बालाकोट के बाद की चुनौतियाँ | 13 Mar 2019

संदर्भ

पुलवामा में केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल (CRPF) के 40 जवानों की शहादत के दो सप्ताह के अंदर जिस तरह बालाकोट में हवाई ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की गई, उसे गौर से देखना-समझना होगा। भारत सरकार ने उड़ी हमले के बाद से तय कर रखा था कि अब आतंकवादी हमले के जवाब में भारत केवल कूटनीतिक स्तर पर विरोध दर्ज नहीं करवाएगा। हमले का जवाब हमला होगा...और बालाकोट इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। पुलवामा हमले और उसके बाद घटी घटनाओं के मदेनज़र भारत में पाकिस्तान के साथ संबंधों पर फिर से विचार करने की बात जोर पकड़ गई है। भारत-पाकिस्तान के बीच संबंध न केवल भारत के वैदेशिक हित से जुड़े हैं, बल्कि इनसे देश की राजनीति और सामाजिक समीकरण भी प्रभावित होते हैं। पुलवामा आतंकी हमले और भारत द्वारा की गई कार्रवाई के बाद मचे होहल्ले में मूल समस्या जैसे कहीं दब गई। मूल समस्या यानी आतंकवाद से कैसे निपटा जाए?

आतंक का लॉन्च पैड है पाकिस्तान

  • पाकिस्तान ने हमेशा इस बात से इनकार किया है कि आतंकवाद की वज़ह से क्षेत्र में होने वाली अस्थिरता में उसकी किसी भी तरह की कोई भागीदारी है या वह आतंकवाद की एक सुरक्षित पनाहगाह के रूप में काम कर रहा है।
  • हालाँकि पाकिस्तान जैश-ए-मोहम्मद, जमात-उद-दावा जैसे आतंकवादी संगठनों के लिये एक सुरक्षित ठिकाना बना हुआ है और वहाँ इनकी गतिविधियाँ बेरोकटोक जारी हैं।
  • पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों ने 2001 के संसद हमले, 26/11 के मुंबई हमले और 2016 के उड़ी हमले से लेकर पुलवामा हमले तक भारतीय सरज़मीं पर कई हमले किये हैं।

आतंकी हमलों को लेकर अपनी ज़िम्मेदारी से दूर भागने के पाकिस्तानी रवैये को देखते हुए भारत ने पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाने का प्रयास किया है। इसके लिये अंतर्राष्ट्रीय जगत के साथ-साथ पाकिस्तानी सरकार को जहाँ कहीं भी आवश्यक समझा गया, सबूत उपलब्ध कराए गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय जगत भी यह मानता है कि पाकिस्तान उन आतंकवादी समूहों को पनाह देता है, जो भारत के खिलाफ काम करते हैं। चाहे पाकिस्तानी सरकार उन्हें सुविधा दे या नहीं।

भारत की पारंपरिक प्रतिक्रिया

  • अब तक किसी भी आतंकी हमले के बाद भारत की प्रतिक्रया सामान्यतः रक्षात्मक रही है।
  • इससे भारतीय भावना को लगी ठेस को अक्सर कूटनीति और राजनीतिक प्रबंधन के ज़रिये शांत कर दिया जाता रहा है।
  • भारत सहयोग को बढ़ावा देने, लंबित मुद्दों को हल करने और मानवीय चिंताओं के मद्देनज़र समग्र वार्ता का सहारा लेता रहा है।
  • भारत की पारंपरिक सैन्य शक्ति में वृद्धि करने का कोई भी प्रयास पाकिस्तान के परमाणु खतरे के कारण सिरे नहीं चढ़ पाता।
  • भारत सरकार ने कभी भी आतंकवाद की समस्या को रणनीतिक चुनौती नहीं माना और इसे सीमा पार से घुसपैठ के दृष्टिकोण से ही देखा है।
  • पाकिस्तान से MFN का दर्जा वापस लेने, विभिन्न खेलों में टीमों को वीज़ा देने से इनकार करने और सिंधु जल संधि के तहत पूर्वी नदियों के सारे पानी का उपयोग करने के फैसले से भी पाकिस्तानी रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।

