नशीली दवाओं के दुरुपयोग के विरुद्ध नीतिगत कार्रवाई | 01 Nov 2021

यह एडिटोरियल 29/10/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Should the NDPS Act be amended?’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग से संबंधित समस्या पर चर्चा की गई है।

संदर्भ 

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट- 1985’ (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances (NDPS) Act, 1985) के कुछ प्रावधानों में संशोधनों का प्रस्ताव किया है। बॉलीवुड एक्टर शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की हालिया गिरफ्तारी सहित कुछ हाई-प्रोफाइल ड्रग मामलों की पृष्ठभूमि में ये अनुशंसाएँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गई हैं।

मंत्रालय की अनुशंसाओं में व्यक्तिगत उपयोग के उद्देश्यों से कम मात्रा में मादक पदार्थ रखने के मामलों को अपराध-मुक्त किया जाना शामिल है। एक अन्य सुझाव यह है कि कम मात्रा में नशीले पदार्थों का उपयोग करने वाले व्यक्तियों को ‘पीड़ित’ के रूप में देखा जाए।

हालाँकि, भारत में व्यापक रूप से नशीली दवाओं के दुरुपयोग के अंतर्निहित कारणों को समझने और फिर व्यापक कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

भारत में नशीली दवाओं की लत के कारण

  • सामाजिक आर्थिक स्थिति: निम्न आय, बेरोज़गारी, आय असमानता, निम्न शैक्षिक स्तर, उन्नति के सीमित अवसर और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी।
  • सामाजिक पूँजी: निम्न सामाजिक समर्थन और अल्प सामुदायिक भागीदारी।
  • पर्यावरणीय घटनाएँ: प्राकृतिक आपदाएँ, युद्ध, संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण क्षरण और प्रवास।
  • सामाजिक परिवर्तन जो आय में परिवर्तन, शहरीकरण और पर्यावरण क्षरण से संबद्ध हैं।
  • ‘स्ट्रेस बस्टर’: कभी-कभी छात्र अपनी पढ़ाई या काम के दबाव के कारण ड्रग्स की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इसके साथ ही, दूसरे राज्यों से आने वाले छात्र मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों में रह सकने के संघर्ष को कठिन पाते हैं।
    • आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि कोई बेरोज़गार युवक हताशा में आकर नशा करने लग जाता है।
  • सहकर्मी दबाव और अन्य मनोवैज्ञानिक कारक किशोरों को जोखिम भरे व्यवहारों में संलग्न कर सकते हैं, जिससे फिर वे मादक द्रव्यों के सेवन की ओर अग्रसर होते हैं।
    • ड्रग्स के सेवन से संबद्ध एक काल्पनिक ‘ग्लैमर’ के कारण भी युवा इसकी ओर आकर्षित हो सकते हैं।
    • कभी-कभी मौज-मस्ती या महज़ आजमा कर देखने के कारण भी युवा ड्रग्स लेने के आदी हो जाते हैं।
  • पीड़ा और अभाव: निम्न आय वर्ग के लोग, जिनके पास पर्याप्त मात्रा में भोजन जुटा सकने की भी क्षमता नहीं होती, नींद या आराम के लिये ड्रग्स का सहारा लेने लगते हैं।
  • कानूनी व्यवस्था की खामियाँ:
    • ड्रग्स संकट के पीछे ड्रग कार्टेल, क्राइम सिंडिकेट और अंततः पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का हाथ है, जो भारत में ड्रग्स का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है।
      • देश में रेव पार्टियों के आयोजन की खबरें आती रहती हैं, जहाँ नशीले पदार्थों का सेवन मुख्य आकर्षण होता है।
      • इन पार्टियों का संचालन ड्रग सिंडिकेट द्वारा किया जाता है, जिनके अपने निहित स्वार्थ होते हैं।
      • ऐसी पार्टियों के आयोजन में सोशल मीडिया अहम भूमिका निभाती है।
      • पुलिस ऐसी पार्टियों पर नियंत्रण कर सकने में असफल रही है।
    • पड़ोसी देशों के साथ सीमा साझा करने वाले पंजाब, असम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के माध्यम से ड्रग्स की तस्करी की जाती है।
    • नूडल्स, पान मसाला और गुटखा जैसे उत्पादों के साथ ड्रग्स का मिश्रण कर इन्हें स्कूल और कॉलेज के छात्रों को बेचा जाता है।
    • देश में ड्रग्स लाने के लिये अफ्रीका के साथ ही दक्षिण एशिया के मार्ग का दुरुपयोग किया जा रहा है।

नशीली दवाओं की लत के प्रभाव

  • चोटों, दुर्घटनाओं, घरेलू हिंसा की घटनाओं, चिकित्सा समस्याओं और मृत्यु का उच्च जोखिम।
  • इससे देश की आर्थिक क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि युवा नशीली दवाओं के दुरुपयोग में लिप्त होते हैं और इसकी हानि जनसांख्यिकीय लाभांश को उठानी पड़ती है।
  • साथ ही ड्रग्स के कारण परिवार के साथ और दोस्तों के साथ संबंध प्रभावित होते हैं, जिससे भावनात्मक और सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। 
  • पुलिस पेट्रोलिंग और पुनर्वास केंद्रों के लिये अतिरिक्त धन और संसाधन प्रदान किये जाने से वित्तीय बोझ बढ़ जाता है।
  • नशीली दवाओं का दुरुपयोग हमारी स्वास्थ्य, सुरक्षा, शांति और विकास को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
    • हेपेटाइटिस बी एवं सी और टीबी जैसे रोगों में वृद्धि होती है।
  • नशीली दवाओं पर निर्भरता, आत्मसम्मान में कमी, निराशा आदि के कारण आपराधिक कृत्यों और यहाँ तक ​​कि आत्महत्या की प्रवृत्ति में वृद्धि हो सकती है।

