक्रिया नकारात्मक प्रतिक्रिया की तुलना में मज़बूत हो जाती है, तो प्रणाली में अचानक परिवर्तन हो सकता है और यह संतुलन के दायरे से बाहर निकल सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन में वृद्धि या कमी की प्रक्रिया पृथ्वी के जीवमंडल के संतुलन को प्रभावित करती है।
  • वर्तमान युग जिसे एंथ्रोपोसिन युग के नाम से जाना जाता है, मानव प्रभाव के कारण पृथ्वी की भौगोलिक प्रणाली में परिवर्तन को देख रहा है।
  • मानव सक्रिय रूप से जीवाश्म ईंधन और वनों की कटाई को प्रोत्साहन दे रहा है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि हुई है और अब यह जलवायु परिवर्तन का कारण भी बन रहा हैं तथा यह प्रक्रिया पृथ्वी की संपूर्ण प्रणाली को चरमावस्था/टिपिंग पॉइंट की ओर धकेल रही है।

चरमावस्था/टिपिंग पॉइंट क्या है?

  • एक टिपिंग पॉइंट एक भौगोलिक थ्रेसहोल्ड है, जिसके आगे प्रणाली एक स्थिर स्थिति से दूसरी स्थिति में स्थानांतरित हो जाती है।
  • शोधकर्त्ताओं ने तर्क दिया है कि अगले दशक के अपनाई गई प्रौद्योगिकियों की प्रवृत्ति और निर्णय क्षेत्रीय टिपिंग पॉइंट्स पर अत्यधिक प्रभाव डाल सकते हैं, जो बदले में ग्रह को “ऊष्मा गृह” के रूप में परिवर्तित करने वाले पारिस्थितिक तंत्र को अपरिवर्तनीय रूप से बाधित कर सकता है।
  • जंगल की आग के कारण अमेज़ॅन वन का विनाश, जलवायु परिवर्तन से मोटी बर्फ की परतों का क्षय, महासागरों द्वारा CO2 का कम अवशोषण या ध्रुवीय बर्फ चोटियों का पिघलना आदि को क्षेत्रीय टिपिंग पॉइंट्स के विभिन्न उदाहरणों के रूप में देखा जा सकता है, जो संपूर्ण पृथ्वी की प्रक्रिया को संतुलित करते हैं।

आगे की राह 

  • यहाँ तक कि यदि वर्ष 2015 के पेरिस समझौता को लागू किया जाए और जलवायु परिवर्तन को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जाए, तब भी पृथ्वी का “ऊष्मा गृह” में परिवर्तित होने का जोखिम अपरिहार्य हो सकता है।
  • ग्रह के स्थायित्त्व हेतु सुदृढ़ और सतत कार्रवाई को पहचाने जाने की ज़रूरत है जो पृथ्वी की संपूर्ण प्रणाली को सुरक्षित रखने में उपयोगी हो।
  • ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना और कार्बन सिंक को बढ़ावा देना तथा उन नवाचारों को बढ़ावा देना जिससे सौर विकिरण को ऊर्जा में बदला जा सके, के माध्यम से कार्बनडाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
  • ये सभी बुनियादी ढाँचे, सामाजिक और संस्थागत परिवर्तनों के अलावा, गर्म परिस्थितियों में अनुकूलन समय की आवश्यकता है।
  • ऊर्जा दक्षता में सुधार के साथ तकनीकी नवाचार, व्यवहार, मूल्यों और शासन में प्रमुख परिवर्तन से ग्रह के “ऊष्मा गृह” में परिवर्तित होने से बचने की उम्मीद है।