भारत की रणनीति में बदलाव

  • उड़ी हमले के बाद भारत की रणनीति में सबसे बड़ा जो बदलाव देखने को मिला वह है पाकिस्तानी आतंक के जवाब में की गई सर्जिकल स्ट्राइक।

पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के ठिकाने यानी लॉन्च पैड्स को नष्ट करने के लिये पाकिस्तान नियंत्रित क्षेत्र में भारतीय सैन्य कार्रवाई को एक बड़ी रणनीतिक जीत के रूप में देखा गया। इससे एक और फायदा यह हुआ कि पाकिस्तान को हमेशा की तरह यह कहने का मौक़ा ही नहीं मिला कि इसमें उसका कोई हाथ नहीं है। इससे सैन्य तनाव की आशंका भी कम हो गई।

  • भारत ने पाकिस्तान के परमाणु शक्ति संपन्न होने के मद्देनज़र पूर्व में बरता जाने वाला संयम त्याग दिया और यह मान लिया कि पाकिस्तान को सबक सिखाना ही होगा।
  • बालाकोट में भारतीय वायुसेना द्वारा किया गया हवाई हमला विदेशी धरती से भारत के खिलाफ चलाए जाने वाले किसी भी आतंकी शिविर को खत्म करने के भारत के संकल्प की अगली कड़ी है।
  • यह हवाई हमला न केवल LOC को पार करके किया गया, बल्कि इसके लिये पाकिस्तान की मुख्य भूमि में प्रवेश करना पड़ा। यह क्षेत्र LOC से लगभग 50 किमी. और उड़ी से 81 किमी. दूर है।
  • भारत ने इन हवाई हमलों को आतंक के खिलाफ की गई कार्रवाई बताते हुए स्पष्ट किया कि यह पाकिस्तान के किसी सैन्य ठिकाने या उसके नागरिकों को लक्षित करके किया गया हमला नहीं था। 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद यह पहली बार था जब भारतीय वायुसेना ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार की। साथ की यह भी पहली बार हुआ जब एक परमाणु शक्ति संपन्न देश की वायुसेना ने दूसरे परमाणु शक्ति संपन्न देश की सीमा के भीतर जाकर पारंपरिक तरीके से बमबारी की।

चीन भी है चिंतित और परेशान

भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव से चीन भी परेशान नज़र आ रहा है। कारण स्पष्ट है कि दोनों देशों से उसके बड़े आर्थिक हित जुड़े हैं। एक तरफ जहाँ पाकिस्तान में उसकी सबसे बड़ी चीन-पाक आर्थिक गलियारा परियोजना चल रही है, वहीं भारत भी चीन के लिये एक बड़ा बाजार है। इसीलिये चीन ने दोनों देशों से तनाव को खत्म करने की अपील की और इस संकट को एक अच्छे अवसर में बदल कर नई पहल करने का आह्वान किया। पहली नज़र में देखने पर चीन की यह नसीहत वाकई अच्छी प्रतीत होती है और कोई भी इससे इनकार नहीं करेगा कि भारत और पाकिस्तान को रिश्तों के नए युग की शुरुआत करनी चाहिये। लेकिन इसमें चीन की गहरी कूटनीतिक चाल भी साफ नज़र आती है। चीन भी जानता है कि भारत में अब तक जितने बड़े आतंकी हमले हुए हैं, उन सबके पीछे जैश-ए- मोहम्मद का हाथ रहा है, लेकिन जैश सरगना मसूद अज़हर को वह आतंकी तक नहीं मानता। मसूद अज़हर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने और उस पर प्रतिबंध लगाने की जितनी भी कोशिशें संयुक्त राष्ट्र में अब तक नाकाम हुर्इं, वे चीन की वज़ह से ही हुर्इं। चीन ने ऐसे हर प्रस्ताव को वीटो किया जिसमें मसूद अज़हर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने की बात कही गई थी।

क्या हैं चुनौतियाँ?