ड्रग संकट पर अंकुश लगाने संबंधित चुनौतियाँ

  • कानूनी रूप से उपलब्ध नशीली दवाएँ: उदाहरण- तंबाकू, जो एक गंभीर समस्या उत्पन्न करता है और जिसे आमतौर पर ‘गेटवे ड्रग’ के रूप में देखा जाता है और महज़ आज़मा कर देखने के नाम पर बच्चे भी इसका सेवन करते हैं।
  • पुनर्वास केंद्रों की उपलब्धता का अभाव: भारत में पुनर्वास केंद्रों का अभाव है। इसके अलावा, देश में नशामुक्ति केंद्रों का संचालन करने वाले गैर-सरकारी संगठन भी आवश्यक प्रकार के उपचार और चिकित्सा प्रदान करने में विफल रहे हैं।
  • ड्रग्स तस्करी: पड़ोसी देशों के साथ सीमा साझा करने वाले पंजाब, असम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के माध्यम से ड्रग्स की तस्करी की जाती है।

नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम

  • भारत ‘यूएन सिंगल कन्वेंशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स’ (1961), ‘कन्वेंशन ऑन साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (1971) और ‘कन्वेंशन ऑन इलिसिट ट्रैफिक इन नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (1988) का हस्ताक्षरकर्त्ता है, जो चिकित्सीय और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सब्सटेंस के उपयोग को सीमित करने के साथ-साथ उनके दुरुपयोग को रोकने के दोहरे उद्देश्य की प्राप्ति के लिये विभिन्न उपायों का निर्धारण करते हैं। 
  • देश में नारकोटिक्स के क्षेत्र में प्रशासनिक और विधायी व्यवस्था की स्थापना संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशनों की भावना के अनुरूप की गई है। इस संबंध में भारत सरकार का मूल विधायी साधन ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम- 1985’ है।
  • यह अधिनियम नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सब्सटेंस से संबंधित परिचालन के नियंत्रण एवं विनियमन के लिये कड़े प्रावधान करता है।
  • यह नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सब्सटेंस के अवैध व्यापार से प्राप्त या इसमें उपयोग की गई संपत्ति को ज़ब्त करने का भी प्रावधान करता है।
  • यह कुछ मामलों में मौत की सजा का भी प्रावधान करता है, जहाँ कोई व्यक्ति बार-बार इस कृत्य में लिप्त पाया जाता है।

आगे की राह

  • मादक द्रव्यों के सेवन संबंधी विकार से पीड़ित लोगों के लिये वैज्ञानिक साक्ष्य-आधारित उपचार पर्याप्त पैमाने पर उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है।
  • युवाओं की सुरक्षा के लिये ‘साक्ष्य-आधारित पदार्थ उपयोग रोकथाम कार्यक्रमों’ (Evidence-Based Substance Use Prevention Programmes) की आवश्यकता है।
    • रोकथाम कार्यक्रमों को न केवल मादक द्रव्यों के उपयोग को रोकने के उद्देश्य से जोखिम और सुरक्षात्मक कारकों को संबोधित करना चाहिये, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि युवा स्वस्थ वयस्कता प्राप्त कर सकें और उन्हें उनकी क्षमताओं को साकार कर सकने के लिये सबल किया जाए, ताकि वे अपने समुदाय और समाज के उत्पादक सदस्य बन सकें।
  • नशीली दवा संबंधी समस्याओं को नियंत्रित करने में मदद के लिये एक अनुकूल कानूनी और नीतिगत वातावरण का निर्माण करने की आवश्यकता है।
    • यह महत्त्वपूर्ण है कि कानूनों और नीतियों का उद्देश्य मादक द्रव्यों के सेवन से प्रभावित लोगों को आपराधिक न्याय प्रणाली के अधीन करने के बजाय स्वास्थ्य और कल्याण सेवाएँ प्रदान की जाए।
    • ड्रग आपूर्ति नियंत्रण क्षेत्र के साथ-साथ ड्रग की मांग में कमी लाने और नुकसान को कम करने जैसे कार्य से संबद्ध संस्थाओं के बीच कुशल समन्वय की आवश्यकता है।
  • वैज्ञानिक साक्ष्य सृजित करने और उपयोग करने का दृष्टिकोण जारी रहना चाहिये।
    • सभी प्रकार के आँकड़ों का उपयोग भारतीय समाज के स्वास्थ्य एवं कल्याण की रक्षा और प्रोत्साहन के लिये साक्ष्य-आधारित नीतियों और कार्यक्रमों को बढ़ावा देने हेतु किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

कार्ययोजना का उद्देश्य, विशेष रूप से कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में बढ़ते खतरे का मुकाबला कर, व्यसन मुक्त भारत का निर्माण करना है। नशीली दवाओं और मादक द्रव्यों के सेवन के विरुद्ध अधिक लक्षित अभियान की रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता है।

नशे अथवा ड्रग्स की लत को एक चरित्र दोष के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये, बल्कि इसे एक बीमारी के रूप में देखा जाना चाहिये। इसलिये, नशीली दवाओं के सेवन से जुड़े कलंक को सामाजिक जागरूकता और स्वैच्छिक प्रक्रियाओं, जैसे मनोवैज्ञानिकों द्वारा चिकित्सा सहायता के साथ-साथ परिवार के मज़बूत समर्थन के माध्यम से कम करने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: नशीली दवाओं के दुरुपयोग की समस्या को समग्र सुधार कार्रवाई के माध्यम से हल किया जा सकता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग की समस्याओं से निपटने के लिये कुछ उपाय सुझाएँ।