  • अपने पारंपरिक अतीत से पीछा छुड़ाने के बावजूद यह स्पष्ट नहीं है कि भारत का यह नया नज़रिया एक परमाणु शक्ति संपन्न देश के साथ इस प्रकार के हमले के प्रभाव को समझने के लिये भली-भाँति परिभाषित किया गया है।
  • भारत को पूर्ण पारंपरिक युद्ध की संभावना को कम करके नहीं आँकना चाहिये और सैन्य स्तर कोई कार्रवाई करने से पहले तार्किक आधार पर हालातों को परखना चाहिये।
  • काउंटर एयर स्ट्राइक के माध्यम से तत्काल मिला पाकिस्तानी जवाब ऐसे उपायों के इस्तेमाल को चुनौती देता है।
  • वैश्विक जगत से अनुकूल चौतरफा प्रतिक्रिया मिलने के बावजूद भारत के पड़ोसी चीन ने आतंक के मुद्दे पर किसी राष्ट्र की संप्रभुता के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए लगभग चुप्पी साध रखी है।
  • अक्सर अंतर्राष्ट्रीय दबाव पड़ने पर पाकिस्तान आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने जैसे छोटे-मोटे कदम उठाता है, लेकिन ये संगठन अपना नाम बदलकर अपना काम (आतंकी गतिविधियों को हवा देना) जारी रखते हैं और इन्हें विदेश से धन प्राप्त होता रहता है।

आगे की राह

  • सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद को समाप्त करने के लिये भारत को इस मुद्दे को रणनीतिक चुनौती के रूप में लेना होगा और दीर्घावधि में राष्ट्रीय शक्ति (National Power) के सभी तत्त्वों का निरंतर उपयोग करना होगा।
  • भारत को आतंकवाद के खिलाफ अपनाई गई अपनी हालिया सक्रिय नीति को जारी रखना चाहिये, क्योंकि भारत के गुस्से को शांत करने के लिये पाकिस्तान द्वारा उठाए गए पिछले सभी उपाय नाकाफी रहे हैं और पाकिस्तान ने आंतंकवाद के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की है।
  • भारत को पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाना चाहिये और इन आतंकी संगठनों को होने वाले वित्त पोषण पर लगाम लगाना सुनिश्चित करना चाहिये।
  • भारत को आतंकवाद के प्रति अपनी नीति को लेकर स्पष्ट होना चाहिये और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी इसकी जानकारी देनी चाहिये कि विदेशी (पाकिस्तानी) धरती से अपने खिलाफ होने वाले आतंकवाद को वह और बर्दाश्त करने के लिये तैयार नहीं है।
  • इसके अलावा, भारत को पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करना चाहिये और अपने हितों को सुरक्षित करने के लिये इनमें यथोचित बदलाव भी करने चाहिये, लेकिन साथ ही युद्ध जैसी किसी भी आक्रामकता से बचना चाहिये जो पाकिस्तान के साथ-साथ भारत के लिये भी विनाशकारी होगा।

सचेत रहना होगा पाकिस्तान से

पुलवामा आतंकी हमले के बाद के प्रमुख घटनाक्रम पर जरा एक नज़र डालिये...

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने हवा में हुई झड़पों के बाद जिस तरह विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा किया, जमात-उद-दावा और जैश-ए-मोहम्मद पर प्रतिबंध लगाए, अज़हर मसूद के संबंधियों को हिरासत में लिया, उससे उम्मीद ज़रूर बंधती है। पाकिस्तानी पंजाब प्रांत के संस्कृति मंत्री फयाजुल हसन चौहान को बर्खास्त कर पाकिस्तान ने दुनिया को सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की। फयाजुल ने हिंदुओं के विरुद्ध टिप्पणी की थी और न केवल उन्हें बर्खास्त किया, बल्कि सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने को भी मजबूर किया। लेकिन इन कदमों से यह मान बैठना कि पाकिस्तान बदल रहा है, बेहद जल्दबाज़ी होगी। विगत अनुभव गवाह हैं कि अपनी धरती पर पल रहे आतंकियों को बचाने के लिये पाक ने समय के साथ छोटे-मोटे रणनीतिक परिवर्तन किये हैं, लेकिन उसकी मूल नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। हमें पाकिस्तान की अगली गतिविधियों पर सतर्क दृष्टि रखनी होगी।

स्रोत: 11 मार्च को Indian Express में प्रकाशित The Post-Balakot Challenge तथा अन्य जानकारी पर आधारित